मैं उस तरीक़े के बारे में असमंजस में हूँ जिसके अनुसार अह्ले सुन्नत और शिया लोग नमाज़ पढ़ते हैं, मेरे पिता शिया हैं और उन्हों ने मुझे यह शिक्षा दिया है कि मैं नमाज़ पढ़ते समय अपने दोनों हाथों को अपने पहलू में रखूँ किंतु मुझे पता नहीं कि अंतर क्या है।
दोनों के बीच यह मतभेद क्यों पाया जाता है ? मैं आपका आभारी हूँगा यदि आप मुझे वह तरीक़ा बता दें जिसे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस्तेमाल करते थे।
नमाज़ में दोनों हाथों का रखना अह्ले सुन्नत और उनके अलावा लोगों के बीच
प्रश्न: 5770
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
शीया -राफिज़ा- और अह्ले सुन्नत के बीच अंतर बहुत बड़ा है, और इसका कारण उन हवालों और आधारों का इख़्तिलाफ (भिन्नता) है जिसकी ओर उन दोनों में से प्रत्येक लौटता है, शीया लोग ऐसी किताबों और ऐसा उलमा (विद्वानों) पर भरोसा करते हैं जो अहले सुन्नत के निकट कुछ भी नहीं हैं।
उदाहरण के तौर पर अह्ले सुन्नत क़ुरआन के बाद सहीह बुखारी पर एतिमाद करते हैं, जबकि शीया लोग उसे धर्म स्रोत (हवाला की पुस्तक) नहीं मानते हैं और न ही उसके लेखक को कुछ समझते हैं,यहाँ तक कि वे हमारे साथ सहाबा के विषय में भी मतभेद करते हैं,शिया लोग कुछ को छोड़कर सारे सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) को काफिर (नास्तिक) ठहराते हैं। बल्कि उनमें से कुछ लोग यह भ्रम रखते हैं कि अह्ले सुन्नत के हाथों में जो क़ुरआन मौजूद है वह अपूर्ण और परिवर्तित है,और जिसने क़ुरआन के अपूर्ण और परिवर्तित होने की बात नहीं कही है उसने उसके अर्थ के परिवर्तित होने की बात कही है और उसकी व्याख्या में हमारे इमामों से जो बातें वर्णित हैं उनको बातिल (व्यर्थ और अमान्य) ठहराया है।
इमाम शा'बी कहते हैं: मैं तुम्हें पथभ्रष्ट करने वाली इच्छाओं से सावधान करता हूँ और उसके दुष्ट रूप राफिज़ा (शीया) हैं,उन्हें अली बिन अबू तालिब ने आग से जलाया था और और उन्हें देश से निकाल दिया था,और इसकी निशानी यह है कि राफिज़ा की आज़माइश यहूद की आज़माइश के समान है:
यहूद ने कहा: दाऊद (अलैहिस्सलाम) की संतान के किसी व्यक्ति के लिए ही इमामत (नेतृत्व) सही है, और राफिज़ा ने कहा कि: अली बिन अबू तालिब के संतान के किसी व्यक्ति के लिए ही इमामत (नेतृत्व) दुरूस्त है।
यहूद ने कहा: अल्लाह के मार्ग में जिहाद नहीं है यहाँ तक कि मसीह दज्जाल निकल आये और आसमान से कोई सबब उतरे, और राफिज़ा ने कहा कि: अल्लाह के मार्ग में जिहाद नहीं है यहाँ तक कि महदी निकल आयें और आसमान से कोई मुनादी करने वाला आवाज़ लगाये।
यहूद मग्रिब की नमाज़ को विलंब करते हैं यहाँ तक कि तारे दिखाई देने लगें,और इसी प्रकार राफिज़ा भी करते हैं,जबकि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीस है कि "मेरी उम्मत (समुदाय) उस समय तक फितरत पर बाक़ी रहेगी जब तक कि वह मग़्रिब की नमाज़ को तारों के निकलने तक विलंब नहीं करेगी।" इस हदीस को अबू दाऊद (हदीस संख्या: 418)और इब्ने माजा (हदीस संख्या: 689)ने रिवायत किया है,और अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद (हदीस संख्या: 444)में सहीह कहा है।
यहूद: क़िब्ला से थोड़ा मायल हो जाते हैं और इसी प्रकार राफिज़ा भी करते हैं।
यहूद: नमाज़ में सिर हिलाते हैं और इसी प्रकार राफिज़ा भी करते हैं।
यहूद: हर मुसलमान के खून को हलाल समझते हैं और इसी प्रकार राफिज़ा भी हैं।
यहूद: महिलाओं के लिए कोई इद्दत नहीं समझते हैं,इसी प्रकार शिया भी विचार रखते हैं।
यहूद: तीन तलाक़ को कुछ भी नहीं समझते हैं, इसी प्रकार राफिज़ा भी हैं।
