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इस्लाम में माता पिता के प्रति अच्छे व्यवहार का महत्व क्या है ?

प्रश्न: 5326

कुरआन और हदीस की रोशनी में माता पिता का आदर और सम्मान करने का क्या महत्व है ?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

माता पिता के सम्मान का महत्व

सर्व प्रथम: माता पिता के सम्मान से अल्लाह तआला और उस के रसूल के आज्ञा का पालन होता है।

अल्लाह तआला का फरमान है:

ووصينا الإنسان بوالديه إحساناً

“और हम ने इंसान को अपने माता पिता के साथ अच्छा व्यवहार करने का आदेश दिया है।” (सूरतुल अह्क़ाफ : 15)

इसी प्रकार अल्लाह का फरमान है:

وقضى ربك أن لا تعبدوا إلا إياه وبالوالدين إحساناً إما يبلغن عندك الكبر أحدهما أو كلاهما فلا تقل لهما أف ولا تنهرهما وقل لهما قولاً كريماً واخفض لهما جناح الذل من الرحمة وقل ربي ارحمهما كما ربياني صغيراً

“और तुम्हारे रब ने फैसला कर दिया कि तुम मात्र उसी की इबादत करना, और माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करना, अगर तुम्हारे सामने उनमें से कोई एक या दोनों बुढ़ापे को पहुँच जायें तो उन से उफ (अरे) तक न कह, और न उन्हें झिड़क, और उन से नरम ढंग से बात कर, और उन दोनों के लिए इंकिसारी (विनम्रता) का बाज़ू मेहरबानी से झुकाये रख, और कह कि ऐ रब दया कर उन दोनों पर जिस तरह उन दोनों ने मेरे बचपन में मुझे पाला है।” (सूरतुल इस्रा : 23)

और बुखारी एवं मुस्लिम में इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रश्न किया गया कि कौनसा काम सब से अच्छा है ? तो आप ने फरमाया कि अल्लाह और उसके पैगंबर पर ईमान लाना, फिर माता एवं पिता के प्रति अच्छा व्यवहार करना ….।”

इस के अतिरिक्त इस विषय में कुरआन की अन्य आयतें और तवातुर के साथ हदीसें वर्णित हैं।

दूसरा: माता पिता का आज्ञापालन और उनका आदर एवं सम्मान करना, स्वर्ग में प्रवेश करने का कारण है जैसा कि सहीह मुस्लिम में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि आप ने फरमायाः “उसकी नाक मिट्टी में सने, फिर उसकी नाक मिट्टी में सने, फिर उसकी नाक मिट्टी में सने।” कहा गया: कौन ऐ अल्लाह के रसूल ? आपने फरमाया: “जिस व्यक्ति ने अपने माता पिता में से किसी एक को या दोनों को बुढ़ापे में पाया और स्वर्ग में प्रवेश न कर सका।” (हदीस संख्या : 4627)

तीसरा: उन दोनों का सम्मान और आज्ञा पालन करना, प्रेम एवं महब्बत का कारण है।

चौथा: उन दोनों का आदर व सम्मान और आज्ञा पालन करना, उन दोनों का आभारी होना है क्येंकि वे दोनों इस धरती पर आपके अस्तित्व के कारण हैं। इसी प्रकार तुम्हारा अपनी माँ का बचपन में तुम्हारे पालन पोषण और देखरेख पर आभारी होना है।

अल्ला तआला का फरमान है:

وأن اشكر لي ولوالديك

“तू मेरी और अपने माँ बाप की शुक्रगुज़ारी कर।” (सूरत लुक़मान : 14)

पाँचवां: बच्चे का अपने माता पिता के प्रति अच्छा व्यवहार करना इस बात का कारण है कि उस के बच्चे उसके प्रति अच्छा व्यवहार करेंगे, अल्लाह तआला ने फरमाया:

هل جزاء الإحسان إلا الإحسان

“एहसान (उपकार) का बदला एहसान के सिवा क्या है।” (सूरत रहमान : 60)

स्रोत

शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद

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