इस्रा और मेराज की रात का जश्न मनाने का क्या हुक्म है, जो कि रजब की सत्ताईसइवीं रात हैॽ
इस्रा और मेराज की रात का जश्न मनाना
प्रश्न: 60288
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
"कोई शक नहीं कि इस्रा और मेराज अल्लाह की महान निशानियों में से हैं जिनसे उसके पैबंगर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सच्चाई और अल्लाह सर्वशक्तिमान के निकट उनके महान स्थान का पता चलता है। तथा यह अल्लाह सर्वशक्तिमान की अद्भुत क्षमता व शक्ति, और उसके अपनी समस्त सृष्टि पर सर्वोच्च होने के प्रमाणों में से है। अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया:
( سُبْحَانَ الَّذِي أَسْرَى بِعَبْدِهِ لَيْلًا مِنَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ إِلَى الْمَسْجِدِ الأَقْصَى الَّذِي بَارَكْنَا حَوْلَهُ لِنُرِيَهُ مِنْ آيَاتِنَا إِنَّه هُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ ) الإسراء/1 .
‘‘बड़ा पवित्र है वह अल्लाह जो रातों-रात अपने बन्दे (मुहम्मद) को मस्जिदे हराम (काबा) से मस्जिदे अक़्सा तक ले गया, जिसके चारों ओर हमने बरकत दी, ताकि हम उसे अपनी कुछ निशानियाँ दिखाएँ। निःसंदेह वही सब कुछ सुनता, देखता है।'' (सूरत अल-इस्रा :1)
तथा अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मुतवातिर (निरंतर) तरीक़े से यह बात वर्णित है कि आपको आकाश पर ले जाया गया और आपके लिए उसके दरवाज़े खोले गए यहाँ तक कि आप सातवें आसमान को पार कर गए, तो आपके सर्वशक्तिमान रब ने आप से जो चाहा बात की, और आप पर पाँच दैनिक नमाज़ें अनिवार्य कीं। अल्लाह सर्वशक्तिमान ने पहले पचास नमाज़ें अनिवार्य की थीं। तो हमारे पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम निरंतर अल्लाह के पास जाते रहे और उसे हल्की (कम) करने का प्रश्न करते रहे यहाँ तक कि अल्लाह ने उसे पाँच नमाज़ें कर दीं। तो यह अनिवार्यता में पाँच हैं, परंतु अज्र व सवाब में पचास हैं। क्योंकि नेकी दस गुना बढ़ा दी जाती है। अतः सारी प्रशंसाएं और धन्यवाद अल्लाह ही के लिए हैं उसकी सभी नेमतों पर।
यह रात जिसमें इस्रा और मेराज की घटना घटी, इसके निर्धारित रूप से रजब के महीने में या इसके अलावा अन्य महीने में होने के बारे में सहीह हदीसों में कुछ भी वर्णति नहीं है। उसके निर्धारण के बारे में जो कुछ भी वर्णित है, वह हदीस के ज्ञानियों के निकट नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित नहीं है। और उसे लोगों से भुला देने में अल्लाह तआला की व्यापक हिकमत है। यदि उसका निर्धारण साबित ही हो जाए, तब भी मुसलमानों के लिए उसे किसी इबादत के साथ विशिष्ट करना जायज़ नहीं है, और न ही उनके लिए उसका जश्न मनाना ही जायज़ है। क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके साथियों ने इसका जश्न नहीं मनाया और न ही उसे किसी चीज़ के साथ विशिष्ट किया।