यहूद: ने तौरात में रद्दोबदल (विकृत) किया है,और इसी प्रकार शियाओं ने भी क़ुर्आन में रद्दोबदल किया है।
यहूद: जिब्रील से द्वेष रखते हैं और कहते हैं कि वह फरिश्तों में से हमारा दुश्मन है,इसी प्रकार राफिज़ा का एक वर्ग भी कहता है कि उन्हों ने गल्ती से वह्य को मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को पहुँचा दिया।
अल-खल्लाल की पुस्तक "अस्सुन्नह" (3/ 487 – 498)
ये शिया की कुछ पथभ्रष्टतायें और मिथक हैं। इसलिए नमाज़ के अंदर इनके अपने हाथों को लटकाये रखने से आश्चर्य न करें जो कि शुद्ध और स्पष्ट सुन्नत (हदीस) का खुला उल्लंघन और विरोध है।
हाँथों को बाँधने -अर्थात् दाहिने हाथ को बाएँ हाथ पर रखने- के प्रमाण बहुत हैं, जिन में से कुछ निम्नलिखित हैं:
सहल बिन सअद रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा: लोगों को आदेश दिया जाता था कि आदमी नमाज़ के अंदर अपने दाहिने हाथ को बाएँ हाथ पर रखे।
अबू हाज़िम ने कहा: मैं यही जानता हूँ कि वह इसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक पहुँचाते हैं। इसे बुखारी (हदीस संख्या: 707) ने रिवायत किया है।
तथा "नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने दाहिने हाथ को बाएँ हाथ पर रखते थे।’’इसे मुस्लिम (हदीस संख्या: 401)ने रिवायत किया है।
अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक आदमी के पास से गुज़रे जो नमाज़ पढ़ रहा था और अपने बाएँ हाथ को अपने दाहिने हाथ पर रखे हुए था तो आप ने उसे खींच कर दाहिने हाथ को बाएँ पर रख दिया। इसे अहमद (हदीस संख्या: 12671) ने रिवायत किया है।"
तथा वाइल बिन हुज्र रज़ियल्लाह अन्हु से वर्णित है कि: उन्हों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देखा कि आप ने नमाज़ में दाखिल होते समय अपने दोनों हाथों को कानों के सामने तक उठाया और "अल्लाहु अक्बर" कहा, फिर अपने कपड़े को लपेट लिया और दाहिने हाथ को बाँए हाथ पर रखा। फिर जब रुकू करने का इरादा किया तो अपने दोनों हाथों को कपड़े से निकाला फिर उन्हें उठाया फिर अल्लाहु अक्बर कहकर रुकू किया। जब "समिअल्लाहु लिमन हमिदह्" कहा तो अपने दोनों हाथों को उठाया। फिर जब सज्दा किया तो दोनों हथेलियों के बीच सज्दा किया।’’इसे मुस्लिम (हदीस संख्या: 401) ने रिवायत किया है।
इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: हम पैगंबरों की जमाअत को रोज़ा खोलने में जल्दी करने और सेहरी करने में विलंब करने का आदेश दिया गया है, और यह कि हम नमाज़ में अपने दाहिने हाथ को अपने बाएँ हाथ पर रखें।’’इसे इब्ने हिब्बान (3/13) ने रिवायत किया है। इस हदीस को शैख अल्बानी ने अपनी किताब "सिफतो सलातिन्नबी" (पृष्ठ: 87) में सहीह कहा है।
इब्ने हजर ने कहा: इब्ने अब्दुल बर्र ने फरमाया: इस बारे में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कोई मतभेद वर्णित नहीं है,यही सहाबा और ताबेईन की बहुमत का कथन है और इसी को इमाम मालिक ने मुवत्ता में वर्णन किया है और इब्नुल मुंज़िर वगैरह ने इमाम मालिक से इसके अलावा (किसी अन्य कथन) का उल्लेख नहीं किया है। जबकि इब्नुल क़ासिम ने इमाम मालिक से हाथ के छोड़ने (लटकाने) का उल्लेख किया है और उनके अक्सर अनुयायी इसी कथन की ओर गये हैं। तथा उनसे फर्ज़ और नफ्ल के बीच अंतर (फर्क़) भी वर्णित है। तथा उनमें से कुछ ने हाथ बाँधने को मक्रूह (नापसंदीदा) समझा है और इब्नुल हाजिब ने उल्लेख किया है कि यह इस कारण है कि वह सुविधा और आसानी के उद्देश्य से हाथ बाँधता है। "फत्हुल बारी" (2/224)
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर