मैं ने तीन बार इस्लाम को त्याग कर दिया और फिर इस्लाम की ओर लौट आया, और मैं समझता हूँ कि यह उन आस्थाओं और मान्यताओं के कारण हैं जो मुझे पिला दी गई हैं, प्रश्न यह है कि मैं अपने दिल में ईमान और तक़्वा को कैसे मज़बूत करूँ ?
इस्लाम से तीन बार मुर्तद्द हुआ
प्रश्न: 7810
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाहके लिए योग्य है।
अल्लाह तआला का फरमान हैः
] إِنَّ الدِّينَعِنْدَ اللَّهِ الإِسْلامُ[[ آل عمران: 19].
“निःसन्देहअल्लाह के निकट धर्म इस्लाम ही है।”(सूरत-आल इम्रानः 19)
तथा फरमायाः
]وَمَن يَبْتَغِ غَيْرَالإِسْلاَمِ دِيناً فَلَن يُقْبَلَ مِنْهُ وَهُوَ فِي الآخِرَةِ مِنَالْخَاسِرِينَ [ [آل عمران: 85]
“औरजो व्यक्ति इस्लाम के सिवा कोई अन्य धर्म ढूंढ़े गा, तो वह (धर्म) उस से स्वीकार नहींकिया जायेगा, और आखिरत में वह घाटा उठाने वालों में से होगा।” (सूरत आल-इम्रान:85)
इस्लाम की वास्तविकतायह है कि अकेले अल्लाह जिसका कोई साझी नहीं, की उपासना और आज्ञापालन तथा उसके पैगंबरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आज्ञापालन करते हुए अपने आपको एकमात्र अल्लाह के प्रतिसमर्पित कर दिया जाये। तथा इस्लाम धर्म का आधार “ला-इलाहा इल्लल्लाह” (अल्लाहके अलावा कोई वास्तविक पूज्य नहीं) और “मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह” (मुहम्मद-सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- अल्लाह के संदेष्टा – पैगंबर- हैं) की गवाही है। अतः प्रत्येकमुसलमान पर अनिवार्य है कि वह इस्लाम धर्म का निष्ठावान बने।चुनांचे वह इबादत (उपासना)को केवल अल्लाह के लिए विशिष्ट करे और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आज्ञापालन करे।जो व्यक्ति इसपर सुदृढ़ रूप से जमा रहा यहाँ तक कि उसकी मृत्यु आगई तो वह स्वर्गवासियोंमें से है। और जो व्यक्ति इस्लाम में प्रवेश नहीं किया यहाँ तक कि वह मर गया तो वहनरकवासियों में से है। और जो व्यक्ति उसमें प्रवेश किया फिर उस से पलट गया और उसे त्यागकर दिया तो वह काफिर (नास्तिक) और मुर्तद्द हो गया। यदि वह अपने कुफ्र की अवस्था मेंही मर गया तो वह नरकवासी होगा,और यदि उसने तौबा (पश्चाताप) कर लिया और इस्लामकी तरफ वापस लौट आया और मरने तक उस पर जमा रहा तो उसका धर्म से मुर्तद्द हो जाना उसेहानि नहीं पहुँचाये गा,और वह स्वर्गवासियोंमें से होगा,यद्यपि वह एक से अधिकबार मुर्तद्द हुआ हो। किंतु जो व्यक्ति कई बार मुर्तद्द हुआ है उसके बारे में इस बातका भय है कि उसे तौबा (पश्चाताप) करने की तौफीक़ (अवसर) न प्राप्त हो। [क्योंकि अल्लाहतआला का फरमान है:
] إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا ثُمَّكَفَرُوا ثُمَّ آمَنُوا ثُمَّ كَفَرُوا ثُمَّ ازْدَادُوا كُفْرًا لَمْ يَكُنْاللَّهُ لِيَغْفِرَ لَهُمْ وَلا لِيَهْدِيَهُمْ سَبِيلا[ (سورۃ النساء: 137)
“जोलोग ईमान लाये फिर उन्हों ने कुफ्र किया फिर ईमान लाये फिर कुफ्र किया फिर कुफ्र मेंबढ़ गये तो अल्लाह तआला उन्हें क्षमा नहीं करेगा और न तो उन्हें मार्ग दर्शायेगा।”(सूरतुन निसा: 137) ]
अतः ऐ प्रश्नकर्ता भाई ! आप शुद्ध तौबा करनेमें जल्दी करें और इस्लाम पर जम जायें और उसके उन कर्तव्यों की पाबंदी करें जिन्हेंअल्लाह तआला ने अपने बंदों पर अनिवार्य कर दिया है,और इनमें सबसे महान कर्तव्यपाँच समय की नमाज़ें हैं। तथा गुनाहों से दूर रहें,और अपने पालनहार से प्रश्नकरें कि वह अपने धर्म पर सुदृढ़ रखे। यदि आपको आलस्य या कमज़ोरी का सामना हो तो अल्लाहतआला से सहायता माँगें, और शैतान से अल्लाह का शरण ढूँढ़ें। यदि आपके मन में वस्वसाउत्पन्न हो जो आप को इस्लाम या उसके कुछ सि़द्धांतों के बारे में आप को शंका में डालदे तो आप उस से उपेक्षा करें और शैतान से अल्लाह के शरण में आ जायें और कहें कि मैंअल्लाह और उसके पैगंबर पर ईमान लाया। इसी प्रकार आप अल्लाह की किताब (क़ुरआन) का पाठकरें और ऐसी किताबों को पढ़ें जो इस्लाम को आपके निकट पसंदीदा बनाने वाली हों और आपेके अंदर अल्लाह की आज्ञाकारिता की रूचि पैदा करने वाली हों,उदाहरण के तौर पर इमामनववी की किताब (रियाज़ुस्सालिहीन),अल्लामा अब्दुर्रहमान अस्सअदी की तफ्सीर (व्याख्या)(तैसीर कलामिर्रहमान फी तफ्सीर कलामिल मन्नान). तथा उन किताबों से दूर रहें जो इस्लाममें शंका और संदेह पैदा करती हैं,और आपके लिए गुनाहों को सुसज्जित करती हैं।तथा कुसंगों से बचे क्योंकि वे मानव के रूप में शैतान हैं,तथा आप ऐसे साथियों कोलाज़िम पकड़ें जो दीन पर सुदृढ़ रहने पर आपकी सहायता करें। तथा दीन के बारे में बहस करनेसे बचें क्योंकि यह चिंता और असमंजस का कारण बनता है, तथा अल्लाह तआला की आज्ञाकारितामें संघर्ष करें; क्योंकि वह संघर्ष करने वालों को शुद्ध मार्ग दर्शाता है,अल्लाह तआला का फरमानहै:
]وَالَّذِينَ جَاهَدُوا فِينَالَنَهْدِيَنَّهُمْ سُبُلَنَا وَإِنَّ اللَّهَ لَمَعَ الْمُحْسِنِينَ [(سورةالعنكبوت : 69)
“और जिन लोगों ने हमारे लिए संघर्ष कियाहम अवश्य ही उन्हें अपना मार्ग दर्शायेंगे,और अल्लाह तआला तो सदाचारियों के साथ है।”(सूरतुल अंकबूत: 69)
स्रोत:
फज़ीलतुश्शैख अब्दुर्रमान अल-बर्राक