यदि उसका (यानी इस्रा और मेराज की रात को) जश्न मनाना धर्मसंगत होता, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उसे उम्मत के लिए, अपने कथन या कर्म से, अवश्य स्पष्ट करते। और अगर कुछ ऐसा हुआ होता तो वह ज़रूर जाना जाता और प्रचलित होता, तथा सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम उसे हमें अवश्य स्थानांतरित करते। क्योंकि उन्हों ने अपने पैगंबर से हर उस चीज़ को स्थानांतरित किया है जिसकी उम्मत को जरूरत थी, और धर्म से संबंधित किसी चीज़ में कुछ कमी नहीं की। बल्कि वे हर भलाई के काम में सबसे आगे रहने वाले थे। अतः यदि इस रात का जश्न मनाना धर्मसंगत होता तो वे उसको मनाने में सबसे आगे होते। तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लोगों के सबसे बड़े शुभचिंतक (भला चाहनेवाले) थे। जबकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अल्लाह के संदेश को पूर्ण रूप से पहुँचा दिया, और अमानत (धरोहर) को अदा कर दिया। यदि इस रात का सम्मान करना और उसका जश्न मनाना अल्लाह के धर्म का हिस्सा होता तो आप उससे अनदेखी न करते और उसे गुप्त न रखते। जब इनमें से कोई भी चीज़ घटित नहीं हुई, तो पता चला कि उसका जश्न मनाना औऱ उसका सम्मान करना इस्लाम से नहीं है, हालांकि अल्लाह ने इस उम्मत के लिए उसके धर्म को परिपूर्ण कर दिया है, और उसपर नेमत (अनुग्रह) को पूरा कर दिया है, तथा ऐसे लोगों का खण्डन किया है जिन्हों ने धर्म में ऐसी बातें बना ली हैं जिनकी अल्लाह ने अनुमति नहीं दी है।
अल्लाह सर्वशक्तिमान ने अपनी स्पष्ट पुस्तक में सूरतुल-मायदा में फरमायाः
الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الْإِسْلَامَ دِينًا ۚ [المائدة :3]
‘‘आज मैं ने तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म संपूर्ण कर दिया, और अपनी नेमतें तुम पर पूरी कर दीं और इस्लाम को तुम्हारे लिए धर्म स्वरूप पसन्द कर लिया।’’ (सूरतुल मायदा : 3)
तथा अल्लाह सर्वशक्तिमान ने सूरत अश्-शूरा में :
أَمْ لَهُمْ شُرَكَاءُ شَرَعُوا لَهُمْ مِنَ الدِّينِ مَا لَمْ يَأْذَنْ بِهِ اللَّهُ [ سورة الشورى : 21]
''क्या उनके कुछ ऐसे (ठहराए हुए) साझीदार हैं, जिन्होंने उनके लिए ऐसा धर्म निर्धारित कर दिया है जिसकी अनुमति अल्लाह ने नहीं दी?'' (सूरतुश्शूराः 21)
तथा अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सहीह हदीसों में : बिद्अतों पर चेतावनी और इस बात की घोषणा है कि यह पथभ्रष्टता है, उम्मत को इसके खतरे की भयावहता पर चेतावनी देने हेतु, तथा उन्हें इसको करने से घृणित करते हुए। उन्हीं में से सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित हदीस है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
‘‘जिसने हमारी इस शरीअत में कोई ऐसी चीज़ ईजाद की जिसका उससे कोई संबंध नहीं है तो वह मर्दूद (अस्वीकृत) है।’’
तथा मुस्लिम की एक रिवायत में है किः
‘‘जिसने कोई ऐसा काम किया जो हमारे आदेश के अनुसार नहीं है तो वह अस्वीकृत है।’’
तथा सहीह मुस्लिम में जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि उन्हों ने कहा कि अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने जुमा के खुत्बा में फरमाया करते थे: ‘‘अम्मा बाद! सर्वश्रेष्ठ बात अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की किताब है, और सब से बेहतरीन तरीक़ा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का तरीक़ा है, और सब से बुरी बात धर्म में नयी ईजाद कर ली गई चीज़ें (यानी बिदअतें) हैं, और हर बिदअत (यानी धर्म में हर नयी ईजाद कर ली गई चीज़) पथ-भ्रष्टता है।’’
इमाम नसाई ने जैयिद सनद के साथ यह वृद्धि की है किः ''हर बिदअत जहन्नम की आग में ले जानेवाली है।''
तथा सुनन में इर्बाज़ बिन सारिया रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि उन्हों ने कहाः अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमें एक तत्वपूर्ण और वाक्पटु धर्मोपदेश दिया जिससे दिल कांप गए और आँखों से आँसू जारी हो गए। तो हम ने कहाः ऐ अल्लाह के पैगंबर, गोया कि यह विदा करनेवाले का धर्मोपदेश है। अतः आप हमें वसीयत कीजिए। तो आप ने फरमायाः ‘‘मैं तुम्हें अल्लाह से डरने, तथा सुनने और मानने की वसीयत करता हूँ भले ही तुम्हारा अमीर एक दास हो। क्योंकि तुम में से जो मेरे बाद जीवित रहेगा वह शीघ्र ही अधिक विवाद देखेगा, अतः तुम्हारे लिए अनिवार्य है कि मेरी सुन्नत तथा सीधे मार्ग पर रहनेवाले खलीफाओं की सुन्नत को अपनाओ, उसे दृढ़ता से थामे रहो, और दाँतों से जकड़ लो। तथा धर्म में नई चीज़ें (बिदअतें) पैदा करने से बचो क्योंकि प्रत्येक नई चीज़ें बिदअत हैं और प्रत्येक बिदअत गुमराही है।''
इस अर्थ की हदीसें और भी हैं, तथा रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबा तथा उनके बाद सलफ सालेहीन (पुनीत पूर्वजों) से बिदअतों पर चेतावनी देना और उससे डराना प्रमाणित है। और ऐसा केवल इसलिए है कि यह धर्म में एक वृद्धि, ऐसी शरीअत का निर्धारण है जिसकी अल्लाह ने अनुमति नहीं प्रदान की है। तथा अल्लाह के दुश्मनों यहूदियों और ईसाइयों के अपने धर्म में वृद्धि करने और ऐसी चीज़ें अविष्कार करने में समानता अपनाना है जिसकी अल्लाह ने अनुमति नहीं दी है। तथा इससे इस्लामी धर्म की अवमानना और उसपर संपूर्ण न होने का आरोप लगाना लाज़िम आता है, और यह बात ज्ञात है कि इसमें कितना महान भ्रष्टाचार (खराबी) और जघन्य बुराई, और अल्लाह तआला के कथनः ( الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ ) (आज मैं ने तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म संपूर्ण कर दिया) से टकराव, और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बिदअतों से सावधान करनेवाली और डरानेवाली हदीसों का स्पष्ट विरोध है।
मुझे आशा है हमने जो कुछ प्रमाण उल्लेख किए हैं वे पर्याप्त हैं और सत्य के खोजी के लिए इस विधर्म का इनकार करने के लिए ठोस सबूत हैं : मेरा मतलब इस्रा और मेराज की रात को जश्न मनाने की बिदअत का खण्डन करने, और उससे सावधान करने के लिए और यह कि इस्लाम धर्म से इसका कोई संबंध नहीं है।
चूँकि अल्लाह ने मुसलमानों के लिए सदुपदेश व शुभचिंता, तथा अल्लाह ने उनके लिए जो धर्म निर्धारित किया है उसको बयान करना अनिवार्य किया है, और ज्ञान को छिपाना निषिद्ध ठहराया है, इसलिए मैं
ने अपने मुसलमान भाइयों को इस बिदअत (नवाचार) पर चेतावनी देना उचित समझा, जो बहुत से क्षेत्रों में प्रचलित है, यहाँ तक कि कुछ लोगों का यह भर्म है कि वह धर्म में से है।
अल्लाह ही से प्रश्न है कि वह सभी मुसलमानों की स्थिति का सुधार करे, उन्हें धर्म की समझ प्रदान करे, तथा हमें और उन्हें सत्य को दृढ़ता के साथ थामने, उस पर जमे रहने और उसके विरूद्ध चीज़ों से बचने की तौफीक़ प्रदान करे। निःसंदेह वह उसका स्वामी और उसमें सक्षम है, तथा अल्लाह तआला अपने बन्दे और रसूल हमारे ईश्दूत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और उनकी संतान और सभी साथियों पर दया और शांति अवतरित करे।’’
स्रोत:
माननीय शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह