मेरा एक दोस्त था जो एक गुम्राह (पथ-भ्रष्ट) संप्रदाय से संबंधित था, वह मुझ से सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के बीच होने वाले कुछ क़िस्सों के बारे में बतलाता रहता था, और अप्रत्यक्ष रूप से कहानियों के दौरान वह कुछ सहाबा की बुराई करता रहता था, और मैं उसका दिल रखने के लिए उसकी बातों को सुनता रहता था, जबकि मैं अपने दिल में यह जानता था कि वह झूठा है, किंतु समय बीतने के साथ अब मैं जब कुछ सहाबा के नामों को सुनता हूँ तो अपने दिल में उनके प्रति वह क्रोध पाता हूँ जो मैं इस गुम्राह की बातों को सुनने से पूर्व नहीं महसूस करता था। मेरा प्रश्न यह है कि : क्या मेरे लिए कोई नसीहत और सलाह है ताकि मैं सहाबा के सम्मान को बहाल कर सकूँ और उनके बारे में अपने दिल के अंदर संदेह और शंका न महसूस करूँ ॽ
उसके एक बिदअती दोस्त ने उसके दिल में कुछ सहाबा किराम के प्रति द्वेष डाल दिया तो उसे क्या करना चाहिए ॽ
प्रश्न: 96231
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
हरप्रकार की प्रशंसाऔर गुणगान केवलअल्लाह के लिएयोग्य है।
आपने नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमके कुछ सहाबा केप्रति क्रोध औररोष पाने का जोउल्लेख किया है,वह इस बिदअती कीसंगत अपनाने केकुप्रभावों मेंसे एक दुष्प्रभावहै, और इस से सलफ(पूर्वजों) की समझ(धर्मबोध) का पताचलता है कि उन्होंने अह्ले बिदअतके साथ उठने बैठनेसे सावधान कियाऔर डराया है,और इस बारे मेंकड़ा रवैयाअपनाया है।
अबूक़िलाबा रहिमहुल्लाहकहा करते थे : “अपनी इच्छाओंकी पैरवी करनेवालों के साथ नउठो बैठो और न उनसेबहस करो,क्योंकि मैं इसबात से निश्चिंतनहीं हूँ किवे आप को गुम्राहीमें डुबा देंगे,या आपकेऊपर दीन की कुछचीज़ों को संदिग्धकर देंगे जो उनकेऊपर संदिग्ध होगई थीं।”
तथाअबू इसहाक़ अल-हमदानीने फरमाया : “जिसने किसीबिद्अती का आदरसम्मान किया तोवास्तव में उसनेइस्लाम को ढानेपर मदद की।”
तथाइच्छा की पैरवीकरने वालों मेंसे दो आदमी मुहम्मदबिन सीरीन के पासआए और उन दोनोंने कहा : ऐ अबू बक्र! हम आप से हदीस बयानकरते हैं, तो उन्होंने कहा : नहीं,उनदोनों ने कहा : तोहम आपके ऊपर अल्लाहकी किताब की एकआयत पढ़ते हैं,उन्हों ने कहा: नहीं, तुम मेरेपास से हट जाओ यामैं ही चला जाताहूँ, इस पर दोनोंआदमी उठे और बाहरनिकल गए।
तथाफुज़ैल बिन अयाज़ने फरमाया : “किसी बिद्अतीके साथ न बैठो,क्योंकि मुझे डरहै कि आपके ऊपरलानत (शाप) उतरेगी।”
तथामुहम्मद बिन अन्नज़्रअल-हारिसी ने फरमाया: “जिसनेकिसी बिद्अत वालेकी तरफ कान लगाया,जबकि वह जानताहै कि वह बिद्अतवाला है, तो उस सेप्रतिरक्षा कोछीन लिया जाताहै और उसे उसकेनफ्स के हवालेकर दिया जाता है।”
तथाइमाम अब्दुर्रज़्ज़ाक़अस-सनआनी ने कहा: मुझसे इब्राहीमबिन अबी यह्याने कहा : मैं देखरहा हूँ कि आपकेपास मोतज़िला बहुतरहते हैं। मैंने कहा : हाँ, और वेगुमान करते हैंकि आप उन्हीं मेंसे हैं। उन्होंने कहा : क्या आपमेरे साथ इस दुकानमें प्रवेश न करेंगेताकि मैं आप सेबात करूँ ॽ मैं ने कहा: नहीं। उन्होंने कहा : क्यों ॽ मैं ने कहा: क्योंकि दिल कमज़ोरहै, और दीन उसकेलिए नहीं है जोगालिब आ जाए।
इनआसार (यानी पूर्वज़ोंके कथनों) को आजुर्रीकी पुस्तक “अश-शरीअह” और लालकाईकी किताब “उसूलो एतिक़ादिअहलिस्सुन्नह” में देखें।
आजुर्रीरहिमहुल्लाह नेअपनी किताब “अश-शरीअह” में फरमाया: “बिदअतियोंऔर इच्छाओं केपीछे चलने वालोंको छोड़ देने केवर्णन का अध्याय: हर उस व्यक्तिको जो हमारी इसपुस्तक “किताबुश शरीअह” में वर्णनकी गई बातों कापालन करने वालाहै उसे चाहिए किसभी अह्लुल अह्वा(इच्छाओं और ख्वाहिशेनफ्स की पैरवीकरने वाले) खवारिज,क़दरिय्यह,मुरजियह, जहमियह,प्रत्येक मोतज़िलहकी ओर निस्बत रखनेवाले, सभी राफिज़यों(शियाओं), सभी नवासिब,तथा हर वह व्यक्तिजिसे मुसलमानोंके इमामों ने यहकहा हैकिवह बिदअती है, उसकेअंदर गुम्राहीकी बिदअत मौजूदहै, और उसके बारेमें यह बात प्रमाणितहै, उसे छोड़ दे।चुनाँचे उचित नहींहै कि उस से बातकी जाये, उसे सलामकिया जाये,उसके साथ बैठाजाए, उसके पीछेनमाज़ पढ़ी जाए,उसकी शादी की जाए,और जो उसे जानताउसके यहाँ शादीन करे, उसके साथसाझा न करे,उसके साथ मामलान करे, उससे बहसऔर मुनाज़रा न करे,बल्कि उसे अपमानितकरे, और जब आप उससेरास्ते में मिलेंतो यदि हो सके तोदूसरा रास्ता पकड़लें। यदि कोई कहे: तो मैं उस से बहसऔर तकरार क्योंन करूँ और उसकीबात का जवाब क्योंन दूँ ॽ तो उस से कहा जायेगा: आपके ऊपर इस बातसे निर्भय नहींहुआ जा सकता किआप उस से बहस औरमुनाज़रा करें औरउससे ऐसी बात सुनेंजो आपके दिल कोखराब कर दे और वहअपने बातिल केद्वारा जिसे शैतानने उसके लिए सँवारदिया है आपको धोखेमें डाल दे और आपबर्बाद हो जायें; सिवाय इसके किउससे मुनाज़रा करनेऔर उसके ऊपर हुज्जतक़ायम करने पर आपकिसी बादशाह वगैरहके पास उस पर हुज्जतऔर तर्क स्थापितकरने के लिए मजबूरहो जाएं।लेकिन जहाँ तकइसके अलावा कामामला है तो ऐसाकरना सही नहींहै। और यह बात जोहम ने उल्लेख कीहै, मुसलमानोंके पिछले इमामोंके कथन है, और नबीसल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम की सुन्नतके अनुकूल है।” अंत हुआ।
तथाज़हबी रहिमहुल्लाहने फरमाया : “अक्सर सलफके इमाम इसी चेतावनीपर हैं, उनका विचारहै कि दिल कमज़ोरहोते हैं, और संदेहउचकने वाले होतेहैं।”“सियर आलामुन्नुबला” (7/261) से अंत हुआ।
ऐ प्रतिष्ठितभाई आपके साथ जोबात पेश आई है वहआपकी कोताही औरइस बिदअती के साथबैठने में तसाहुलकरने के कारण हुआहै, यहाँ तक कि उसनेआपके सीने को पैगंबरोंके बाद सबसे श्रेष्ठलोगों के विरूधभड़का दिया, वे ऐसेलोग हैं जिन्हेंअल्लाह ने अपनेपैगंबर की संगतऔर अपने दीन केसर्मथन के लिएचयन किया था,और नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमकी मृत्यु इस हालतमें हुई कि आप उनसेखुश थे, अतः उनकेबारे में कोई वंचित,अभागा और दुष्टआदमी ही ऐब लगायेगा।
तब्रानीने इब्ने अब्बासरज़ियल्लाहु अन्हुमासे रिवायत कियाहै कि नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने फरमाया : “जिसने मेरेसहाबा को बुराभला कहा (गाली दी)तो उस पर अल्लाहतआला, फरिश्तोंऔर सभी लोगों कीधिक्कार और फटकारहै।” इसे अल्बानीने अस-सिलसिलाअस्सहीहा (हदीससंख्या : 2340) में हसनकहा है।
जहाँतक आपके दिल कीइस्लाह और सुधारका मुद्दा है तोवह अल्लाह तआलाके सामने तौबा(पश्चाताप) करने,और क़ुरआन व सुन्नतऔर सीरत की किताबोंके अध्ययन पर ध्यानकेंद्रित करनेसे प्राप्त होसकता है, आप उनकेअंदर नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमके साथियों परअल्लाह तआला कीसराहना को देखेंगे,और आपको पता चलेगाकि इन लोगों नेअपने प्राणों औरधनों की कितनीक़ुर्बानियाँ दींयहाँ तक कि यह महानदीन हम तक पहुँचा।
शायदआप सहीह मुस्लिमया उसके अलावाहदीस की अन्य किताबोंमें सहाबा किरामके फज़ाइल (प्रतिष्ठा)के अध्याय को देखें,ताकि नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमके सहाबा से आपकाप्यार और सम्मानबढ़ जाए।
तथासंक्षिप्त किताबोंमें से जिसकी हमआपको अध्ययन करनेकी सलाह देते हैं,एक किताब शैख मुसतफाअल-अदवी की किताब“अस्सहीहअल-मुसनद मिन फज़ाइलिस्सहाबा”, और अब्दुर्रहमानराफत पाशा की किताब“सुवर मिनहयातिस्सहाबा” है।
तथाआप इस बात को जानलें कि अह्ले बिद्अतसहाबा के बारेमें आमतौर पर जोबातें कहते हैंवे झूठी और गढ़ीहुई होती हैं,जो अरूचिकर असहिष्णुता,अंधे द्वेष औरबीमार दिलों कीपैदावार होती हैं,जिन्हों ने उनकेलिए इस बात को चित्रितकिया कि सहाबाऐसे लोग हैं जोदुनिया के लिएलड़ते हैं,उसके पीछे भागतेहैं, चालें चलतेहैं, और षण्यंत्ररचते हैं, और जैसाकिप्राचीन कथन है: प्रति व्यक्तिअपने स्वभाव कीआँख से देखता है,तो उनके द्वेषात्मकदुनिया के पीछेभागने वाले नुफूसने उनके लिए इसबात को चित्रितकिया कि सहाबाउन्हीं के समानथे, जबकि वास्तविकतायह है कि सहाबाएक अद्वितीय मॉडल,एक उत्कृष्ट पीढ़ीऔर चुनीदा कुलीनलोग थे,क्योंकि वे एकमहान पाठशाला,शुद्ध प्रशिक्षणऔर मुबारक (शुभ)संगत के पैदावारथे, जिसमें उन्होंने सर्वश्रेष्ठसृष्टि पैगंबरमुहम्मद सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमके हाथ पर ज्ञानऔर शिष्टाचार कोप्राप्त किया था।
आपइस बात को अच्छीतरह से जान लेंकि इन सहाबा रज़ियल्लाहुअन्हुम के बारेमें लान तान करनाउनके उस पैगंबरऔर ईश्दत में तानकरना है जिसनेउन्हें चुन लियाथा, क़रीब कर लियाऔर विवाह द्वाराउनसे संबंध बनायाथा, बल्कि अल्लाहतआला पर तान करनाहै जिसने इस बातको पसंद किया किये लोग उसके पैगंबरके संगी, उसके धर्मके वाहक और उसकीवह्य के लिखनेवाले बनें।
हमअल्लाह तआला सेप्रश्न करते हैंकि वह आपके सीनेको खोल दे,आपके दिल को पवित्रव स्वच्छ कर देऔर उसे अपने दीन,उसकी किताबों,उसके नबी और उसकेसहाबा के लिए प्यारव महब्बत से भरदे।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर