सराहनीय नैतिकता (व्यवहार)
रमज़ान से पहले क्षमा माँगने के संदेशों का क्या हुक्म हैॽ
मैं रमज़ान का महीना शुरू होने से पहले क्षमा मांगने के लिए व्हाट्सएप पर वायरल होने वाले संदेशों का हुक्म जानना चाहता हूँ।क्या उसका अपने पिता के निधन पर अधिक शोक करना धैर्य के विपरीत हैॽ
मेरे पिता का 3 महीने पहले निधन हो गया, अल्लाह उनपर दया करे। मुझे उनकी बहुत याद आती है और मैं बहुत सारे उतार-चढ़ाव से ग्रस्त हूँ। कभी तो मुझे बहुत दुख होता है मानो कि वह अभी कल ही फौत हुए हों, और कभी तो मुझे जीवन में अरूचि का एहसास होता है, तथा कभी मैं शांत होती हूँ मुझे बिल्कुल किसी चीज़ का एहसास नहीं होता है... मैंने उचित मात्रा में शरई ज्ञान प्राप्त किया है तथा मैंने कई धार्मिक किताबें पढ़ी हैं और धार्मिक पाठों और व्याख्यानों में भाग लेती हूँ। मैं सब्र (धैर्य) का अर्थ और उसके प्रतिफल को जानती हूँ। मैं उनके लिए बहुत दुआएँ करती हूँ। अक्सर मैं अपने दिल में दोहराती रहती हूँ यहाँ तक कि सोने से पहले भी, कि ऐ मेरे रब! मैं तेरे फ़ैसले से संतुष्ट (राज़ी) हूँ और तू ही देने वाला और तू ही रोकने वाला है, और केवल तेरा ही आदेश चलता है। मेरे लिए क्षमा कर दे जो मैं जानती हूँ और जो मैं नहीं जानती। मैं अपने मामले के प्रति हैरत (भ्रम) का शिकार हूँ और मेरे दिमाग़ में यह बात आती है कि मैं मुनाफ़िक़ (पाखंडी) हूँ। यदि मैं धैर्यवान हूँ, तो मैं यह दर्द और गंभीर कष्ट कैसे महसूस करती हूँ... क्या मैं जो कुछ महसूस करती हूँ वह धैर्य की वास्तविकता के विरुद्ध है और यदि मैं ऐसी नहीं हूँ तो मैं संतुष्टि कैसे प्राप्त कर सकती हूँ .. .. मैंने अल्लाह के नाम “अस्सलाम” (हर दोष से पाक और हर कमी से मुक्त) का अर्थ पढ़ा है और मैंने इस नाम पर आधारित आयतों पर विचार किया और मैं इसके साथ अपने पिता के लिए दुआ करती हूँ, मैं कहती हूँ : “ऐ अल्लाह! तू सलाम (हर दोष से पाक और हर कमी से मुक्त) है, और तुझ ही से सलामती (सुरक्षा) है, ऐ महिमा और सम्मान वाले! तू बड़ी बरकत वाला और सर्वोच्च है। मैं तुझसे सवाल करती हूँ कि तू मेरे पिता को उनकी क़ब्र में सलामती प्रदान कर और उन्हें उस दिन सलामती प्रदान कर जब वह जीवित उठाए जाएँगे।” तो क्या मेरी यह दुआ सही हैॽईमान को धर्मपरायणता के साथ मिलाने के परिणाम क्या हैंॽ
ईमान को धर्मपरायणता के साथ मिलाने के परिणाम क्या हैंॽएक मुसलमान के दूसरे मुसलमान पर अधिकारों में से कुछ अनिवार्य और कुछ एच्छिक हैं
हम एक मुसलमान के दूसरे मुसलमान के ऊपर हक़ के बारे में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीस को जानते हैं, मेरा प्रश्न यह है कि : क्या हम अपने मुसलमान भाई के लिए इन अधिकारों में से कोई अधिकार न अदा करने पर दोषी और गुनहगार होंगे ॽ अर्थात् क्या इसमें हमारे ऊपर गुनाह होगा ॽ इस अच्छे काम के लिए हम आपके बहुत आभारी हैं।वादा को पूरा करने का प्रतिफल और उसे तोड़ने की गंभीरता
वादा को पूरा करने का बदला क्या है और विश्वासघात करने का दंड क्या है ॽउन महिलाओं के लिए नसीहत जो अपना ढेर सारा समय खाना बनाने में बिताती हैं
बहुत सी महिलाएं अक्सर अपना ढेर सारा समय रसोई के अंदर विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार करने में व्यस्त रकहर बिताती हैं, जिससे उनका ढेर सारा समय बर्बाद हो जाता है। क्या आप इस बारे में मुसलमान महिला को कुछ निर्देश करेंगे ?