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मुसलमानों के लिए बैतुल-मक़्दिस का क्या महत्व है ॽ क्या यहूद का उसमें कोई अधिकार हैॽ

प्रश्न: 7726

चूँकि मैं एक मुसलमान हूँ, इसलिए निरंतर यह बात सुनता रहता हूँ कि मदीनतुल-क़ुद्स हमारे लिए महत्व पूर्ण है। परंतु इसका कारण क्या है ॽ मैं जानता हूँ कि ईशदूत याक़ूब (अलैहिस्सलाम) ने उस नगर में मस्जिदुल अक़्सा का निर्माण किया, और हमारे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पिछले ईश्दूतों की उसके अंदर नमाज़ में इमामत करवाई, जिस से संदेश और ईश्वरीय वह्य की एकता की पुष्टि होती है, तो क्या इस नगर के महत्वपूर्ण होने का कोई अन्य मूल कारण भी है ॽ या केवल इस कारण कि हमारा मामला मात्र यहूद के साथ है ॽ मुझे लगता है इस नगर में यहूद का हमसे अधिक हिस्सा है।

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हरप्रकार कीप्रशंसा औरस्तुति केवलअल्लाह के लिएयोग्य है।

सर्वप्रथम : बैतुलमक़्दिस कामहत्व :

आपइस बात को जानलें – अल्लाहतआला आप परदया करे – किबैतुलमक़्दिस केफज़ाइल बहुतअधिक हैं जिनमें से कुछ यहहैं :

-अल्लाह तआलाने क़ुरआन मेंउसके बारे मेंवर्णित कियाहै कि वहमुबारक है,अल्लाहतआला नेफरमाया :

سبحانالذي أسرى بعبده ليلاً من المسجد الحرام إلى المسجد الأقصى الذي باركنا حوله [سورة الإسراء :1]

“बहुतपवित्र है वहअस्तित्व(अल्लाहसर्वशक्तिमान)जो अपने बंदेको रातों रातमस्जिदुल हरामसे मस्जिदुलअक़्सा तक लेगया जिसकेआपसपास हमनेबरकतें(विभूतियाँ)रखी हैं।”(सूरतुलइस्रा : 1).

औरअल-क़ुद्स,मस्जिदके आसपास केहिस्से में सेहै, इस तरह वहमुबारक है।

-अल्लाह तआलाने उसके बारेमें वर्णनकिया है कि वहमुक़द्दस है,जैसाकिमूसाअलैहिस्सलामकी ज़ुबानीअल्लाह तआलाके इस फरमानमें है :

يا قومِ ادخلوا الأرض المقدسة التي كتب الله لكم ( سورة المائدة: 21 (

“ऐमेरी क़ौम के लोगो! उस मुक़द्दस(पवित्र) धरतीमें प्रवेशकरो, जिसेअल्लाह नेतुम्हारे लिएलिख दी है।”(सूरतुलमायदा : 21)

-उसके अंदरमस्जिदुलअक़्सा है,जिसमेंनमाज़ पढ़नाअढ़ाई सौ (250)नमाज़ों केबराबर है।

अबूज़र्ररज़ियल्लाहुअन्हु सेवर्णित है किउन्हों नेफरमाया : हम ने पैगंबरसल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमके पास यह चर्चाकिया कि रसूलसल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमकी मस्जिदसर्वश्रेष्ठहै या बैतुलमक़्दिस ॽ तोपैगंबरसल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने फरमाया : “मेरीमस्जिद में एकनमाज़ उसमें(अर्थात मस्जिदुलअक़सा में) चारनमाज़ों सेश्रेष्ठतर हैऔर वह कितनाही अच्छानमाज़ी है,औरनिकट ही ऐसासमय आयेगा किआदमी के लिएउसके घोड़े केबांधने भर कीज़मीन का होनाजहाँ से वहबैतुलमक़्दिस कोदेख सके, उसकेलिए दुनिया कीसारी चीज़ों सेबेहतर होगा।”इसेहाकिम (4/509) नेरिवायत करकेसहीह कहा है,औरज़ह्बी तथाअल्बानी ने इसपर सहमति जताईहै जैसाकि “अस-सिलसिलाअस्सहीहा”मेंहदीस संख्या (2902)पर चर्चा केअंत में है।

