मैं सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम की प्रतिष्ठा एवं श्रेष्ठता के बारे में स्पष्टीकरण चाहता हूँ, तथा दूसरों की तुलना में उनकी क्या उत्कृष्टताएँ हैंॽ
सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम की प्रतिष्ठा
प्रश्न: 83121
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम की न्यायशीलता और प्रतिष्ठा व श्रेष्ठता को मानना अहलुस-सुन्नह वल-जमाअह का मत (सिद्धांत) है। क्योंकि अल्लाह ने अपनी पुस्तक में उनकी प्रशंसा की है और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत में भी उनकी प्रशंसा की गई है। ये नुसूस (ग्रंथ) बहुत-से संदर्भों में मुतवातिर के स्तर तक पहुँचते हैं, जो स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि सर्वशक्तिमान अल्लाह ने उन्हें ऐसे सद्गुण और महान विशेषताएं प्रदान की थीं, जिसके माध्यम से उन्होंने उसके पास वह महान सम्मान एवं प्रतिष्ठा और वह उच्च स्थान प्राप्त किया।
जिस तरह सर्वशक्तिमान अल्लाह अपने संदेश के लिए अपने बंदों के दिलों में से वह स्थान चुनता है जो उसके लिए योग्य होता है, उसी तरह वह सर्वशक्तिमान नुबुव्वत की विरासत के लिए, ऐसे व्यक्ति को चुनता है जो इस नेमत के लिए आभारी होता है और इस सम्मान के योग्य होता है। जैसाकि सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :
اللَّهُ أَعْلَمُ حَيْثُ يَجْعَلُ رِسَالَتَهُ
الأنعام/ 124
“अल्लाह अधिक जानने वाला है जहाँ वह अपनी पैग़ंबरी रखता है।” (सूरतुल-अनआम : 124)
इब्नुल-क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने कहा: “अल्लाह महिमावान बेहतर जानता है जहाँ वह अपने संदेशों को रखता है, मूल रूप से भी और विरासत के रूप में भी। वह सबसे अच्छी तरह जानता है कि कौन उसके संदेश को प्राप्त करने और उसे उसके बंदों तक अमानतदारी और ख़ैरख्वाही के साथ पहुँचाने, भेजने वाले का सम्मान करने और उसके प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करने, धैर्यपूर्वक उसके आदेशों का पालन करने और उसकी नेमतों के लिए कृतज्ञता दिखाने और उसकी निकटता प्राप्त करने के लिए उपयुक्त है, और कौन इन सब के लिए उपयुक्त नहीं है। इसी तरह, वह महिमावान इस बारे में सबसे अधिक जानकार है कि समुदायों में से कौन उसके रसूलों का वारिस बनने और उनकी खिलाफत चलाने और जो संदेश उन्होंने अपने पालनहार की ओर से पहुँचाया है उसे आगे बढ़ाने के लिए उपयुक्त है।” (तरीक़ुल-हिजरतैन, पृष्ठ 171)
अल्लाह तआला ने फरमाया :
وَكَذَلِكَ فَتَنَّا بَعْضَهُمْ بِبَعْضٍ لِيَقُولُوا أَهَؤُلاءِ مَنَّ اللَّهُ عَلَيْهِمْ مِنْ بَيْنِنَا أَلَيْسَ اللَّهُ بِأَعْلَمَ بِالشَّاكِرِينَ
الأنعام/53
“और इसी प्रकार हमने उनमें से कुछ को कुछ के द्वारा परीक्षा में डाला, ताकि वे कहें : क्या यही लोग हैं, जिनपर अल्लाह ने हमारे बीच में से उपकार किया है? क्या अल्लाह शुक्र करने वालों को अधिक जानने वाला नहीं?” (सूरतुल-अनआम : 53).
शैख अस-सा’दी रहिमहुल्लाह ने कहा : “जो लोग अनुग्रह (नेमत) को पहचानते, उसे स्वीकार करते और उसकी अपेक्षा के अनुसार अच्छे कर्म करते हैं, तो वह अपनी कृपा और उपकार उन पर ही करता है, न कि उसपर जो आभारी नहीं है। क्योंकि सर्वशक्तिमान अल्लाह व्यापक हिकमत वाला है, वह अपना अनुग्रह उसपर नहीं करता जो उसका पात्र नहीं है।”
जिस तरह आयतों और हदीसों में उनके गुणों और उच्च स्थिति का उल्लेख किया गया है, उसी तरह उन कारणों का भी उल्लेख किया गया है जिनके द्वारा वे इन उच्च पदों के योग्य बने। उन्हीं में से एक सर्वशक्तिमान अल्लाह का यह कथन है :
مُّحَمَّدٌ رَّسُولُ اللَّهِ وَالَّذِينَ مَعَهُ أَشِدَّاء عَلَى الْكُفَّارِ رُحَمَاء بَيْنَهُمْ تَرَاهُمْ رُكَّعاً سُجَّداً يَبْتَغُونَ فَضْلاً مِّنَ اللَّهِ وَرِضْوَاناً سِيمَاهُمْ فِي وُجُوهِهِم مِّنْ أَثَرِ السُّجُودِ ذَلِكَ مَثَلُهُمْ فِي التَّوْرَاةِ وَمَثَلُهُمْ فِي الْإِنجِيلِ كَزَرْعٍ أَخْرَجَ شَطْأَهُ فَآزَرَهُ فَاسْتَغْلَظَ فَاسْتَوَى عَلَى سُوقِهِ يُعْجِبُ الزُّرَّاعَ لِيَغِيظَ بِهِمُ الْكُفَّارَ وَعَدَ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ مِنْهُم مَّغْفِرَةً وَأَجْراً عَظِيماً
الفتح/29
“मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं और वे लोग जो उनके साथ हैं, काफ़िरों पर बहुत सख़्त हैं, आपस में बहुत दयालु हैं। तुम उन्हें रुकू’ करते हुए, सजदा करते हुए, अल्लाह का अनुग्रह और (उसकी) प्रसन्नता तलाश करते हुए देखोगे। उनकी निशानी उनके चेहरों पर है, सजदों के चिह्न से। यह उनका विवरण तौरात में है। तथा इंजील में उनका विवरण उस खेती की तरह है, जिसने अपना अंकुर निकाला, फिर उसे प्रबल किया, फिर वह मोटा हो गया, फिर वह अपने तने पर सीधा खड़ा हो गया। वह किसानों को खुश करता है, ताकि उनके द्वारा काफिरों को गुस्सा दिलाए। अल्लाह ने उनमें से उन लोगों से, जो ईमान लाए तथा उन्होंने अच्छे कर्म किए, बड़ी क्षमा तथा बहुत बड़े प्रतिफल का वादा किया है।” (सूरतुल फत्ह : 29)
सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम की उच्च स्थिति का एक सबसे बड़ा कारण यह है कि सर्वशक्तिमान अल्लाह ने उनके दिलों की पवित्रता और ईमान की सच्चाई के बारे में गवाही दी है और यह – अल्लाह की क़सम – बंदों के पालनहार की ओर से एक महान गवाही है, जिसे कोई भी मनुष्य वह़्य का सिलसिला बंद होने के बाद प्राप्त नहीं कर सकता।
सर्वशक्तिमान अल्लाह का यह कथन सुनें :
لَقَدْ رَضِيَ اللَّهُ عَنِ الْمُؤْمِنِينَ إِذْ يُبَايِعُونَكَ تَحْتَ الشَّجَرَةِ فَعَلِمَ مَا فِي قُلُوبِهِمْ فَأَنزَلَ السَّكِينَةَ عَلَيْهِمْ وَأَثَابَهُمْ فَتْحاً قَرِيباً
الفتح/18
“निःसंदेह अल्लाह ईमान वालों से प्रसन्न हो गया, जब वे वृक्ष के नीचे आपसे बैअत कर रहे थे। तो उसने जान लिया जो कुछ उनके दिलों में था। अतः उनपर शांति उतार दी और उन्हें बदले में एक निकट विजय प्रदान की।” (सूरतुल-फ़त्ह : 18)
इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह “तफसीर अल-कुरआन अल-अज़ीम” (4/243) में कहते हैं :
“तो उसने जान लिया जो कुछ उनके दिलों में था : अर्थात् : सच्चाई, वफादारी, (अल्लाह एवं रसूल की बातों को) सुनना और आज्ञापालना करना।” उद्धरण समाप्त हुआ।
तथा अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु ने कितनी अच्छी बात कही है : “तुममें से जो कोई किसी के मार्ग पर चलना चाहता हो, वह उनके मार्ग पर चले जो मर चुके, क्योंकि जीवित लोग फित्ने (प्रलोभन) में पड़ने से सुरक्षित नहीं रहते हैं ; वे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबा (साथी) हैं, जो इस उम्मत के सर्वश्रेष्ठ लोग थे ; वे सबसे अच्छे दिल वाले, सबसे गहरे ज्ञान वाले और सबसे कम तकल्लुफ करने वाले लोग थे, वे ऐसे लोग थे जिन्हें अल्लाह ने अपने नबी की संगति और अपने धर्म की स्थापना के लिए चुना था। अतः तुम उनके गुणों को पहचानो और उनके नक्शेक़दम पर चलो, और तुमसे जितना हो सके उनके नैतिक मूल्यों और धर्म का दृढ़ता से पालन करो, क्योंकि वे सीधे मार्ग पर थे।” इसे इब्ने अब्दुल-बर्र ने “अल-जामे’” (1810) में रिवायत किया है।
अल्लाह ने मुहाजिरीन और अनसार से जन्नतों और शाश्वत आनंद का वादा किया और उनपर अपनी प्रसन्नता की सूचना क़ुरआन की आयतों में उतारी, जो क़ियामत के दिन तक पढ़ी जाएँगी। क्या यह कल्पना की जा सकती है कि यह किसी ऐसे व्यक्ति के लिए होगा जो श्रेय का पात्र नहीं है?!
सर्वशक्तिमान अल्लाह फरमाता है :
وَالسَّابِقُونَ الأَوَّلُونَ مِنَ الْمُهَاجِرِينَ وَالأَنصَارِ وَالَّذِينَ اتَّبَعُوهُم بِإِحْسَانٍ رَّضِيَ اللّهُ عَنْهُمْ وَرَضُواْ عَنْهُ وَأَعَدَّ لَهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي تَحْتَهَا الأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَداً ذَلِكَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ
التوبة:100
“तथा सबसे पहले (ईमान की ओर) आगे बढ़ने वाले मुहाजिरीन और अंसार और जिन लोगों ने नेकी के साथ उनका अनुसरण किया, अल्लाह उनसे प्रसन्न हो गया और वे उससे प्रसन्न हो गए तथा उसने उनके लिए ऐसी जन्नतें तैयार कर रखी हैं, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं। वे उनके अंदर हमेशा रहेंगे। यही बड़ी सफलता है।” (सूरतुत-तौबा : 100)
मानव जाति के प्रमुख तथा रसूलों और नबियों के इमाम ने उनकी प्रतिष्ठा की गवाही दी। आप अपने जीवनकाल में उनपर गवाह थे; उनके बलिदानों को देखा और उनके संकल्प की सच्चाई को समझा। इसलिए आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने साथियों के सम्मान और उनके प्रति अपने प्यार के बारे में अमर शब्द कहे।
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मेरे सहाबा (साथियों) को बुरा-भला न कहो, क्योंकि उसकी क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है, अगर तुममें से कोई उहुद के बराबर सोना भी खर्च करे, तो वह उनमें से किसी एक के एक मुद के बराबर या उसका आधा भी नहीं होगा।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 3673) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2540) ने रिवायत किया है।
अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते है कि आपने फरमाया : ”सबसे अच्छे मेरी पीढ़ी के लोग हैं, फिर वे लोग जो उनके बाद आएँगे, फिर वे लोग जो उनके बाद आएँगे।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 2652) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2533) ने रिवायत किया है।
खतीब अल-बग़दादी रहिमहुल्लाह “अल-किफाया” (49) में कहते हैं :
“हालाँकि, अगर उनके बारे में सर्वशक्तिमान अल्लाह और उसके रसूल की ओर से कुछ भी वर्णित न हुआ होता, फिर भी वे हिजरत (प्रवासन), जिहाद, इस्लाम के समर्थन, अपनी जानों और धनों को खर्च करने, अपने (काफ़िर) पिता और बेटों को (जिहाद में) क़त्ल करने, धर्म के मामले में एक दूसरे को नसीहत करने, तथा ईमान और विश्वास की शक्ति की जिस स्थिति में थे, वह निश्चित रूप से उनकी न्यायशीलता (अच्छे चरित्र) और उनकी सत्यनिष्ठा की आस्था रखने को आवश्यक कर देती, और यह कि वे अपने बाद आने वाले सभी अच्छे चरित्र वाले (न्यायशील) लोगों से हमेशा के लिए बेहतर हैं। यह सभी विद्वानों और उन फुक़हा का विचार है जिनकी राय विश्वसनीय है।”
यदि हम उनकी उन स्थितियों और परिप्रेक्ष्यों की सूची बनाएँ जिनमें उन्होंने धर्म का समर्थन किया, और उनके उन कार्यों को सूचीबद्ध करें जिनके कारण वे उत्कर्ष और उच्च पद के पात्र हुए, तो लंबी-लंबी पोथियाँ हमारे लिए पर्याप्त नहीं होंगी। क्योंकि उनका पूरा जीवन सर्वशक्तिमान अल्लाह के मार्ग में गुज़रा। और कौन-सा कागज़ उन सैकड़ों सहाबा के जीवन को संजो सकता है जिन्होंने दुनिया को नेकी और अच्छाई से भर दियाॽ
इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं :
“अल्लाह ने अपने बंदों के दिलों में झाँका, तो उसने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का दिल लोगों के दिलों में सबसे अच्छा पाया। इसलिए उसने उन्हें अपने लिए चुना और उन्हें अपने संदेश के साथ भेजा। फिर उसने मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के दिल के बाद अपने बंदों के दिलों में झाँका, तो उसने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथियों के दिलों को लोगों के दिलों में सबसे अच्छा पाया। इसलिए उसने उन्हें अपने पैगंबर का मंत्री बना दिया, जो अपने धर्म के लिए लड़ाई करते हैं। अतः जो कुछ भी मुसलमान अच्छा समझें, वह अल्लाह के नज़दीक अच्छा है और जो कुछ भी वे बुरा समझें, वह अल्लाह के नज़दीक बुरा है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
इसे अहमद ने ‘‘अल-मुसनद’’ (1/379) में रिवायत किया है। अनुसंधान कर्ताओं ने कहा : इसकी इस्नाद (संचरण की श्रृंखला) हसन है।
प्रश्न संख्या (13713) और (45563) के उत्तरों में भी इस पर विस्तार से चर्चा की गई है।
दूसरी बात :
हमें यह बात आवश्यक रूप से जान लेनी चाहिए कि सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम मासूम (गलती से रहित) नहीं हैं। यही अह्ले सुन्नत वल-जमाअत का दृष्टिकोण है। बल्कि वे भी अन्य लोगों की तरह इनसान हैं, उनके साथ भी उस चीज़ का होना संभव है जो अन्य लोगों के साथ संभव है।
उनमें से किसी से जो भी पाप या गलती हुई है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ रहने के सम्मान और प्रतिष्ठा की तुलना में क्षम्य है और उसे माफ़ कर दिया गया। और अच्छे कर्म बुरे कर्मों को दूर कर देते हैं। तथा सहाबा में से किसी एक का नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ इस धर्म के मार्ग में क्षण भर के लिए खड़े होने की बराबरी किसी भी चीज़ से नहीं की जा सकती है।
शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह फरमाते हैं :
“अह्ले सुन्नत उनके बारे में अच्छी बातें कहते हैं, और उनके लिए दया और क्षमा की प्रार्थना करते हैं, लेकिन वे अल्लाह के रसूल के अलावा किसी और के बारे में यह मान्यता नहीं रखते हैं कि वह पापों पर और इज्तिहाद में गलती पर बने रहने से सुरक्षित है। अल्लाह के रसूल के अलावा किसी और के लिए पाप करना और गलती पर बना रहना संभव है। लेकिन वे वैसे ही हैं जैसे सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :
أُولَئِكَ الَّذِينَ نَتَقَبَّلُ عَنْهُمْ أَحْسَنَ مَا عَمِلُوا وَنَتَجَاوَزُ عَنْ سَيِّئَاتِهِمْ
الاحقاف/16 الآية
“यही वे लोग हैं, जिनके सबसे अच्छे कर्मों को हम स्वीकार करते हैं और उनकी बुराइयों को क्षमा कर देते हैं।” [सूरतुल-अहक़ाफ़ : 16]
कार्यों के गुण उनके परिणामों और फलों से आंके जाते हैं, उनके रूपों से नहीं।” [मजमूउल-फ़तावा 4/434].
यह बात क़ुरआन और सुन्नत में एक से अधिक स्थानों पर कही गई है :
अल्लाह ने उहुद के दिन लड़ाई से पीठ फेर लेने वाले सहाबा को माफ़ कर दिया। अल्लाह तआला ने फरमाया :
إِنَّ الَّذِينَ تَوَلَّوْاْ مِنكُمْ يَوْمَ الْتَقَى الْجَمْعَانِ إِنَّمَا اسْتَزَلَّهُمُ الشَّيْطَانُ بِبَعْضِ مَا كَسَبُواْ وَلَقَدْ عَفَا اللّهُ عَنْهُمْ إِنَّ اللّهَ غَفُورٌ حَلِيمٌ
آل عمران/155
“वस्तुतः तुममें से जिन लोगों ने दो गिरोहों के आमने सामने होने के दिन पीठ दिखाई, उन्हें शैतान ने उनके कुछ कर्मों के कारण फिसला दिया था। और अल्लाह उन्हें क्षमा कर चुका है। वास्तव में, अल्लाह अति क्षमावान्, सहनशील है।” [सूरत आल-इमरान : 155]
जब एक सहाबी से यब गलती हो गई कि उन्होंने मक्का पर विजय के वर्ष कुरैश को नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सेना के साथ आगमन की सूचना दे दी और उमर बिन अल-खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें मारने का इरादा किया, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “वह बद्र (के युद्ध) में उपस्थित थे, और तुम्हें क्या पताॽ शायद अल्लाह ने बद्र के लोगों को देखा और फरमाया : तुम जो चाहो करो, क्योंकि मैंने तुम्हें माफ कर दिया है।” इसे बुखारी और मुस्लिम (2494) ने रिवायत किया है।
ऐसे ही अन्य स्थितियाँ और मामले हैं जिनमें कुछ सहाबा से गलती और अवज्ञा हुई, फिर अल्लाह तआला उन्हें माफ कर दिया और उनके पापों को क्षमा कर दिया, जो इंगित करता है कि वे प्रतिष्ठा और सम्मान के पात्र हैं और यह कि वे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समय में या आपके निधन के बाद किसी गलती में पड़ गए तो यह उनके सम्मान एवं प्रतिष्ठा को प्रभावित नहीं करती है। क्योंकि उनके गुणों और उन्हें जन्नत की ख़ुशख़बरी देने के बारे में उद्धृत पिछली आयतें ऐसी ख़बरें हैं जिन्हें कोई भी चीज़ निरस्त नहीं कर सकती।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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