क्या औरत शादी से पूर्व काम-वासना के बारे में सोचने पर गुनाहगार होगी ? और क्या वह मज़ी (चुंबन आदि के कारण बिना इच्छा के पेशाब की नाली से निकलने वाला पतला पानी) के स्खलन पर गुनाहगार होगी ? इसलिए कि वह एक साधारण चीज़ से भी प्रभावित हो जाती है। मेरा अनुरोध है कि जल्द उत्तर दें। क्योंकि मैं बहुत चिंतित हूँ। मुझे पता ही नहीं था कि मज़ी नाम की भी कोई चीज़ होती है, और मैं मज़ी के निकलने पर नया वुज़ू नहीं करती थी।
उसे पता नहीं था कि मज़ी से वुज़ू टूट जाता है, तो क्या वह नमाज़ों को दोहरायेगी ?
प्रश्न: 102504
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
सर्व प्रथम :
औरत काम-वासना के बारे में मात्र सोचने पर गुनाहगार नहीं होगी, जबतक कि उसके साथ कोई कार्रवाई या नज़र (दृष्टि) न हो, या वह सोच दृढ़ संकल्प और पक्का इरादा में परिवर्तित न हो जाए। क्योंकि मन में पैदा होने वाली बातों को क्षमा कर दिया गया है, जैसा कि अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में आया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''अल्लाह तआला ने हमारी उम्मत से उस चीज़ को क्षमा कर दिया है जिसे उनके दिल बात करते हैं (यानी जिसे वे अपने मन में लाते हैं) जब तक कि वे बात न करें या उसके अनुसार काम न करें।'' इसे बुखारी (हदीस संख्या : 2528) और मुस्लिम (हदीस संख्या: 127) ने रिवायत किया है।
अल्लामा नववी रहिमहुल्लाह ने इस हदीस की व्याख्या में फरमाया : ''मन की बात-चीत यदि स्थिर न रहे और आदमी उस पर बना न रहे : तो वह विद्वानों की सहमति के साथ क्षम्य है ; क्योंकि उसके होने में उसका कोई अधिकार नहीं है और उससे छुटकारे का उसके पास कोई रास्ता नहीं है।'' नववी की किताब ''अल-अज़कार'' (पृष्ठ: 345) से अंत हुआ।
तथा उन्हों ने फरमाया : ''माफी का कारण वही है जो हमने उल्लेख किया कि उससे बचना कठिन है, परंतु उप पर बने रहना संभव है। इसीलिए उस पर बने रहना और उसका संकल्प करना हराम है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि इस तरह के ख्यालों और विचारों में पड़े रहना, वासना को शांत करने की चाहत में हराम तक पहुँचा सकता है। इसके कारण मनुष्य हस्तमैथुन करने या हराम (निषिद्ध) छवियों के पीछे लगने, इत्यादि का शिकार हो जाता है।
इसलिए उचित यह है कि आप इन चीज़ों के बारे में सोचना बंद कर दें, अपने मन को इससे हटा लें और अपने आप को अल्लाह की आज्ञाकारिता तथा ऐसी चीज़ों में व्यस्त कर लें जो आप के धार्मिक और सांसारिक मामलों में लाभप्रद है।
तथा प्रश्न संख्या (20161) का उत्तर देखें।
दूसरा : आम तौर से मज़ी, वासना के भड़कने के समय निकलती है। वह नापाक और वुज़ू को तोड़ने वाली है। लेकिन उसकी नापाकी (अपवित्रता) हल्की है। अतः उससे पाक होने के लिए योनि को धोना और कपड़े पर पानी छिड़क लेना काफी है।
तथा प्रश्न संख्या (2458) व (99507) का उत्तर देखना चाहिए।
अगर मात्र सरसरी सोच की वजह से मज़ी स्खलित हो जाए, तो आदमी इससे गुनाहगार नहीं होगा।
तीसरा :
अगर आप मज़ी के मामले की और उसके वुज़ू को तोड़ने वाली चीज़ होने के बारे में जानकारी नहीं रखती थीं, और इसी हालत में आप कुछ नमाज़ें पढ़ लेती थीं, तो आपकी नमाज़ राजेह कथन के अनुसार सहीह है, क्योंकि आप अज्ञानता की वजह से क्षम्य (माज़ूर) है।
इसी तरह जो आदमी वुज़ू तोड़ने वाली कुछ चीज़ों से अनभिज्ञ है, जैसे कि कोई आदमी यह नहीं जानता है कि ऊँट का गोश्त खाने से वुज़ू टूट जाता है। फिर उसने नमाज़ पढ़ ली, तो उसकी नमाज़ सही है।
शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह फरमाते हैं : '' इस आधार पर, यदि वह मूल प्रमाण न पहुँचने की वजह से अनिवार्य पवित्रता को छोड़ दे, उदाहरण के लिए : वह ऊँट का गोश्त खाए और वुज़ू न करे। फिर उसे मूल प्रमाण पहुँचे और उसके लिए वुज़ू के अनिवार्य होने की बात स्पष्ट हो जाए। या वह ऊँट के बाड़े में नमाज़ पढ़े फिर उसे जानकारी पहुँचे और उसके लिए मूल प्रमाण स्पष्ट हो जाए : तो क्या उसके ऊपर पीछे बीत गई चीज़ों को दोहराना अनिवार्य है ? इसके बारे में दो कथन हैं और वे दोनों इमाम अहमद से दो रिवायतें हैं।
इसी मुददे के समान यह भी है कि : वह अपने लिंग को छू ले और नमाज़ पढ़ ले, फिर उसे इस बात का पता चले कि लिंग छूने स वुज़ू करना अनिवार्य है।
इन सभी मसायल (मुद्दों) में सहीह बात यह है कि : दोहराना अनिवार्य नहीं है, क्योंकि अल्लाह तआला ने गलती और भूल-चूक को माफ़ कर दिया है, और इसलिए भी कि अल्लाह का फरमान है :
( وما كنا معذبين حتى نبعث رسولا )
''और हम सज़ा नहीं देते यहाँ तक कि एक संदेश्वाहक को भेज दें।''
अतः जिस व्यक्ति को किसी निर्धारित चीज़ के बारे में पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आदेश न पहुँचे : तो उसके ऊपर उसकी अनिवार्यता का हुक्म साबित नहीं होगा। इसीलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उमर और अम्मार रज़ियल्लाहु अन्हुमा को जब उन्हें स्वपनदोष हो गया था तो उमर ने नमाज़ नहीं पढ़ी थी और अम्मार ने ज़मीन पर लोट-पोट कर नमाज़ पढ़ ली थी, तो आप ने उनमें से किसी एक को नमाज़ दोहराने का आदेश नहीं दिया। इसी तरह आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अबू ज़र्र रज़ियल्लाहु अन्हु को भी नमाज़ दोहराने का आदेश नहीं दिया जब उन्हें स्वपनदोष हो जाता था और वह कई दिनों तक ठहरे रहते थे नमाज़ नहीं पढ़ते थे। इसी तरह आप ने सहाबा में से उस आदमी को रोज़ा क़ज़ा करने का हुक्म नहीं दिया जो खाते रहते थे यहाँ तक कि सफेद रस्सी काली रस्सी से ज़ाहिर हो जाए। तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन लोगों को भी क़ज़ा करने का हुक्म नहीं दिया जिन्हों ने क़िब्ला के मन्सूख होने का हुक्म पहुँचने से पहले बैतुल मक्दिस की ओर मुँह करके नमाज़ पढ़ी थी।
इसी अध्याय से : इस्तिहाज़ा वाली औरत भी है यदि वह एक अवधि तक ठहरी रहे नमाज़ न पढ़े यह मानते हुए कि उसके ऊपर नमाज़ अनिवार्य नहीं है, तो उसके ऊपर छूटी हुई नमाज़ों की क़ज़ा के अनिवार्य होने के बारे में दो कथन हैं, उनमें से एक यह है कि : उसके ऊपर नमाज़ों को दोहराना अनिवार्य नहीं है – जैसा कि इमाम मालिक वग़ैरह से उल्लेख किया गया है- ; क्योंकि वह इस्तिहाज़ा वाली महिला जिसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कहा था कि : ''मुझे बड़ा गंभीर घृणित मासिक धर्म आ गया जिसने मुझे नमाज़ और रोज़े से रोक दिया।'' तो आप ने उसे इस बात का आदेश दिया कि उसे भविष्य में क्या करना चाहिए, और आप ने उसे भूतकाल की छूटी हुई नमाज़ों की क़ज़ा का आदेश नहीं दिया।'' 'मजमूउल फतावा' (21/101).
हम अल्लाह तआला से आपके लिए तौफीक़ (कार्य शक्ति), विशुद्धता, पवित्रता और सतीत्व का प्रश्न करते हैं।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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