हृदय को विनम्र करने वाले तत्व
नेमतों को याद करना और उनका धन्यवाद करना ज़ुबान, हृदय तथा अंगों द्वारा होता है।
हमारा सर्वशक्तिमान व महिमावान पालनहार क़ुरआन करीम में हमें आदेश देता है कि हम ऐसी और ऐसी चीज़ों में अपने ऊपर अल्लाह की नेमत को याद करें, और अल्लाह ने कई नेमतों का उल्लेख भी किया है। उदाहरण के तौर पर अल्लाह तआला का यह फरमान है : يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اذْكُرُوا نِعْمَةَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ جَاءَتْكُمْ جُنُودٌ فَأَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيحًا وَجُنُودًا لَّمْ تَرَوْهَا ۚ وَكَانَ اللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرًا سورة الأحزاب : 9 ऐ ईमान वालो! अपने ऊपर अल्लाह की उस अनुकम्पा को याद करो, जब सेनाएँ तुमपर चढ़ आईं तो हमने उनपर आँधी और ऐसी सेनाएँ भेजीं, जिन्हें तुमने नहीं देखा। और अल्लाह वह सब कुछ देख रहा था जो तुम कर रहे थे।’’ (सूरतुल अहज़ाबः 9) मेरा प्रश्न यह है कि हम अपने पालनहार की नेमत को किस प्रकार याद करेंगे जैसा कि उसने आदेश दिया है। क्या इसका मतलब लोगों के सामने उनका जिक्र करना और उनके बारे में बोलना है, या सिर्फ उन्हें याद रखना है, या कोई और मतलब हैॽ अल्लाह आपको हर प्रकार की भलाई प्रदान करे।इबादत को सरल बनाने और उसके स्वाद की अनुभूति के कारण
क्या किसी मुसलमान के लिए यह सामान्य बात है कि उसके लिए आज्ञाकारिता इतना अधिक कठिन हो कि वह अपने दिल में किसी दोष के कारण, जैसे कि कायरता या किसी अन्य वजह से, उसे करने में सक्षम न हो। इसलिए वह अपने दिल में कहता है कि अगर मैं अल्लाह को वास्तिवक रूप से जानता, तो मैं इस आज्ञाकारिता को आसानी से कर सकता। और यह सही बात है। इसलिए वह अल्लाह को जानने के लिए ब्रह्मांड में चिंतन करने के द्वारा अपनी यात्रा शुरू करता है, ताकि उसका ईमान बढ़ जाए। लेकिन इसके बावजूद भी आज्ञाकारिता उसके लिए कठिन ही रहती है। इसलिए उसे बहुत दुख होता है कि वह असहाय और कायर है। लेकिन मेरे दिल में यह बात बैठ गई है कि एकमात्र ब्रह्मांड में, और अल्लाह की नेमतों में चिंतन करना पर्याप्त नहीं है। बल्कि दुआ करना आवश्यक है, क्योंकि यह सफलता का रहस्य और उसकी कुंजी है। तो क्या यह कथन जिसके साथ मैं अपने आप को सांत्वना देता हूँ, सही हैॽ आशा है कि सटीक उत्तर देंगे।बंदों को गुमराह करने के लिए शैतान के प्रवेश द्वार
इबादत के कृत्यों का क्रम क्या हैॽ क्योंकि इस्लामी प्रचार से संबंधित एक कैसिट से मुझे ज्ञात हुआ कि शैतान के कुछ प्रवेश द्वार (रास्ते) हैं, और उनमें से यह है कि वह बंदे को कुफ़्र करने पर आमादा करने से शुरूआत करता है। यदि वह इसमें असमर्थ रहता है, तो वह उसे नमाज़ न पढ़ने के लिए आमादा करता है। यदि वह इसमें सक्षम नहीं होता है, तो वह उसे ऐसी इबादतों को करने से रोकता है, जिनका सवाब सबसे अधिक है। इस तरह वह बंदे के साथ करता रहता है यहाँ तक कि वह अंतिम चरण तक पहुँच जाता है। और वह हलाल चीज़ों का बाहुल्य है, अर्थात् वह उसे फ़ुज़ूलखर्ची करने वालों में से बना देता है। इसलिए कृपया इबादत के कृत्यों के क्रम को स्पष्ट करें, क्योंकि मुझे नहीं पता कि सबसे अधिक सवाब वाले कार्य क्या हैं। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।“धर्म पर लानत” जैसे अधूरे शब्द का बोलना तथा कार्य के नष्ट होने और कार्य के सवाब के नष्ट होने के बीच अंतर
उस व्यक्ति का क्या हुक्म है, जिसने क्रोध की अवस्था में “दीन पर लानत” का शब्द बोला और उसे पूरा नहीं कियाॽ तथा कार्य के अकारथ होने और कार्य के सवाब के अकारथ होने के बीच क्या अंतर हैॽ! क्योंकि मैंने पढ़ा है कि मुरतद्द (धर्मत्यागी) व्यक्ति यदि तौबा कर ले, तो उसका अमल बाक़ी रहता है, जबकि अमल का सवाब चला जाता है।क्या संसार में व्यक्ति की आयु के अनुसार हिसाब भिन्न होगाॽ
क्या हिसाब मनुष्य के जीवन की लंबाई के अनुसार भिन्न होगा, अर्थात् : क्या वह व्यक्ति जो 80 वर्ष तक जीवित रहा और उसे तौबा करने या अपने अच्छे कर्मों को बढ़ाने का पर्याप्त अवसर प्राप्त हुआ, उस व्यक्ति के समान है जिसकी बीस या तीस साल की आयु में मृत्यु हो गईॽ और क्या अन्य मामलों जैसे कि कार्य के प्रकार के साथ-साथ इसका भी एतिबार किया जाएगाॽक्या किसी आदमी का यह कहना कि : “फ़लाँ व्यक्ति की नमाज़ स्वीकार्य नहीं है” अल्लाह पर क़सम खाने के अंतर्गत आता हैॽ
क्या यह कहना कि : एक व्यक्ति की नमाज़ अस्वीकार्य (अमान्य) है, अल्लाह पर क़सम खाने के अंतर्गत आता हैॽएकांत के पाप क्या हैंॽ
क्या ईर्ष्या और मन में यौन कल्पनाएँ लाना एकांत में किए जाने वाले पापों के अंतर्गत आता हैॽअकेले सर्वशक्तिमान अल्लाह से शिकायत कैसे करेंॽ
क्या आप इस बात की व्याख्या कर सकते हैं कि केवल सर्वशक्तिमान अल्लाह से कैसे शिकायत की जाएगीॽ सूरत यूसुफ़ में, अल्लाह सर्वशक्तिमान याक़ूब अलैहिस्सलाम की ज़बान पर फरमाता है : إنما أشكو بثي وحزني إلى الله، وأعلم من الله ما لا تعلمون [سورة يوسف : 96] “मैं तो अपने दु:ख और अपने ग़म की शिकायत केवल अल्लाह ही से करता हूँ और मैं अल्लाह की ओर से वह जानता हूँ, जो तुम नहीं जानते।” (सूरत यूसुफ़ : 96), तथा सूरतुल-मुजादिला में है : قد سمع الله قول التي تجادلك في زوجها وتشتكي إلى الله والله يسمع تحاوركما إنّ الله سميع بصير [سورة المجادلة : 1] “निश्चय अल्लाह ने उस स्त्री की बात सुन ली, जो (ऐ रसूल!) आपसे अपने पति के बारे में झगड़ रही थी तथा अल्लाह से शिकायत कर रही थी और अल्लाह तुम दोनों का वार्तालाप सुन रहा था। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ देखने वाला है।” (सूरतुल-मुजादिला : 1)उस व्यक्ति के लिए सलाह और निर्देश, जिसका अल्लाह ने शारीरिक विकलांगता के साथ परीक्षण किया है और क्या अगर विकलांग व्यक्ति बैठकर नमाज़ पढ़ता है, तो उसके लिए आधा सवाब लिखा जागाॽ
मैंने आपकी वेबसाइट से बहुत कुछ सीखा है, अल्लाह आपको अच्छा बदला प्रदान करे। मेरा प्रश्न यह है : मैंने सुना है कि मक्का या मदीना में किसी बुराई के बारे में मात्र मन में विचार लाना ही पाप माना जाता है, जो बंदे के कर्म-पत्र में लिखा जाता है। इसी कारण पूर्वज उन दोनों शहरों में लंबे समय तक न ठहरने के इच्छुक होते थे। तो क्या यह सच हैॽ कृपया मुझे इस विषय पर अधिक से अधिक जानकारी प्रदान करें। क्योंकि मैं वास्तव में एक विकलांग महिला हूँ, और मेरे दिमाग में अक्सर बुरे विचार आते रहते हैं, जैसे कि मैं अपने मन में कहती हूँ कि अल्लाह मुझसे प्यार नहीं करता है, यही कारण है कि उसने मुझे विकलांग बना दिया है। तथा मेरे बैठकर नमाज़ पढ़ने के कारण, मुझे केवल आधा सवाब मिलेगा। तो इस बारे में आपकी क्या राय हैॽ मेरी जैसी स्थिति के बारे में इस्लाम क्या कहता हैॽ हम मुस्लिम पुरुषों को विकलांग महिलाओं के साथ शादी करने के लिए कैसे प्रोत्साहित करेंॽ और अधिकांश मुसलमान विकलांगों को नकारात्मक रूप से क्यों देखते हैंॽ मैं मदीना में रहना चाहती हूँ, लेकिन मुझे डर है कि ये विचार मेरे खिलाफ दर्ज किए जाएँगे।एक औरत ने एक बेटा जना जिसके केवल चार उंगलियां हैं तो वह इस परीक्षा के साथ किस तरह व्यवहार करे
मेरे एक बच्चा पैदा हुआ जिसके दाहिने हाथ में केवल चार उंगलियां हैं, और मैं इस से परेशान नहीं हुई, किंतु मैं कल रात दाहिने हाथ की एक तस्वीर देख रही थी और गौर कर ही थी कि अल्लाह तआला ने किस तरह उंगलियों और हथेली वग़ैरह को अनोखे रूप में पैदा किया है तो मैं रो पड़ी, यह सच है कि इस में मेरे लिए कोई उपाय नहीं है, और मैं नहीं जानती कि मेरा बेटा इस तरह क्यों हो गया, जबकि परिवार में इस स्थिति का कोई भी नहीं है, यहाँ तक कि उसका बड़ा भाई संपूर्ण रचना वाला है। मैं समझती हूँ कि यह एक स्वभाविक भावना है जो मेरी तरह हालत से ग्रस्त किसी भी माँ की भावना होगी, मैं इससे दर्द महसूस करती हूँ किंतु मैं अपने दर्द को ज़ाहिर नहीं करती हूँ , लेकिन मैं कभी कभी सोचती हूँ कि मैं उसके प्रश्न का उस समय क्या जवाब दूँगी जब बड़े होने के बाद स्कूल में बच्चे उसका उपहास करेंगे और वह मेरे पास आकर इसके बारे में पूछेगा, तो मैं उस समय उस से क्या कहूँगी ?"अल्लाह के प्रति हुस्ने-ज़न्न (अच्छी सोच)" का अर्थ और उसके सबसे प्रमुख स्थानों का उल्लेख
सर्वशक्तिमान अल्लाह हदीसे कुद्सी में फरमाता हैः (मैं अपने बंदे के मेरे प्रति सोच के अनुसार हूँ ..) तो क्या इसका मतलब यह है कि अगर कोई व्यक्ति अल्लाह के प्रति यह सोचे कि उसकी दया उसकी सज़ा से अधिक व्यापक है, तो इस बंदे के साथ सज़ा से अधिक दया के साथ व्यवहार किया जाएगा, और इसके विपरीत के साथ विपरीत (व्यवहार)ॽ वह क्या संतुलन है जिसे आदमी को इस हदीस पर अमल करते समय अपनाना चाहिएॽअल्लाह के निकट कर्मों के स्वीकार होने की शर्तें
वे कौन-सी शर्तें हैं जो एक मुसलमान के द्वारा किए गए कार्य को स्वीकार्य बनाती हैं और फिर अल्लाह उसे उसपर अज्र व सवाब (पुण्य) प्रदान करता हैॽ क्या इसका उत्तर केवल यह है कि मुसलमान क़ुरआन और सुन्नत का पालन करने का इरादा करे, और यह उसे अज्र पाने के योग्य कर देगी, जबकि हो सकता है कि उसने अपने उस काम में कुछ गलती की होॽ या यह है कि उसके लिए अनिवार्य है कि उसके पास इरादा होना चाहिए, और उसके साथ ही उसके लिए सही सुन्नत का पालन करना भी आवश्यक हैॽअज़ान और इक़ामत के बीच अज़कार व दुआयें
मैं वह दुआ जानना चाहता हूँ जो हमें अज़ान से पहले, इक़ामत से पहले, अज़ान के बाद और इक़ामत के बाद पढ़नी चाहिये ।