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यदि एजेंट किसी वस्तु को उसके लिए निर्धारित मूल्य से अधिक पर बेचता है, तो अतिरिक्त पैसा किसका होगा?

प्रश्न: 9386

मैं सामान बेचने वाली एक कंपनी में काम करता हूँ। सेल्ज़ मैनेजर ने मुझसे कहा : मैं इस सामान को 1000 एक हजार रियाल में बेच सकता हूँ। लेकिन मेरे पास ऐसे ग्राहक हैं जो इस सामान को 1500 रियाल में खरीदते हैं। तो क्या मैं इसे बेचकर 1000 रियाल कंपनी को भुगतान कर दूँ और बाकी राशि खुद रख लूँॽ

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

अगर कंपनी ने आपके लिए एक क़ीमत निर्धारित कर दी है कि आप उससे ज़्यादा क़ीमत पर नहीं बेचेंगे, तो आपके लिए निर्दिष्ट क़ीमत से ज़्यादा पर बेचना जायज़ नहीं है।

लेकिन अगर कंपनी ने कीमत तय कर दी है और उससे अधिक कीमत पर बेचने पर रोक नहीं लगाती है, तो आपके लिए अधिक कीमत पर बेचना जायज़ है।

और इन दोनों मामलों में, अतिरिक्त राशि कंपनी की होगी और आपके लिए इसे लेना हलाल नहीं है।

क्योंकि वकील (एजेंट) अपने मुवक्किल के हित के लिए काम करता है, न कि अपने हित के लिए।

इसका प्रमाण :

वह हदीस है, जिसे इमाम बुखारी ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 3642) में उरवा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें अपने लिए एक बकरी खरीदने के लिए एक दीनार दिया। तो उन्होंने उससे आपके लिए दो बकरियाँ खरीदीं। फिर उनमें से एक बकरी को एक दीनार में बेच दिया और एक बकरी और एक दीनार ले कर आपके पास आऐ। इसपर अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनके लिए उनके बेचने (क्रय-विक्रय) में बरकत के लिए दुआ की। इसलिए यदि वह मिट्टी भी खरीदते थे, तो उसमें उन्हें लाभ होता था।

उरवा रज़ियल्लाहु अन्हु खरीदारी में अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के प्रतिनिधि थे। वह अपनी खरीद एंव बिक्री में लाभ प्राप्त करने में सक्षम हुए, और यह लाभ अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का था, क्योंकि यदि यह उरवा का अधिकार होता, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उसे नहीं लेते।

इब्ने अब्दुल-बर्र रहिमहुल्लाह कहते हैं :

''विद्वानों के बीच इस बारे में कोई विवाद नहीं है कि प्रतिनिधि के रूप में कार्य करना जायज़ है। इस हदीस के अर्थ के बारे में विद्वानों ने उस प्रतिनिधि (एजेंट) के बारे में भी मतभेद किया है, जो उससे अधिक खरीदता है जिसके लिए उसे नियुक्त किया गया था, तो वह लेनदेन उसके नियोक्ता पर बाध्यकारी है या नहीं? उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति दूसरे से कहता है : इस दिरहम से मेरे लिए एक पाउंड मांस खरीदो, जो इस प्रकार का होना चाहिए। तो वह उस दिरहम से उसी तरह का चार पाउंड मांस खरीदता है। इमाम मालिक और उनके साथियों की राय यह है कि सभी उसे इस लेन-देन के लिए बाध्य क़रार देते हैं, यदि वह मांस उसी प्रकार का है लेकिन उससे अधिक मात्रा में है, क्योंकि उसने अच्छा काम किया है। यह हदीस उनके इस दृष्टिकोण का समर्थन करती है, और यह एक अच्छी हदीस है। इसमें इस बात का सबूत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का दोनों बकरियों का मालिक होना सही था। अगर ऐसा न होता, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उरवा से दीनार न लेते, और उनके लिए इस बिक्री को मंजूरी नहीं देते।'' उद्धरण समाप्त हुआ।  ''अत-तमहीद'' (2/108).

इस मुद्दे के बारे में स्थायी समिति से पूछा गया तो उसने जवाब दिया :

“यदि कोई सामान जीत जाता है तो उसे उसकी कीमत से अधिक पर बेचना जायज़ है, लेकिन यह अतिरिक्त राशि सामान के मालिक की संपत्ति होगी। लेकिन अगर मालिक ने शर्त लगाई है कि उसे अधिक महंगी कीमत पर नहीं बेचा जाना है, तो उसे केवल उसी क़ीमत पर बेचा जाएगा, जो मालिक ने निर्धारित की है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।

 ''फतावा अल-लजनह अद-दाईमा'' (13/96)

लेकिन . . अगर कंपनी ने आपके लिए कीमत निर्धारित कर दी है, और आपसे सहमत है कि यदि आप उसे अधिक कीमत पर बेचते हैं, तो अतिरिक्त राशि आपकी होगी, तो आपके लिए उसे अधिक मूल्य पर बेचना जायज़ है और यह अतिरिक्त राशि आपका हक़ है।

इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने ''अल-मुग़्नी'' (7/361) में कहा :

''यदि वह कहे : इस कपड़े को दस में बेच दो और जो कुछ अधिक हो वह तुम्हारा हो जाएगा। तो यह सही है और वह अतिरिक्त राशि का हक़दार है . . . इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा इसमें कोई हर्ज नहीं समझते थे।'' उद्धरण समाप्त हुआ।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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