क्षमायाचना (तौबा) के प्रावधान
जिसने कोई पाप किया फिर विशुद्ध तौबा कर ली, वह तौबा के बाद पाप करने के पहले से बेहतर स्थिति में होगा
उसने अपनी जवानी के दौर में एक बड़ा पाप किया था, जिससे उसने अब तौबा कर लिया है और अल्लाह से आशा करता है कि यह एक विशुद्ध व सच्ची तौबा हो; क्योंकि उसे अपने दिल में अफसोस और दुःख हुआ है। लेकिन अक्सर उसके मन में यह सवाल उठता रहता है कि क्या यह संभव है कि अल्लाह सर्वशक्तिमान उसे उस व्यक्ति के समान मानेगा जो जीवन भर किसी बड़े पाप में नहीं पड़ा। क्योंकि वह अपने आपको दूसरों की तुलना में कमतर महसूस करता है।वह कुछ लोगों की ओर से दान करना चाहता है क्योंकि वह उनके प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह न निभाने के कारण अपने आपको दोषी महसूस कर रहा है
प्रश्न : यदि कोई व्यक्ति यह महसूस करे कि उसने किसी दूसरे आदमी के बारे में, उसके प्रति जिस चीज़ का ज़िम्मेदार था उसको पूरा न करके गलत किया है, तो उसे अब क्या करना चाहिए ? उन्हों ने न करने का क़सद नहीं किया, और उन्हों ने इसको ज़ाहिर नहीं किया, लेकिन भयानक वसवसा और इस व्यक्ति के बारे में इसके एहसास की वजह से क्या मेरे लिए संभव है कि मैं उसकी ओर से दान करूँ ?वह बैंक को पैसे लौटाने पर पूछताछ किए जाने और जेल में बंद किए जाने से डरता है तो क्या वह उसे दान कर दे
मैं ने छह साल पूर्व एक बैंक र्से आर्थिक ऋण प्राप्त करने के लिए आवेदन पत्र दिया था, उस समय मुझे सूद का हुक्म ज्ञात नहीं था, मैं ने वह धन प्राप्त कर लिया और थोड़ी अवधि के लिए कुछ क़िस्तों का भुगतान भी शुरू कर दिया। फिर इसके कुछ महीनों के बाद मैं ऋण समेत अपनी बचत की राशि लेकर देश के बाहर चला गया, जहाँ मैं ने अचल संपत्ति खरीद ली और शादी कर ली, और उसी समय से बैंक को भुगतान नहीं किया। अब जबकि मुझे पता चल गया कि यह हराम (निषिध) है, तो मैं इस पैसे को बैंक को वापस लौटाने के लिए तैयार हूँ, किन्तु मैं छह साल तक भागे रहने के कारण क़नूनी दायित्व और जवाबदेही से भयभीत हूँ। और मामला मेरे जेल जाने तक पहुँच सकता है, तो क्या ऐसी स्थिति में मेरे लिए जाइज़ है कि मैं इस धन को बैंक को वापस करने के बजाय गरीबों और निर्धनों के लिए निकाल दूँ ॽक्या वह अपने सज्दे के दौरान ज़ईफ़ हदीस से दुआ कर सकता है..ॽ
मैं जानना चाहता हूँ कि क्या निम्न हदीस और दुआ सही हैंॽ अगर वे सही हैं, तो क्या मैं इस दुआ को सज्दे या तशह्हुद में पढ़ सकता हूँॽ यदि वे सही नहीं हैं, तो क्या तशह्हुद या सज्दे में इस दुआ को पढ़ना बिदअत के अंतर्गत आएगाॽ हदीस यह है : अबू उमामा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बहुत सारी दुआएँ कीं, लेकिन हमें उनमें से कुछ भी याद नहीं रहा। हमने कहा : ए अल्लाह के रसूल! आपने बहुत-सी दुआएँ कीं, लेकिन हम उनमें से कुछ भी याद नहीं रख सके। आपने कहा : “क्या मैं तुम्हें ऐसी चीज़ (दुआ) न बताऊँ, जिसमें वे सब (दुआएँ) समाविष्ट होंॽ तुम कहो : “अल्लाहुम्मा इन्नी अस-अलुका मिन् खैरि मा स-अलका मिन्हु नबिय्युका मुहम्मदुन सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, व-अऊज़ो बिका मिन् शर्रे मस्तआज़ा मिन्हु नबिय्युका मुहम्मदुन सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, व-अन्तल मुसतआनो, व-अलैकल बलाग़ो, व-ला हौला व-ला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह” (ऐ अल्लाह! मैं तुझसे वह भलाई माँगता हूँ जो तेरे पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तुझसे माँगी है। तथा मैं उस बुराई से तेरी शरण चाहता हूँ जिससे तेरे पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तेरी शरण मांगी। है। तू ही सहायक है, और तेरे ही ज़िम्मे (भलाई एवं बुराई का) पहुँचाना है, तथा अल्लाह की तौफ़ीक़ के बिना बुराई से बचने की शक्ति और भलाई करने का सामर्थ्य नहीं है।)” इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है।वह कुछ कर्मचारियों को वृद्धि या पदोन्नति से वंचित कर दिया करता था, तो अब वह पश्चाताप कैसे करेॽ
मेरा प्रश्न उत्पीड़ित पर किए हुए अत्याचार या अधिकारों को उनके मालिकों को वापस करने के बारे में है, जो तौबा की शर्तों में से चौथी शर्त है। यदि अत्याचारी व्यक्ति उत्पीड़ित पर किए हुए अत्याचार या अधिकार को उसके मालिक को वापस करने में सक्षम नहीं है, उदाहरण के लिए, यदि वह कर्मचारियों का प्रमुख है और उसने किसी के साथ अन्याय किया, इस प्रकार कि उसके वेतन में वृद्धि को कम कर दिया या उसे वह पदोन्नति नहीं दी जिसका वह हक़दार है। उसके बाद यह प्रमुख सेवानिवृत्त हो गया। तो क्या उसके लिए तौबा (पश्चाताप) का कोई अवसर हैॽ और अगर वह तौबा करता है, तो वह इस कर्मचारी को उसका अधिकार कैसे लौटाएगाॽफ़ज़ायले-आमाल (कर्मो के गुण) लोगों के अधिकारों का कफ्फारा (परायश्चित) नहीं बन सकते
मैं ने सुना है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : ''जिस ने ईमान के साथ पुण्य की आशा रखते हुए रमज़ान का रोज़ा रखा तो उसके पिछले (छोटे-छोटे) गुनाह क्षमा कर दिए जाएंगे।'' क्या इस हदीस के अंतर्गत वे पाप भी आते हैं जिन्हें आदमी ने अपने मुसलमान भाइयों के हक़ में जान बूझकर किए हैं, और वह उन पर बहुत लज्जित है. किन्तु वह उनके सामने उस चीज़ को स्वीकार नहीं कर सकता जो उसने उनके साथ किए हैं क्योंकि इस से बहुत समस्याएं पैदा होंगीं ?क्या तौबा करने वाला लज्जित व्यक्ति निश्चित रूप से यह कह सकता है कि उसकी तौबा सवीकार हो गई
यदि तौबा करने वाले व्यक्ति ने अपने और अपने दिल के बीच तौबा की शर्तों को पूरा कर लिया है, तो क्या वह इस बात से सुनिश्चित हो सकता है कि उसकी तौबा स्वीकार कर ली गई है, या क्या वह केवल आशा कर सकता हैॽ