दाढ़ी, छोटे कपड़ों (अर्थात् कपड़ों को टखनों से ऊपर रखने) और इन के अलावा पवित्र सुन्नत के अन्य प्रतीकों का जिन का हमें आदेश दिया गया है, मज़ाक उड़ाने का क्या हुक्म है ? आप का उन लोगों के बारे में क्या विचार है जिन्हें जब इन इबादतों का हुक्म दिया जाता है तो अपने दिल की तरफ संकेत कर के कहते हैं कि “तक्वा” (ईश्भय) यहाँ है। ?
सुन्नत के प्रतीकों का मज़ाक़ उड़ाना
प्रश्न: 10397
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।
दाढ़ी या लंबाई में सुन्नत के अनुकूल कपड़े कामज़ाक़ उड़ाने वाला, या इस के अलावा किसी अन्य सुन्न्त का मज़ाक़ उड़ाने वाला काफिर होजाता है यदि वह इस बात को जानता था कि यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल से साबित है,क्योंकि इस तरह वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन और कृत्य का मज़ाक़ उड़ाने वालाहो जाता है। और इस स्थिति में वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से द्वेष रखने वालाऔर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत की खिल्ली उड़ाने वाला हो जाता है, और जोव्यक्ति सुन्नत की खिल्ली उड़ाये और ज्ञान रखते हुये भी सुन्नत (हदीस शरीफ) में प्रमाणितचीज़ का मज़ाक़ उड़ाये वह मुसलमान नहीं है। अल्लाह तआला का फरमान है : “आप कह दीजिए,क्या तुम अल्लाह,उस की आयतों और उस केरसूल का मज़ाक़ उड़ाते थे ? अब बहाने न बनाओ, नि:सन्देह तुम ईमान के बाद (फिर) काफिरहो गए।” (सूरतुत्तौबा : 65 – 66)
और वह आदमी जिसे किसी शरई हुक्म के लिए बुलायाजाता है तो कहता है कि तक़्वा (धर्मपरायणता) दिल में है और शरई हुक्म का पालन नहींकरता है तो यह बदतरीन झूठा है, क्योंकि ईमान (विश्वास) कथन और कृत्य दोनों का नाम हैकेवल वह दिल के विश्वास का नाम नहीं है, और उस की यह बात दुष्ट और बिद्अती मुरजियाके कथन के समान है जो ईमान को अंगों को छोड़ कर केवल दिल के साथ सीमित मानते हैं। फिरयह बात भी है कि यदि दिल शुद्ध (निरोग) होता और ईमान उस में भरपूर होता तो इस का प्रदर्शनआमाल (व्यवहार) पर भी होता, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं कि : “सुनो!शरीर में एक टुकड़ा (अंग) है, अगर वह शुद्ध और निरोग रहता है तो उस का पूरा शरीर शुद्धऔर स्वस्थ रहता है, और जब वह दुष्ट और रोगी हो जाता है तो उस का पूरा शरीर दुष्ट औरखराब हो जाता है, सावधान! व दिल है।” (सहीह बुखारी हदीस संख्या : 52,सहीह मुस्लिम हदीस संख्या: 1599) तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम यह भी फरमाते हैं कि :
“अल्लाह तआला तुम्हारी तस्वीरों (रंगरूप)और तुम्हारे धनों को नहीं देखता, किन्तु वह तुम्हारे दिलों और तुम्हारे कामों (आमाल)को देखता है।” (सहीह मुस्लिम हदीस संख्या : 2564)
तथापि इन हठी और अड़ियल लोगों तथा हक़ बात केअनुसरण और शरई अहकाम के संप्रयोग को अस्वीकारने वालो लोगों का कथन उन के ईमान (विश्वास)की कमी की पहचान (चिन्ह) है,और इस के द्वारा वे लोग धर्म प्रचारकों और नसीहतकरने वालों को उन के आमन्त्रण और नसीहत से रोक देना चाहते हैं।
स्रोत:
शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद