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अगर किसी को बिना इच्छा उल्टी आ जाए तो उसे क़ज़ा करने की ज़रूरत नहीं है

प्रश्न: 95296

मैंने शव्वाल के छह रोज़े रखे और पाँचवाँ दिन शुक्रवार था। फ़ज्र की नमाज़ के समय, मैंने बिना किसी इच्छा के जो कुछ खाया था उसे उल्टी कर दिया। फिर मैंने अपना रोज़ा पूरा किया और शनिवार को भी रोज़ा रखा। क्या मेरा रोज़ा सही था या ग़लत (अमान्य)?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

आपका रोज़ा सही (मान्य) है, और उसके दौरान होने वाली उल्टी से आपको कोई नुकसान नहीं होगा, क्योंकि जो व्यक्ति बिना इच्छा व इरादा के उल्टी कर देता है, तो उसका रोज़ा सही होता है। लेकिन जो व्यक्ति जानबूझकर उल्टी करता है, तो उसका रोज़ा टूट जाता है। क्योंकि तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 720) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जिसपर उल्टी हावी हो जाए, उसपर क़ज़ा अनिवार्य नहीं है, और जो व्यक्ति जानबूझकर उल्टी करे, तो उसे क़ज़ा करना चाहिए।” इस हदीस को अलबानी ने सहीह अत-तिर्मिज़ी में सहीह कहा है।

इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने “अल-मुग़्नी” (3/23) में कहा :

“जो व्यक्ति जानबूझकर उल्टी करे, उसपर क़ज़ा अनिवार्य है और जिसपर उल्टी गालिब आ जाए, उसपर कुछ भी अनिवार्य नहीं है।

''इस्तक़ाआ'' का अर्थ है : उल्टी लाने की इच्छा करते हुए उल्टी किया। उल्टी गालिब आने का मतलब है : उसकी इच्छा और पसंद के बिना उल्टी हो गई। अतः जिसने जानबूझकर (इच्छावश) उल्टी की, उसपर क़ज़ा अनिवार्य है; क्योंकि उल्टी करने की वजह से उसका रोज़ा ख़राब हो गया। तथा जिस व्यक्ति को (अनेच्छिक रूप से) उल्टी हो गई तो उसपर कुछ भी अनिवार्य नहीं है। यह आम विद्वानों का कथन है। खत्ताबी ने कहा : मुझे विद्वानों के बीच इसके विषय में किसी मतभेद की जानकारी नहीं है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से रमज़ान में उल्टी के बारे में पूछा गया – क्या इससे रोज़ा टूट जाता है?

तो उन्होंने उत्तर दिया :

“अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर उल्टी करता है, तो इससे रोज़ा टूट जाता है, लेकिन अगर वह बिना इच्छा व इरादा के उल्टी कर देता है, तो इससे रोज़ा नहीं टूटता है। इसका प्रमाण अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है … और उन्होंने पिछली हदीस का उल्लेख किया।

अतः यदि आप पर उल्टी हावी हो गई, तो आपका रोज़ा नहीं टूटेगा। यदि किसी व्यक्ति को लगता है कि उसके पेट में मरोड़ हो रही है और जो कुछ उसके अंदर है वह बाहर निकल जाएगा, तो क्या हम कहेंगे : तुम्हारे ऊपर अनिवार्य है कि तुम उसे रोकोॽ नहीं। या तुम उसे खींच लोॽ नहीं। परंतु हम उससे कहेंगे :  तुम एक तटस्थ रवैया अपनाओ, न तो तुम जानबूझकर उल्टी करो और न ही उसको रोको। क्योंकि यदि आपने जानबूझकर कर उल्टी कर दी, तो आपका रोज़ा टूट जाएगा। लेकिन यदि आपने इसे रोकने की कोशिश की, तो इससे आपको नुकसान होगा। इसलिए इसे छोड़ दें। अगर यह आपके बिना कुछ किए बाहर आ गया, तो इससे आपको कोई हानि नहीं पहुँचेगी और न इससे आपका रोज़ा टूटेगा।” ''फतावा अस-सियाम'' (पृष्ठ : 231)

स्रोत

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