मैं पवित्र क़ुर्आन की तिलावत के नियम सीखने के पाठ में उपस्थित होता हूँ . . . किंतु अध्यापक सभी उपस्थित लोगों से मुतालबा करता है कि वे पाठ शुरू होने से पहले 300 बार (मौन रूप् से) नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद व सलाम पढ़ें . . उसका कहना है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद भेजना क़ियामत के दिन आपसे निकटता का कारण है, और उसने उल्लेख किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “तुम में सबसे अधिक मेरे ऊपर दुरूद भेजने वाला क़ियामत के दिन मुझसे सबसे अधिक निकट होगा।”, तो क्या उनके साथ इस तरह की चीज़ों में भाग लेना जायज़ है ? अन्यथा क्या मेरे लिए चुपके से कोई अन्य ज़िक्र जैसे इस्तिग़फार इत्यादि पढ़ना जायज़ है ?
शिक्षक उनसे सबक से पहले 300 बार नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद पढ़ने के लिए कहता है।
प्रश्न: 82559
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
सबक़ से पहले इस संख्या के साथ नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमपर दुरूद पढ़ने की पाबंदी करना, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमके तरीक़े से प्रमाणित नहीं है, और न ही आपके सहाबा रज़ियल्लाहुअन्हुम तथा भलाई के साथ उनका अनुसरण करने वाले (ताबेईन) के तरीक़े से ही साबित है, और जो चीज़ इस तरह हो वह बिदअतों और नई अविष्कार कर ली गई चीज़ोंमें से है, जिनसे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने इस कथनद्वारा हमें रोका और सवाधान किया है : “औरधर्म में नयी ईजाद कर ली गयी चीज़ों (नवाचार) से बचो, क्योंकि(धर्म में) हर नई ईजाद कर ली गई चीज़ बिद्अत है, और हर बिद्अतगुमराही (पथ भ्रष्टता) है।” इसेतिर्मिज़़ी (हदीस संख्या : 2600), अबू दाऊद (हदीस संख्या :3991) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 42) ने रिवायत किया है, और अल्बानी ने सहीहुल जामे (हदीस संख्या : 2549) ने सही कहाहै।
तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरामन है :
“जिसने कोई ऐसा काम किया जो हमारी शरीअत के अनुसार नहीं है तो उसे रद्द (अस्वीकृत) कर दियाजायेगा।’’ इसे मुस्लिम (हदीस संख्या:1718) ने रिवायत किया है।
इस कार्य के बिद्अतों और नवाचारों में से होने का कारण यह हैकि : इबादत का अपने आप में, उसकी कैफियत, उसके समय और उसकीमात्रा में धर्मसंगत होना ज़रूरी है,क्योंकि अल्लाहकी उपासना उसी चीज़ के द्वारा की जायेगी जिसे उसने अपनी किताब (क़ुर्आन) में या अपनेपैगंबरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ज़ुबानीवैध और धर्मसंगत बनाया है।
और ज़िक्र (जप) कभी मूलतः धर्म संगत होती है, किंतु उसके साथ ऐसी कैफियत जोड़ दी जाती है, या किसी स्थान,या ज़मानेया संख्या के साथ उसे संबंधित कर दिया जाता है जो उसे बिदअत व नवाचार की गणना में पहुँचादेती है।
इसका प्रमाण वह हदीस है जिसे इमाम दारमी (हदीस संख्या :204) ने अम्र बिन सलमह से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : हम नमाज़े फज्र से पहलेअब्दुल्लाह बिन मस्ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु के द्वार पर बैठ जाते और जब वह घर से निकलतेतो उन के साथ मस्जिद रवाना होते। एक दिन की बात है कि अबू मूसा अश्अरी रज़ियल्लाहु अन्हुआए और कहा क्या अबू अब्दुर्रहमान (यानी अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद) निकले नहीं ? हम ने उत्तर दियाः नहीं, यह सुन कर वह भी हमारे साथ बैठ गए, यहाँ तक कि इब्ने मस्ऊद बाहर निकले, और हम सब उनकी ओर खड़े हो गए, तो अबू मूसाअश्अरी उन से सम्बोधित हुए और कहाः ऐ अबू अब्दुर्रहमान! मैं अभी अभी मस्जिद में एकविचित्र बात देख कर आ रहा हूँ, हालाँकि जो बात मैं ने देखी हैवह अल्हमदुलिल्लाह भली ही है। इब्ने मस्ऊद ने कहा कि वह कौन सी बात है ? अबू मूसा अश्अरी ने कहा कि अगर ज़िन्दगी रही तो शीघ्र ही आप भीदेख लें गे। कहा : वह बात यह है कि कुछ लोग नमाज़ की प्रतीक्षा में मस्जिद के भीतर हलक़ेबनाए बैठे हैं, उन सब के हाथों में कंकरियाँहैं, और हर हलक़ा में एक आदमी नियुक्त है जो उनसे कहता हैकि सौ बार अल्लाहु अक्बर कहो, तो सब लोग सौ बार अल्लाहु अक्बरकहते हैं, फिर कहता है कि सौ बार ला इलाहा इल्लल्लाह कहो, तो सब लोग सौ बार ला इलाहा इल्लल्लाह कहते हैं, फिर कहता है कि सौ बार सुब्हानल्लाह कहो, तो सब लोग सौ बार सुब्हानल्लाह कहते हैं। इब्ने मस्ऊद ने कहाकि फिर आप ने उन से क्या कहा ॽ अबूमूसा ने जवाब दिया कि आप की राय और आपके आदेश की प्रतीक्षा में, मैं ने उन से कुछ नहीं कहा। इब्ने मस्ऊद ने फरमाया कि आप नेउन से यह क्यों न कह दिया कि अपने अपने गुनाह शुमार करो, और फिर इस बात का ज़िम्मा ले लेते कि उनकी कोई भी नेकी नष्ट नहींहोगी।
यह कह कर इब्ने मस्ऊद मस्जिद की ओर रवाना हुए और हम भी उन केसाथ चल पड़े, मस्जिद पहुँच कर इब्ने मस्ऊदउन हलक़ों में से एक हलक़े के पास खड़े हुए और फरमायाः तुम लोग क्या कर रहे हो ? उन्हों ने जवाब दिया कि ऐ अबू अब्दुर्रहमान! यह कंकरियाँ हैंजिन पर हम तक्बीर, तह्लील और तस्बीह गिन रहे हैं, इब्ने मस्ऊद ने फरमाया : इसके बजाय, तुम अपने गुनाह गिनो और मैं इस बात का ज़िम्मा लेता हूँ कि तुम्हारीकोई भी नेकी नष्ट नहीं होगी, तुम्हारी खराबी हो ऐ उम्मते मुहम्मद!कि अभी तो तुम्हारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबा अधिक संख्या में उपस्थितहैं, अभी आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के छोड़े हुए कपड़े नहींफटे, आप के बर्तन नहीं टूटे और तुम इतनी जल्दी तबाही के शिकारहो गए! क़सम है उस ज़ात की जिस के हाथ में मेरी जान है! तुम या तो एक ऐसी शरीअत पर चलरहे हो जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की शरीअत से श्रेष्ठ है, या गुमराही (पथ भ्रष्टता) का द्वार खोल रहे हो। उन्हों ने कहाकि ऐ अबू अब्दुर्रहमान! अल्लाह की क़सम इस काम से खैर व भलाई के सिवाय हमारा कोई औरउद्देश्य नहीं है, इब्ने मस्ऊद ने फरमायाः खैर केकितने आकांक्षी ऐसे हैं जो खैर तक कभी पहुँच ही नहीं पाते। अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम ने हम से एक हदीस बयान फरमाई है कि एक क़ौम ऐसी होगी जो क़ुरआन पढ़ेगी, किन्तु क़ुर्आन उनके गले से नीचे नहीं उतरेगा। अल्लाह की क़सम!क्या पता कि उन में से अधिकतर लोग शायद तुम्हीं में से हों। यह बातें कह कर इब्ने मस्ऊदरज़ियल्लाहु अन्हु उनके पास से वापस चले गए।
अम्र बिन सलमह रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि इन हलक़ों केअधिकांश लोगों को हम ने देखा कि नहरवान की लड़ाई में वे खवारिज के साथ-साथ हम से नेज़ाज़नी कर रहे थे।
आप अबू मूसा और अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हुमा के इसव्यवहार (रवैये) पर विचार करें, और देखें कि उन दोनों ने इस कैफियतका जिसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने किया था और न ही आपके सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुमने किया था, किस तरह इनकार और खण्डन किया, यद्यपि मूलतः ज़िक्र करना धर्मसंगत, वांछित और पसंदीदा है।
विद्धानों ने इस बात पर चेतावनी दी है कि इबादत को किसी समयया स्थान के साथ विशिष्ट करना, और उसकी ऐसी कैफियत निर्धारितकर लेना जो वर्णित नहीं है, उसे बिद्अतों और नवाचारों सेजोड़ देता है, और उस समय उसका नाम वृद्धि कीबिदअत रखा जाता है, चुनाँचे वह बुनियादी तौर पर धर्मसंगतहै, परंतु उसके साथ जोड़ दिये गये गुण के ऐतिबार से अस्वीकृत है।
शातिबी रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “बिदअत धर्म में एक ऐसे तरीक़े का नाम है जिसे गढ़ लिया गया हैजो शरीअत की बराबरी करता है, जिस पर चलने का मक़सद अल्लाह सुब्हानुव तआला की उपासना में अतिश्योक्ति से काम लेना होता है . . .
उन्हीं (बिदअतों) में से : निर्धारित तरीक़ों और कैफियतोंकी पाबंदी करना है, जैसे कि मिलजुलकर एक ही आवाज़में ज़िक्र करना, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म के दिन को उत्सव (खुशी) का अवसरबना लेना, और इसके समान अन्य चीज़ें।
उन्हीं में से : कुछ निर्धारित समयों में कुछ निर्धारित इबादतों कीप्रतिबद्धता है, जिसका निर्धारण शरीअत में वर्णितनहीं है, जैसे कि पंद्रह शाबान के दिन रोज़ा रखना, और उसकी रात को क़ियाम करना।
“अल-एतिसाम” (1/37-39) से समाप्त हुआ।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद भेजना सबसे बड़ी इबादतोंऔर अल्लाह की निकटता के महान कामों में से है, किंतु तिलावत के प्रत्येक पाठ से पहलेऔर इस विशिष्ट संख्या के साथ उसकी पाबंदी करना, शरीअत में वर्णित नहीं है। अतः वह नयीअविष्कार कर ली गई बिदअत है, भले ही उसका करनेवाला भलाई काइरादा रखता है, क्योंकि कितने ही भलाई के अभिलाषीऐसे हैं जो भलाई को नहीं पाते हैं,जैसाकि इब्नेमसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु का कथन है।
इस शिक्षक को नसीहत करना और यह स्पष्ट करना अनिवार्य है कि वहजो कुछ कर रहा है वह सुन्नत नहीं है,बल्कि वहएक बिद्अत है, यदि वह इस बात को स्वीकार करले तो अल्लाह ही के लिए सर्वप्रशंसा है, और यदि वहइस बात को न माने और किसी दूसरे सुन्नत के पैरोकार से तिलावत सीखना संभव है, तो इसकीभर्त्सना के तौर पर, और इस बात से सावधानी और बचाव के तौर पर कि उसके हाथ पर पढ़ने वालोंके अंदर वह बिदअत सरायत न कर जाए, उसे छोड़ दिया जायेगा।
अल्लाह तआला हमें और आपको सुननत की मोहब्बत, उसकी रक्षा,और नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम और आपके पवित्र पुनीत सहाबा की मोहब्बत प्रदान करे।
तथा अधिक लाभ के लिए प्रश्न संख्या (20005), (21902) और (22457) देखें।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर