क्या “ताग़ूत” का शब्द उन आकार को भी सम्मिलित है जो लोगों को अपनी पूजा की ओर नहीं बुलाते हैं, जैसे सूर्य, पेड़, मूर्ति, पत्थर? क्या परहेज़गार (पुनीत और सदाचारी) मुसलमानों उदाहरण के तौर पर इमाम शाफेई को तागूत की संज्ञा दी जायेगी, इसलिए कि लोग उन की पूजा करते हैं या उन की क़ब्रों की पूजा की जाती है?
शब्द “ताग़ूत” का अर्थ
Soru: 5203
Allah'a hamdolsun ve peygamberine ve ailesine salat ve selam olsun.
हरप्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।
अल्लाहके अलावा पूजी जाने वाली हर चीज़ ताग़ूत नहीं समझी जायेगी, क्योंकि तागूत के अर्थ केवर्णन में विद्वानों के कथनों में से शुद्ध कथन वह है जिसे इब्ने जरीर तबरी नेअपनी तफ्सीर (3/21) में वर्णन किया है : “ताग़ूत के बारे में मेरे निकट शुद्धकथन यह है कि : ताग़ूत हर वह चीज़ है जो अल्लाह पर उपद्रव करने वाली हो और अल्लाह केअलावा उसकी पूजा की गयी हो, या तो उसने अपनी पूजा करने वालों पर दबाव बनाया हो, याउसके पुजारियों ने स्वयं उसकी पैरवी की हो, चाहे वह पूज्य मानव हो या दानव, पत्थरहो या मूर्ति, या कोई भी चीज़ हो। तथा उन्हों ने यह भी कहा कि : ताग़ूत का मूल शब्दआदमी के कथन: “तग़ा फुलानुन् यत्ग़ू” से से निकला है जो उस समय कहा जाताहै जब वह अपने पद और स्थान से आगे बढ़ जाये और उसकी सीमा को पार कर जाये।”
पैग़ंबरों(ईश्दूतों), विद्वानों और उनके अलावा अन्य पुनीत और सदाचारी लोगों (औलिया व सालेहीन)ने लोगों को अपनी पूजा करने पर नहीं उभारा है, और न ही लोगों ने इस बारे में उनकीइताअत (आज्ञापालन) की है, बल्कि उन्हों ने तो इस से सख्ती से डराया और सचेत कियाहै, बल्कि लोगों की ओर सन्देष्टाओं (पैग़ंबरों) के भेजे जाने का उद्देश्य उन्हेंएकमात्र अल्लाह की पूजा करने और उसके अलावा की पूजा का इनकार करने की तरफ बुलानाथा, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान हैः
“हमने प्रत्येक समुदाय में रसूल भेजे कि लोगो! केवल अल्लाह की उपासना करो और ताग़ूत(उस के अलावा सभी असत्य पूज्यों) से बचो। (सूरतुन-नह्ल: 36)
तथाअल्लाह तआला ने फरमाया :
“और(वह समय भी याद करो) जब कि अल्लाह तआला कहेगा कि हे ईसा इब्ने मरियम! क्या तुम नेउन लोगों से कह दिया था कि मुझ को और मेरी माँ को अल्लाह के सिवाय पूज्य बना लेना?(ईसा अलैहिस्सलाम) कहेंगे कि मैं तो तुझे पाक समझता हूँ, मुझ को किस तरह से शोभादेती कि मैं ऐसी बात कहता जिस के कहने का मुझे कोई हक़ नहीं, अगर मैं ने कहा होगातो तुझ को उस का ज्ञान होगा, तू तो मेरे दिल की बात जानता है, मैं तेरे जी में जोकुछ है उस को नहीं जानता, केवल तू ही ग़ैबों (परोक्ष) का जानकार है। मैं ने उन सेकेवल वही कहा जिस का तू ने मुझे हुक्म दिया कि अपने रब और मेरे रब अल्लाह की इबादतकरो, और जब तक मैं उन में रहा उन पर गवाह रहा और जब तू ने मुझे उठा लिया तो तू हीउन का संरक्षक (निगराँ) था और तू हर चीज़ पर गवाह है।” (सूरतुल माईदा :116,117)
इसलिएनबियों (सन्देष्टाओं) और विद्वानों को ताग़ूत नहीं कहा जायेगा, अगरचि अल्लाह केसिवाय उनकी पूजा की गयी हो।
अगरकुछ लोगों ने इमाम शाफेई या उनके अलावा अन्य विद्वानों के बारे में ग़ुलू(अतिशयोक्ति) से काम लिया है और अल्लाह को छोड़कर उन से फर्याद किया है, या उनकेक़ब्रों की पूजा की है, तो इस में उन विद्वानों का कोई गुनाह नहीं है, बल्कि इस काबोझ शिर्क करने वाले पर है। इसी प्रकार ईसाई लोग जिन्हों ने अल्लाह को छोड़कर ईसाअलैहिस्सलाम की पूजा की, ईसा अलैहिस्सलाम उनका कुछ भी बोझ नहीं उठायेंगे।
ताग़ूतकी संछिप्त परिभाषाओं में से एक यह है कि : जिस की अल्लाह के सिवाय पूजा की जायेऔर वह उस से खुश हो। और यह बात सर्वज्ञात है कि ईसा अलैहिस्सलाम और उनके अलावाअन्य सन्देष्टा, और इसी तरह इमाम शाफेई रहिमहुल्लाह और उनके अलावा दूसरेएकेश्वरवादी विद्वान कभी अल्लाह के सिवाय अपनी पूजा (इबादत) से राज़ी नहीं होंगे,बल्कि वे इस से रोकते हैं और तौहीद (एकमात्र अल्लाह की उपासना) को स्पष्ट करतेहैं, अल्लाह तआला का फरमान है :
“और(वह समय भी याद करो) जब कि अल्लाह तआला कहेगा कि हे ईसा इब्ने मरियम! क्या तुम नेउन लोगों से कह दिया था कि मुझ को और मेरी माँ को अल्लाह के सिवाय पूज्य बना लेना?(ईसा अलैहिस्सलाम) कहेंगे कि मैं तो तुझे पाक समझता हूँ, मुझ को किस तरह से शोभादेती कि मैं ऐसी बात कहता जिस के कहने का मुझे कोई हक़ नहीं, अगर मैं ने कहा होगातो तुझ को उस का ज्ञान होगा, तू तो मेरे दिल की बात जानता है, मैं तेरे जी में जोकुछ है उस को नहीं जानता, केवल तू ही ग़ैबों (परोक्ष) का जानकार है। मैं ने उन सेकेवल वही कहा जिस का तू ने मुझे हुक्म दिया कि अपने रब और मेरे रब अल्लाह की इबादतकरो . . .” (सूरतुल माईदा : 116, 117)
औरअल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।
Kaynak:
शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद