क्या महिला को उसका महर विवाह के अनुबंध में उल्लिखित मुद्रा के अलावा किसी अन्य मुद्रा में देना जायज़ हैॽ – उदाहरण के लिए – सऊदी या यमनी मुद्रा की जगह कतरी मुद्रा में देना।
क्या महर को विवाह के अनुबंध में उल्लिखित मुद्रा के अलावा किसी अन्य मुद्रा में देना जायज़ हैॽ
प्रश्न: 88031
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
यदि दंपति महर को विवाह के अनुबंध में उल्लिखित मुद्रा के अलावा किसी अन्य मुद्रा में देने पर सहमत हो जाएँ, तो यह जायज़ है। लेकिन इस शर्त के साथ कि उसे उस दिन की दर पर दिया जाए जिस दिन उसका भुगतान किया जा रहा है, विवाह के अनुबंध के दिन की दर पर नहीं। तथा उसे (उसी समय) पूर्ण समतुल्य राशि भुगतान करे। अतः वे दोनों ऐसी अवस्था में अलग न हों कि अभी पति पर कुछ राशि बक़ाया हो।
इसके बारे में मूल सिद्धांत : वह हदीस है जिसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 3354) और नसाई (हदीस संख्या : 4582) ने इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : मैं अल-बक़ी में ऊंट बेचा करता था। चुनाँचे मैं (उसे) दीनार में बेचता और दिरहम लेता, तथा (कभी) मैं दिरहम में बेचता और दीनार लेता था। मैंने इस बारे में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूछा, तो आपने फरमाया : “इसमें कोई हर्ज की बात नहीं है कि तुम उसे उसी दिन की क़ीमत में लो, जब तक कि तुम दोनों इस अवस्था में अलग न हो कि तुम दोनों को बीच कुछ चुकाना बाकी हो।” इसे नववी ने “अल-मज्मू” (9/330) में, इब्नुल-क़ैयिम ने “तहज़ीबुस-सुनन” में और अहमद शाकिर ने “तहक़ीक़ अल-मुसनद” (7/226) में सहीह कहा है, जबकि अलबानी ने “ज़ईफ़ अबी दाऊद” में इसे ज़ईफ़ (कमज़ोर) के रूप में वर्गीकृत किया है।
यह हदीस खरीदने-बेचने और रिबा (सूदखोरी) के विषय में शरई नियमों के अनुकूल है। इसीलिए फुक़हा (धर्मशास्त्रियों) के यहाँ इस पर अमल किया गया है।
तथा देखें : “अश-शर्हुल-मुम्ते” (8/305)
“फतवा जारी करने हेतु स्थायी समिति” से एक आदमी के बारे में पूछा गया, जिसने फ्रांसीसी मुद्रा में ऋण (क़र्ज़) लिया था। परंतु वापस भुगतान करने के समय, ऋणदाता ने उसे अल्जीरियाई मुद्रा में भुगतान करने के लिए कहा।
उन्होंने उत्तर दिया:
“आप उसे अल्जीरिया में उसी के समान फ्रांसीसी मुद्रा, या भुगतान के दिन उसकी विनिमय राशि की मात्रा में अल्जीरियाई मुद्रा से भुगतान कर सकते हैं, बशर्ते कि अलग होने से पहले क़ब्ज़ा प्राप्त कर लिया जाए।” उद्धरण समाप्त हुआ।
“फतावा अल-लजनह अद-दाइमह” (14/143)
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर