हदीस की व्याख्यायें
क्या रमज़ान के क़ियाम की फज़ीलत प्राप्त करने के लिए उसकी सभी रातों का क़ियाम करना ज़रूरी हैॽ
मेरे पास रमज़ान के महीने से संबंधित एक प्रश्न है। क्या हदीस : “जिसने ईमान के साथ और पुण्य की आशा रखते हुए रमज़ान का क़ियाम किया ..” का मतलब यह है कि रमज़ान में हर रात को क़ियाम (तरावीह) की नमाज़ अदा करना आवश्यक है, और अगर आपने तीस रातों में से एक रात के क़ियाम को छोड़ दिया, तो हदीस में वर्णित क्षमा का पुरस्कार आपसे छूट जाएगाॽ तथा रात में क़ियाम का न्यूनतम और अधिकतम सीमा क्या हैॽनबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन : “क़ुरआन पढ़ो क्योंकि वह अपने पढ़ने वालों के लिए सिफ़ारिशी बनकर आएगा” का क्या अभिप्राय हैॽ
अबू उमामह अल-बाहिली रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में, जिसे इमाम मुस्लिम ने रिवायत किया है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : “क़ुरआन पढ़ो, क्योंकि वह क़ियामत के दिन अपने पढ़ने वालों के लिए सिफ़ारिशी बनकर आएगा। दो प्रकाशमान् सूरतें : सूरतुल बक़रह और सूरत आल इमरान पढ़ो...” इसमें “पढ़ो” का क्या अर्थ है - क्या इसका मतलब उसे कंठस्थ करना है या मात्र पाठ करना हैॽउपदेश के शिष्टाचार
उपदेश देने (नसीहत करने) के तरीके के बारे में दिशा निर्देश क्या हैंॽ क्या यह अकेले होगा या लोगों के सामने होगाॽ और इसका योग्य कौन हैॽवह पूछती है कि कुछ हदीसों में औरतों का वर्णन निंदात्मक गुणों के साथ क्यों किया गया है ?
मैं ने यह हदीस पढ़ी है : ''फासिक़ (यानी दुराचारी, पापी) लोग ही नरकवासी हैं।'' कहा गया : ऐ अल्लाह के पैगंबर, फासिक़ कौन लोग हैं ? आप ने फरमाया : ''महिलाएं।'' एक आदमी ने कहा : क्या वे हमारी माताएं, हमारी बहनें और हमारी बीवियाँ नहीं हैं ? आप ने फरमाया : ''क्यों नहीं, लेकिन अगर उन्हें दिया जाता है तो शुक्र नहीं करती हैं और जब उनकी परीक्षा होती है तो वे सब्र नहीं करती हैं।'' मेरी समझ में यह बात नहीं आती कि : फासिक़ होना औरतों के लिए ही विशिष्ट क्यों किया गया है और शुक्र न करने और नेकी न करने का गुणता उन्हीं के लिए क्यों खास किया गया है जबकि ये चीज़ें मर्दों में भी पाई जाती हैं?केवल नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अवशेष से तबर्रुक लेना जायज़ है, किसी अन्य के नहीं
मेरे इस्लामी भाइयो! मैं ने इंटरनेट पर एक वेबसाइट का दौरा किया जहाँ मुझे ऐसी चीज़ मिली जिसे मैं एक बिद्अत (नवाचार) समझता हूँ, किन्तु अल्लाह ही बेहतर जानता है। कृपया आप मुझे इस हदीस की प्रामाणिकता के बारे में बतलायें क्योंकि मुझे इस में संदेह है। यह हदीस सहीह मुस्लिम में किताब संख्या : 24 तथा हदीस संख्या : 5149 के अंतर्गत है। अस्मा बिन्त अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हा के आज़ाद किए हुए ग़ुलाम अब्दुल्लाह से, जो कि अता के बच्चों के मामा हैं, रिवायत है, वह कहते हैं : अस्मा ने मुझे अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा के पास भेजा और यह कहलवाया : मुझे यह बात पहुंची है कि आप तीन चीज़ों को हराम (निषिद्ध) क़रार देते हैं : कपड़ों पर लगे हुए बेलबूटे को (अर्थात कपड़ों में रेशम का पेच लगाने को), उरग़ुवान की गद्दी को (घोड़े की काठी के लिए लाल रेशम का कपड़ा) तथा रजब का पूरा महीना रोज़ा रखने को। तो अब्दुल्लाह ने मुझ से कहा : तुम ने जो रजब के बारे में कहा है तो जो आदमी हमेशा रोज़ा रखता हो वह रजब के महीने में रोज़ा रखने को कैसे (हराम क़रार दे सकता है।)ॽ और तुम ने जो कुछ कपड़ों पर रेशमी बेलबूटे लगाने के बारे में कहा है तो मैं ने उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु को यह कहते हुये सुना है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (रेशमी कपड़ा वही व्यक्ति पहनता है जिस का आख़िरत (प्रलय) में कोई हिस्सा नहीं है।) इस लिए मुझे डर हुआ कि रेशम के बेलबूटे भी इसी अध्याय से हैं। और रही बात उरग़ुवान के गद्दी की तो अब्दुल्लाह का गद्दी यह है। और वह गद्दी उरगुवानी (लाल) रंग की थी। (अब्दुल्लाह बिन कीसान कहते हैं :) मैं अस्मा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास वापस आया और उन्हें इन सब बातों की सूचना दी, तो वह कहने लगीं : यह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का जुब्बा (वह पोशाक जो कपड़े के ऊपर पहना जाता है।) है, तथा उन्हों ने तयालसी (मोटे कपड़े) का एक किसरवानी (किस्रा के युग में पहना जाने वाला) जुब्बा निकाला जिस पर दीबाज (प्राकृतिक रेशम का एक ब्रांड़) की धारियाँ बनी हुई थीं और उस के दोनों कफों पर दीबाज लगा हुआ था। उन्हों ने कहा : यह जुब्बा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की वफात (निधन) तक उन के पास था और जब उन की वफात हुई तो उस को मैं ने ले लिया। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस जुब्बे को पहना करते थे। हम बीमारों के लिए इस जुब्बे को (पानी में डाल कर) धोते हैं ताकि उस (पानी) से शिफा प्राप्त करें। यह हदीस किस हद तक सही है?पोर्क के निषिद्ध होने का क्या कारण है ?
मैं माल्टा में रहने वाला एक अरब मूल का व्यक्ति हूँ, मैं सुअर के मांस के निषिध होने का कारण जानना चाहता हूँ, क्योंकि मेरे साथ काम करने वाले दोस्तों ने मुझ से इसके बारे में पूछा है।हर पाँच साल पर हज्ज करने की हदीस की प्रामाणिकता और उसका अर्थ
हम अल्बानी की सहीहुत् तर्गीब वत्-तर्हीब में मौजूद हदीस को कैसे समझें, जो कि एक हदीस क़ुदसी है, जिसमें अल्लाह तआला फरमाता है: “जिसे अल्लाह तआला ने स्वास्थ्या दिया है और हर पाँच साल पर अल्लाह के घर की ज़ियारत न करे तो वह महरूम (वंचित) है।” इस हदीस से हम क्या समझते हैं ?हदीस : "हामा, सफर, नौअ और ग़ूल कुछ भी नहीं है" का अर्थ
मैं ने एक अनोखी हदीस पढ़ी है जिस में "हामा, सफर, नौअ और ग़ूल" का खण्डन किया गया है, तो इन शब्दों का क्या अर्थ है ?हदीस “जिसने मेरी मृत्यु के बाद मेरी क़ब्र की ज़ियारत की तो मानो उसने मेरे जीवन में मेरी ज़ियारत की” की प्रामाणिकता क्या है ॽ
मुझे पता चला है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है कि आपकी मृत्यु के बाद आपकी क़ब्र की ज़ियारत करना आपके जीवन काल में आपकी ज़ियारत करने के समान है, इसीलिए जब हम मदीना में आपकी क़ब्र की ज़ियारत करते हैं तो यह हराम नहीं समझा जाता है कि हम आपसे ऐसे ही बात करें जैसे कि यदि आप जीवित होते, और यह कि हम आपसे अपने लिए क़ियामत के दिन अल्लाह के पास शफाअत मांगें। लेकिन मैं इस बात से चिंतित हूँ कि इसमें शिर्क की कोई चीज़ हो सकती है।