मस्जिदनबवी में एकनमाज़ एक हज़ारनमाज़ के बराबरहै, तो इस तरहमस्जिदुलअक़्सा में एकनमाज़ अढ़ाई सौ (250)नमाज़ों केबराबर होगी।

जहाँतक उससुप्रसिद्ध हदीसका संबंध हैजिसमेंवर्णित है किउसके अंदर एकनमाज़ पाँच सौनमाज़ों केबराबर है तोवह हदीस ज़ईफ(कमज़ोर) है।देखिए : “तमामुलमिन्नह” लिश्शैखअल्बानीरहिमहुल्लाह(पृष्ठ 292).

-काना दज्जालउसमें प्रवेशनहीं करेगा,क्योंकिहदीस में हैकि : “वह पूरीधरती पर प्रकटकरेगा सिवायहरम और बैतुलमक़्दिस के।”इसेअहमद (हदीससंख्या : 19665) नेरिवायत कियाहै और इब्नेखुज़ैमा (2/327) औरइब्नेहिब्बान (7/102) नेइसे सहीह कहाहै।

-तथा दज्जालउसी के निकटक़त्ल कियाजायेगा, जिसेमसीह ईसा बिनमरियमअलैहिस्सलामक़त्ल करेंगे,जैसाकिहदीस में आयाहै कि “इब्नेमरियम दज्जालको लुद्द नामीद्वार पर क़त्लकरेंगे।” इसेमुस्लिम (हदीससंख्या : 2937) नेनव्वास बिनसम्आन की हदीससे रिवायतकिया है। “लुद्द”बैतुलमक़्दिस केनिकट एक स्थानहै।

-पैगंबरसल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमको रातों रातमस्जिदुलहराम सेमस्जिदुलअक़्सा ले जायागया, अल्लाहतआला नेफरमाया :

سبحانالذي أسرى بعبده ليلاً من المسجد الحرام إلى المسجد الأقصى [سورة الإسراء:1]

“बहुतपवित्र है वहअस्तित्व(अल्लाहसर्वशक्तिमान)जो अपने बंदेको रातों रातमस्जिदुल हरामसे मस्जिदुलअक़्सा तक लेगया।” (सूरतुलइस्रा : 1).

-वह मुसलमानोंका पहलाक़िब्ला है,जैसाकिबरारज़ियल्लाहुअन्हु सेवर्णित है कि :अल्लाह केपैगंबरसल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने सोलह यासत्तरह महीनेबैतुलमक़्दिस की ओरमुँह करकेनमाज़ पढ़ी . .इसेबुखारी (हदीससंख्या : 41) – औरशब्द उन्हींके हैं- औरमुस्लिम (हदीससंख्या : 525) नेरिवायत कियाहै।

-वह वह्य केउतरने कास्थान औरनबियों(ईश्दूतों) कास्थल है, औरयह बातसर्वज्ञात औरप्रमाणित है।

– वह उनमस्जिदों मेंसे है जिसकीओर इबादत करनेकी नीयत सेयात्रा की जासकती है।

अबूहुरैरहरज़ियल्लाहुअन्हु सेवर्णित है,वहनबीसल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमसे रिवायत करतेहैं कि आप नेफरमाया : “तीनमस्जिदों केअतिरिक्तकिसी अन्यस्थान के लिए(उनसे बरकतप्राप्त करनेऔर उन मेंनमाज़ पढ़ने केलिए) यात्रा नकी जाएःमस्जिदे हराम,रसूलसल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमकी मस्जिद औरमस्जिदेअक़्सा।” इसेबुखारी (हदीससंख्या : 1132) नेरिवायत कियाहै। तथामुस्लिम (हदीससंख्या : 827) नेअबू सईदख़ुदरी कीहदीस से इनशब्दों के साथरिवायत कियाहै कि : यात्रान करो . . .”

-पैगंबरसल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने मस्जिद अक़्साके अंदर एक हीनमाज़ मेंनबियों कीइमामत करवाई,एकलंबी हदीस हैजिसमें आया हैकि : “. . . चुनांचेनमाज़ का समयहो गया तो मैंने उनकी इमामतकरवाई।” इसेमुस्लिम (हदीससंख्या : 172) नेअबू हुरैरह कीहदीस सेरिवायत कियाहै।

अतःइन तीनोंमस्जिदों केअलावा पूजाप्रयोजन केलिए धरती परकिसी भी स्थानकी यात्राकरना जायज़नहीं है।

दूसरा:

याक़ूबअलैहिस्सलामके मस्जिदुलअक़्सा का निर्माणकरने का अर्थयह नहीं होताहै कि यहूद मस्जिदुलअक़्सा परमुसलमानों सेअधिक अधिकार रखतेहैं, क्योंकियाक़ूबअलैहिस्सलाममुवह्हिद(यानी एकेश्वरवादी)थे, जबकि यहूदमुशरिक(अनेकेश्वरवादी)हैं, अतः इसकामतलब यह नहींहोता है किउनके बाप याक़ूबने यदि मस्जिदका निर्माणकिया है तो वहउन्हीं की होगई, बल्किउन्हों ने उसेइसलिए बनायाथा ताकि एकेश्वरवादीउसमें नमाज़पढ़ें भले हीवे उनके बेटे(संतान) न हों,औरमुशरिकों(बहुदेववादियों)को उससे रोकाजायेगायद्यपि वेउनके बेटे हीक्यों न हों ;क्योंकिनबियों कीदावत (संदेश)जातीय नहीं थीबल्किधर्मपरायणता(ईश्भय) परआधारित थी।

तीसरा:

जहाँतक आपके यहकहने का संबंधहै कि नबीसल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने नमाज़ केअंदर पिछलेनबियों कीइमामत करवाईजिससे संदेशऔर ईश्वरीयवह्य कीपुष्टि होतीहै तो यहनबियों के मूलधर्म और उनकेअक़ीदे केदृष्टिकोण सेसही हैक्योंकि सभीपैगंबर एक हीस्रोत सेग्रहण करतेहैं और वहवह्य है और उनसबका अक़ीदातौहीद(एकेश्वरवाद)का अक़ीदा और उपासनाको मात्रअल्लाह के लिएविशिष्ट करनेका अक़ीदा है,भलेही विस्तार केपहलू से उनकेधर्म-शास्त्र केप्रावधानविभिन्न हैं,औरइसकी पुष्टिहमारे नबीसल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने अपने इसकथन से की है : “मैंदुनिया वआखिरत में ईसाबिन मरियम कालोगों मेंसबसे अधिकहक़दार हूँ औरअंबियाअल्लाती(पैतृक) भाईहैं, उनकीमाँये अलग अलगहैं और उनकादीन एक है।”इसेबुखारी (हदीससंख्या : 3259) औरमुस्लिम (हदीससंख्या : 2365) नेरिवायत कियाहै।

“अल्लातीभाई” का मतलबहै ग़ैर सगेभाई जो माँ कीतरफ से सौतीलेहोते हैं औरउनके बाप एकहोते हैं।

यहाँपर हम यहअक़ीदा रखने सेसावधान करतेहैं कि यहूदी,ईसाईऔर मुसलमान इससमय एक हीस्रोत पर हैं ;क्योंकियहूदियों नेअपने नबी केधर्म को बदल डाला,बल्किउनके पैगंबरके धर्म मेंयह बात है कि वेहमारे नबी काअनुसरण करेंऔर उनके साथकुफ्र न करें,जबकिवे मुहम्मदसल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमकी नुबुव्वतके साथ कुफ्रकरते हैं औरअल्लाह के साथशिर्क करतेहैं।

चौथा:

यहूदियोंका अल-क़ुद्स(यरूशलम) मेंकोई हिस्सानहीं है ; क्योंकिउसकी धरती परअगरचे वे पहलेनिवास कर चुकेहैं, लेकिन दोकारणों से वहमुसलमानों केलिए हो गई है :

1-यहूदियों नेकुफ्र किया औरबनू इस्राईलमें से उनविश्वासियोंके धर्म परबाक़ी नहीं रहेजिन्हों नेमूसा और ईसाअलैहिमस्सलामका अनुसरण औरसमर्थन वसहयोग किया।

2-हम मुसलमानलोग उसके इनलोगों से अधिकहक़दार हैं,क्योंकिधरती उसके लिएनहीं होती हैजिसनेसर्वप्रथमउसे आबाद कियाहै, बल्किउसके लिए होतीहै जो उसमेंअल्लाह के हुम्क(नियम) को क़ायम(स्थापित)करता है, इसलिएकि अल्लाहतआला ने धरतीको और लोगोंको इसलिए पैदाकिया है कि वेउसमें अल्लाहकी उपासनाकरें और उसमेंअल्लाह केधर्म, उसकीशरीअत और उसकेहुक्म को क़ायमऔर लागू करें,अल्लाहतआला नेफरमाया :

إن الأرض لله يورثها من يشاء من عباده والعاقبة للمتقين [سورة الأعراف:128]

“निःसंदेहयह धरतीअल्लाह तआलाकी है, वहअपने बंदोंमें से जिसेचाहता है उसकावारिस बनादेता है औरअंतिमकामयाबी उन्हींकी होती है जोअल्लाह सेडरते हैं।”(सूरतुलआराफ : 128).

इसीलिएअगर कोई अरबक़ौम आए जोइस्लाम धर्मपर न हो औरकुफ्र के साथउस पर शासनकरे तो उस सेलड़ाई कीजायेगी यहाँतक कि वहइस्लाम केफैसले के अधीनहो जाए याउन्हें क़त्लकर दियाजायेगा।

अतःसमस्या औरमुद्दा जातिऔर समुदाय कानहीं है, बल्कितौहीद(एकेश्वरवाद)और इस्लाम कामुद्दा है।

अधिकजानकारी औरफायदे के लिएहम कुछशोधकर्ताओंकी बातों काउल्लेख करतेहैं :

“इतिहासइस बात कोप्रमाणितकरती है किसबसे पहलेजिसनेफिलिस्तीनमें आवास कियावे कन्आनी हैं,जिन्होंने छः हज़ारवर्ष ईसापूर्व मेंवहाँ निवासग्रहण किया,वेएक अरबी क़बीलाथे जो अरबमहाद्वीप सेफिलिस्तीन आए,औरउनके वहाँआगमन से उसक्षेत्र कानाम उन्हीं केनाम पर पड़गया।” “अस्सहयूनीयह,नश्अतुहा,तंज़ीमातुहा,अनशितातुहा : अहमदअल-इवज़ी” (पृष्ठ: 7)

जहाँतक यहूदियोंका संबंध हैतो वे पहलीबार फिलिस्तीनमें इब्राहीमअलैहिस्सलामके प्रवेशकरने के लगभगछः सौ साल बाददाखिल हुए,अर्थातवे लगभग 1400 (चौदहसौ साल) ईसापूर्व दाखिल हुए,इसतरह कन्आनीलोग यहूदियोंसे लगभग चारहज़ार पाँच सौवर्ष पूर्वफिलिस्तीनमें प्रवेशकिए और वहाँनिवास किए।”उपर्युक्तहवाला (पृष्टः8).

इससेयह प्रमाणितहो जाता है कियहूदियों का फिलिस्तीनकी धरती परकोई अधिकारनहीं है, न तोधार्मिकअधिकार है औरन ही पहलेनिवास करने औरज़मीन केस्वामित्व काअधिकार है,औरवे लोग ग़सबकरने वाले औरहमलावर हैं,हमअल्लाह तआलासे प्रश्नकरते हैं किउनसे बैतुलमक़्दिस कोशीघ्र हीआज़ादी दिलाए,निःसंदेहवह इस परशक्तिमान औरक़बूल करने केयोग्य है,औरसभी प्रशंसाकेवल अल्लाहके लिए योग्यहै।

इस्लामप्रश्न औरउत्तर

स्रोत

शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद

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