अह्ले सुन्नत व जमाअत के निकट ईमान की परिभाषा क्या है? और क्या वह घटता और बढ़ता है?
क्या अह्ले सुन्नत व जमाअत के निकट ईमान घटता और बढ़ता है?
प्रश्न: 9356
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
अह्ले सुन्नत व जमाअत के निकट ईमान (दिल के इक़रार,ज़ुबान से बोलने,और अंगों के द्वारा अमल करने) का नाम है। इस प्रकार यह तीन तत्वों को सम्मिलित है:
1- दिल से इक़रार करना।
2- ज़ुबान से बोलना।
3- अंगों से अमल करना।
जब ऐसी बात है तो वह बढ़े और घटे गा,क्योंकि दिल के द्वारा इक़्रार भिन्न भिन्न होता है,किसी सूचना का इक़रार करना किसी आँखों देखी चीज़ के इक़रार के समान नहीं है,तथा एक आदमी की सूचना का इक़रार दो आदमियों की सूचना के इक़रार करने की तरह नहीं है। इसीलिए इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा था कि :"ऐ मेरे प्रभु! मुझे दिखा तू मृतकों को किस प्रकार जीवित करेगा?(अल्लाह तआला ने) फरमाया: क्या तुम्हें ईमान (विश्वास) नहीं? उत्तर दिया : ईमान तो है किन्तु मेरे हृदय का आश्वासन हो जाएगा।" (सूरतुल-बक़रा: 260)
अत: ईमान दिल के इक़रार,उसके आश्वासन और सन्तुष्टि के ऐतिबार से बढ़ता रहता है,और मनुष्य को अपने मन में इसका एहसास और अनुभव होता है,चुनाँचि जब वह किसी ज़िक्र की मज्लिस में उपस्थित होता है जिसमें उपदेश होता है,और स्वर्ग और नरक का चर्चा होता है तो उसका ईमान बढ़ जाता है यहाँ तक कि ऐसा लगता है मानो वह उसे अपनी आँख से देख रहा है,और जब गफलत पाई जाती है और वह इस मज्लिस से उठ जाता है तो उसके दिल में यह विश्वास कम हो जाता है।
इसी तरह उसका ईमान कथन के ऐतिबार से भी बढ़ता है,क्योंकि जो व्यक्ति कुछ बार अल्लाह का ज़िक्र करता है उस आदमी के समान नहीं है जो सौ बार अल्लाह का ज़िक्र करता है,दूसरा व्यक्ति पहले से बहुत अधिक बढ़कर है।
इसी प्रकार जो आदमी संपूर्ण रूप से इबादत करता है उसका ईमान उस आदमी से कहीं बढ़कर होता है जो इबादत की अदायगी में कमती करता है।
इसी प्रकार अमल का भी मामला है,क्योंकि जब इंसान अपने अंगों से कोई अमल दूसरे आदमी से अधिकतर करता है तो अधिक अमल करने वाले का ईमान कम अमल करने वाले से बढ़कर होता है। ईमान के घटने और बढ़ने का सबूत क़ुर्आन और सुन्नत में भी आया है,अल्लाह तआला का फरमान है :"और हम ने उनकी संख्या केवल काफिरों की परीक्षा के लिए निर्धारित कर रखी है ताकि अह्ले किताब यक़ीन कर लें और ईमान वाले ईमान में बढ़ जायें।" (सूरतुल मुद्दस्सिर :31)
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :"और जब कोई सूरत उतारी जाती है तो कुछ (मुनाफिक़) कहते हैं कि इस सूरत ने तुम में से किस के ईमान को बढ़ाया है?तो जो लोग ईमानदार हैं इस सूरत ने उनके ईमान में वृद्धि की है और वे खुश हो रहे हैं। और जिन के दिलों में रोग है,इस सूरत ने उन में उनकी गंदगी के साथ और गंदगी बढ़ा दी है और वे कुफ्र की हालत ही में मर गये।" (सूरतुत्तौबा :124,125)
तथा हदीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :"मैं ने तुम कम दीन और बुद्धि वाली औरतों से अधिक होशियार आदमी के दिमाग को खा जाने वाला किसी को नहीं देखा।"
अत: ज्ञात हुआ कि ईमान घटता और बढ़ता है।
स्रोत:
फज़ीलतुश्शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह के फतावा व रसाईल का संग्रह 1/49