शरई अज़कार (विनतियाँ)
हर दिन सौ बार तस्बीह पढ़ने का पुण्य
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित इस हदीस की प्रामाणिकता क्या है, जिसमें आपने फरमाया : “क्या तुम में से कोई व्यक्ति हर दिन एक हज़ार नेकियाँ अर्जित करने में असमर्थ हैंॽ” तो आपके पास बैठे लोगों में से एक आदमी ने आपसे पूछा : हम में से कोई आदमी एक हज़ार नेकियाँ कैसे कमा सकता हैॽ आपने फरमाया : "वह एक सौ बार तस्बीह (सुब्हानल्लाह) कहे, तो उसके लिए एक हज़ार नेकियाँ लिखी जाएंगी, या उसके एक हज़ार पाप मिटा दिए जाएँगे।" एक अन्य रिवायत के अनुसार : “उसके लिए एक हज़ार नेकियाँ लिखी जाँएगी और उसके एक हज़ार गुनाह मिटा दिए जाएँगे।” यदि कोई व्यक्ति इससे अधिक बार पढ़ता है, तो क्या उसका सवाब बढ़ जाएगाॽ अर्थात यदि कोई व्यक्ति एक हज़ार बार तस्बीह कहता है, तो उसके लिए दस हज़ार नेकियाँ लिखी जाएँगीॽअल्लाह से क्षमा याचना करना दिल के जीवन का कारण है
क्या यह कहना सही है किः इस्तिग़फार (अल्लाह से क्षमा याचना करना) दिलों के जीवन का कारण है?ज़िक्र और दुआ के दौरान आँखें बंद करने का हुक्म
क्या ज़िक्र और दुआ के दौरान दोनों आँखें बंद करना संभव है?रमज़ान के प्रतिष्ठित महीने के लिए विशिष्ट ज़िक्र व अज़कार वर्णित नहीं हैं
मैंने देखा है कि हमारे क्षेत्र के इमाम साहब प्रत्येक नमाज़ के बाद तीन बार ज़िक्र के यह वाक्य दोहराते हैं : ''अश्हदो अन् ला इलाहा इल्लल्लाहु, अस्तग़फिरुल्लाह, नस्अलुकल् जन्नता व नऊज़ो बिका मिनन् नार'' (अर्थात : मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है, मैं अल्लाह से माफी माँगता हूँ, हम तुझ से जन्नत (स्वर्ग) का सवाल करते हैं और जहन्नम (नरक) से पनाह माँगते हैं।) क्या यह सुन्नत से साबित है, क्या हम इसे दोहरा सकते हैं, तथा अन्य दुआएँ क्या हैं? मैं इन्हें जानना चाहता हूँ ताकि मैं उन्हें अभी से दोहराता रहूँ।नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन : “मुझे अपने झाड़-फूँक (रुक़्या) के शब्द बताओ, रुक़्या में कोई हर्ज नहीं है जब तक कि उसमें शिर्क का कोई तत्व नहीं है।” के बारे में
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मुझे अपने झाड़-फूँक (रुक़्या) के शब्द बताओ। रुक़्या में कोई हर्ज नहीं है जब तक कि उसमें शिर्क का कोई तत्व नहीं है।” क्या निम्नलिखित रुक़्या में कोई शिर्क का तत्व या कोई ऐसी चीज़ पाई जाती है, जो शरीयत के दृष्टिकोण से निषिद्ध हैॽ : (हमज़ाद (जिन्न साथी) को नियंत्रित करने के लिए, जिसने शरीर को थका दिया है, विवाह में रुकावट पैदा कर दी है, काम-काज को असफल कर दिया है और छवि को बदल दी है : [बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम (अल्लाह के नाम से जो अत्यंत दयावान् परम दयालु है), मग़रिब (सूर्यास्त) के बाद लगातार तीन दिनों तक 14 बार सूरत मुहम्मद का पाठ करना या सुनना, उसके बाद दो बार इस तावीज़ (संरक्षण) को पढ़ना : (रक्षा करने वाली तावीज़ों के द्वारा, मैंने हर चालबाज़ (धूर्त) और अड़ियल को तथा शोरगुल करने वाले के शोर को अवरोधित कर दिया, और उसे इस शरीर वाले से दूर हटा दिया। मैंने हर खड़े हुए और बैठे हुए पर “क़ुल हुवल्लाहु अह़द अल्लाहुस-समद लम यलिद व लम यूलद व लम यकुंल्लहू कुफुवन अह़द” की क़सम खाई है), (मैंने तुमपर अल-अनहास की दुआओं के साथ क़सम खाई है और मैंने तुमसे एहसास (अनुभूति) को “क़ुल अऊज़ू बिरब्बिन्-नास, मलिकिन्-नास इलाहिन्-नास मिन् शर्रिल् वस्वासिल् ख़न्नास अल्लज़ी युवस्विसु फ़ी सुदूरिन्नास मिनल्-जिन्नति वन्नास” के द्वारा काट दिया है।) यदि आप इसे दोहराना चाहते हैं, तो इसमें कोई हर्ज नहीं है। ]) अल्लाह आप लोगों को बेहतरीन बदला दे।क्या बारिश होते समय दुआ करना मुस्तहब है? तथा बारिश होने और गरज सुनाई देने के समय क्या दुआ पढ़ी जाएगी?
प्रथम : बारिश होने और बिजली देखने और गरज के समय कौन सी दुआ है? दूसरा : वह कौन सी हदीस है जिससे यह पता चलता है कि बारिश होने के समय दुआ क़बूल होती है?नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद भेजने का आदर्श तरीक़ा
हमारे आदरणीय गुरूजन, मैं उन लोगों में से हूँ जो परिस्थितियों के अनुसार एक दिन में 50/100 या उस से अधिक बार नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद भेजते हैं। और मैं इस तरह दुरूद पढ़ता हूँ : (اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ) "अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद, व अला आले मुहम्मद” (ऐ अल्लाह! मुहम्मद और आले मुहम्मद पर दया अवतरित कर)। कुछ लोगों ने मुझे बताया है कि मेरा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद भेजना अधूरा है। अल्लाह आप लोगों को अच्छा बदला दे, क्या आप हमें बता सकते हैं कि मानव जाति के नायक पर दुरूद भेजने का आदर्श तरीक़ा क्या है, और क्या वास्तव में मेरा तरीक़ा अधूरा है? अल्लाह आप लोगों को बेहतर बदला दे।दुआओं और अज़कार को आपस में मिलाने में कोई हर्ज नहीं है
क्या अरबी में दुआ करना और (कई) दुआओं को आपस में मिलाना तथा उनका इस्तेमाल अल्लाह की पवित्रता बयान करने और उसकी स्तुति करने के लिए करना जायज़ हैॽ उदाहरण के तौर पर यह दुआ करना : " सुबहानल्लाह व बिहम्दिह, अददा खल्क़िह, व रिज़ा नफ़्सिह, व ज़िनता अर्शिह, व मिदादा कलिमातिह” (मैं अल्लाह की पाकी बयान करता हूँ और उसकी प्रशंसा करता हूँ, उसकी सृष्टि की संख्या के बराबर, उसकी आत्मा की प्रसन्नता के बराबर, उसके अर्श (सिंहासन) के वज़न के बराबर और उसके शब्दों की स्याही के बराबर) और उसके बाद ही : “सुब्हानल्लाह व बि-हम्दिह, सुबहानल्लाहिल अज़ीम” (अल्लाह पवित्र है और उसी की सब प्रशंसा है, महान अल्लाह पवित्र है) कहना और उसके बाद कोई दूसरी दुआ पढ़ना। और इसी तरह।बीमारियों और महामारियों की रोकथाम के लिए अज़कार और दुआएँ
क्या किताब या सुन्नत में "स्वाइन फ्लू" जैसी बीमारियों और महामारियों से बचाव और रोकथाम के लिए कोई दुआ वर्णित हैॽक़ुरआन को पढ़ने का उद्देश्य उस पर चिंतन करना और अमल करना है
एक व्यक्ति है जो अल्हम्दु-लिल्लाह क़ुरआन को अच्छी तरह से पढ़ना जानता है। क्या उसके हक़ में मुसह़फ़ से अधिक से अधिक क़ुरआन करीम की तिलावत करना बेहतर है या रिकॉर्ड किए गए टेप के माध्यम से किसी एक पाठक (क़ारी) को सुनना बेहतर हैॽक्या फ़रिश्ते महिलाओं के ज़िक्र की सभाओं में उपस्थित होते हैं यदि वे नंगे सिर होती हैंॽ
क्या यह सच है कि फ़रिश्ते महिलाओं के ज़िक्र की सभाओं में उपस्थित नहीं होते हैं, यदि महिलाएँ अपने बालों को खोले रखती हैं (अर्थात् वे हिजाब नहीं पहनती हैं)?तवाफ़ के दौरान क्या पढ़ना चाहिएॽ
इन अज़कार (दुआओं) को एक ऐसे व्यक्ति द्वारा संकलित किया गया था, जो उम्रा से प्यार करता था और वह उन्हें उम्रा करने वालों के बीच वितरित करना चाहता था। लेकिन वह रुक गया यहाँ तक कि वह कृतज्ञता के साथ आपसे इनमें से सही और कमज़ोर दुआओं का स्पष्टीकरण जान ले। इनमें से कुछ अज़कार वे हैं जिनकी उम्रा करने वाले को ज़रूरत होती है : तवाफ़ के दौरान क्या पढ़ना चाहिए : पहले चक्कर को अल्लाह की स्तुति एवं प्रशंसा के साथ शुरू करना, फिर उसके पैगंबर पर दुरूद भेजना, फिर दुआ करना, धर्म से संबंधित दुआओं को सांसारिक मामलों से संबंधित दुआओ पर प्राथमिकता देना और दिल की उपस्थिति के साथ दुआ करना।इस्तिग़फार करना शरीर की शक्ति का कारण है
मैं शरीर को मज़बूत बनान के लिए व्यायाम करता हूँ, और मेरा उद्देश्य अल्लाह के रास्ते में जिहाद करना है। मेरा प्रश्न यह है किः 1- क्या इस्तिगफार (क्षमा याचना) करना शरीर को शक्ति देता है? 2- वे कौन से समय और संख्या हैं जिनमें हमें अल्लाह से इस्तिगफार करना चाहिए? आप से अनुरोध है कि शाक्ति की वृद्धि के लिए अज़कार और दुआयें बतायें।तस्बीह के शब्द "सुब्हानल्लाह व बि-हम्दिही" का अर्थ
शब्द "सुब्हानल्लाह व बि-हम्दिही" और शब्द "बिस्मिल्लाह" का क्या अर्थ हैॽ मैं इस की व्याख्या जानना चाहता हूँ, क्योंकि नमाज़ में मुझे इस की अवशयकता पड़ती है।रोज़ा इफ़्तार करने के समय वैध दुआ
उन हदीसों से दुआ मांगने का क्यो हुक्म है जिनके बारे में विद्वानों ने कहा है कि वे ज़ईफ़ हैं, जैसेः 1- इप़्तार के समय " اللَّهُمَّ لَكَ صُمْتُ وَعَلَى رِزْقِكَ أَفْطَرْتُ " “अल्लाहुम्मा लका सुम्तो व अला रिज़्क़िका अफ़्तर्तो” (ऐ अल्लाह, मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा और तेरी प्रदान की हुई रोज़ी पर रोज़ा खोला।” 2- " أشهد أن لا أله إلا الله أستغفر الله أسألك الجنة وأعوذ بك من النار " “अश्हदो अन ला इलाहा इल्लल्लाह, अस्तग़्फ़िरुल्लाह, अस्अलुकल-जन्नता व अऊज़ो बिका मिनन्नार” (मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अलावा कोई वास्तविक पूज्य नहीं, मैं अल्लाह की क्षमा चाहता हूँ, मैं तुझसे जन्नत का प्रश्न करता हूँ और नरक से तेरे शरण में आता हूँ।) क्या यह वैध है, जायज़ है, जायज़ नहीं है, मक्रूह है, सही नहीं है या हराम हैॽक्या कोई ऐसी दुआ है जिससे मुसाफिर की उसके अपने घरवालों के पास वापस लौटने तक रक्षा होती है
वह कौन सी दुआ है कि अगर आदमी उसे पढ़ ले - और वह मुसाफिर हो - तो वह इस दुआ की प्रतिष्ठा से अपने घर वालों के पास सुरक्षित वापस लौटता है ॽमहिला रमज़ान में खाना बनाते हुए अपने समय का सदुपयोग कैसे करेॽ
मैं यह जानना चाहता हूँ कि अज्र व सवाब में वृद्धि के लिए रमज़ान के प्रतिष्ठित महीने के दौरान कौन-सा कार्य करना मुस्तहब (वांछनीय) है .. जैसे कि अज़कार, इबादतें और मुस्तहब कार्य .. मैं उनमें से : तरावीह की नमाज़, क़ुरआन की अधिक से अधिक तिलावत, ज़्यादा से ज़्यादा इस्तिग़फ़ार और रात की नमाज़ के बारे में जानती हूँ .. लेकिन मैं कुछ ऐसी दुआओं के बारे में जानना चाहती हूँ जिन्हें मैं अपने दैनिक कार्यों के दौरान; खाना बनाते हुए या घर के काम-काज करते हुए, दोहराती रहूँ। क्योंकि मैं नहीं चाहती हूँ कि मेरा अज्र बर्बाद हो।|अप्रतिबंधिति और प्रतिबंधित तक्बीर (उसकी प्रतिष्ठा, समय और विधि)
अप्रतिबंधिति और प्रतिबंधित तक्बीर क्या है और वह कब शुरू होती है।ज़ुल-हिज्जा के दिनों में अप्रतिबंधित और प्रतिबंधित तक्बीर (अल्लाहु अक्बर कहना)
यह प्रश्न ईदुल अज़हा में अप्रतिबंधित तक्बीर के बारे में है, क्या हर फर्ज़ नमाज़ के बाद तक्बीर कहना अप्रतिबंधित तक्बीर के अंतर्गत आता है या नहीं? और क्या वह सुन्नत है या मुस्तहब या बिदअत?हम “ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह” कब कहेंगेॽ
कृपया मेरे लिए स्पष्ट करें : “ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलिय्यिल अज़ीम” का क्या अर्थ है। इसपर एक साधारण टिप्पणी। हम इसे कब कहेंगेॽ