यह प्रश्न ईदुल अज़हा में अप्रतिबंधित तक्बीर के बारे में है, क्या हर फर्ज़ नमाज़ के बाद तक्बीर कहना अप्रतिबंधित तक्बीर के अंतर्गत आता है या नहीं? और क्या वह सुन्नत है या मुस्तहब या बिदअत?
ज़ुल-हिज्जा के दिनों में अप्रतिबंधित और प्रतिबंधित तक्बीर (अल्लाहु अक्बर कहना)
प्रश्न: 10508
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
जहाँ तक ईदुल अज़हा में तक्बीर की बात है, तो वह महीने के शुरू से ज़ुल-हिज्जा के तेरहवें दिन के अंत तक धर्म संगत है, क्योंकि अल्लाह सर्वशक्तिमान का कथन है:
ليشهدوا منافع لهم ويذكروا اسم الله في أيام معلومات [الحج : 28]
''ताकि वे अपने लाभों को प्राप्त करने के लिए उपस्थित हों, और उन ज्ञात और निश्चित दिनों में अल्लाह का नाम याद करें।'' (सूरतुल हज्जः 28)
और वे ज़ुल-हिज्जा के दस दिन हैं। तथा अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है :
واذكروا الله في أيام معدودات [البقرة :203]
''और गिनती के इन कुछ दिनों में अल्लाह को याद करो।'' (सूरतुल बक़रा: 203)
और यह तश्रीक़ के दिन (अर्थात ज़ुल हिज्जा की 11, 12, 13 तारीख के दिन) हैं।
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ''तश्रीक़ के दिन खाने, पीने और अल्लाह के स्मरण के हैं।'' इसे मुस्लिम ने अपनी सहीह में रिवायत किया है। और बुखारी ने अपनी सहीह में तालीक़न इब्ने उमर और अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हुमा से उल्लेख किया है कि : ''वे दोनों लोग ज़ुल-हिज्जा के दस दिनों में बाज़ार की ओर निकलते थे और तक्बीर कहते थे और उन दोनों की तक्बीर की वजह से लोग भी तक्बीर कहते थे।''
तथा उमर बिन खत्ताब और उनके बेटे अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हुमा मिना के दिनों में मस्जिद में और तम्बू में तक्बीर कहते थे और उसके साथ अपनी आवाज़ों को बुलंद करते थे यहाँ तक कि मिना तक्बीर से गूँज उठती थी।
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से और सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के एक समूह से रिवायत किया गया है कि वे अरफा के दिन फज्र की नमाज़ से लेकर ज़ुल-हिज्जा के तेरहवें दिन अस्र की नमाज़ तक पाँचों नमाज़ों के बाद तक्बीर कहा करते थे, और यह हज्ज न करने वाले के हक़ में है, रही बात हज्ज करने वाले की तो वह अपने एहराम की हालत में तल्बिया में व्यस्त रहेगा यहाँ तक कि यौमुन्नहर (दस ज़ुल-हिज्जा) को जमरतुल अक़बह को कंकरी मार दे। उसके बाद वह तक्बीर में व्यस्त हो जायेगा, और तक्बीर की शुरूआत उक्त जमरह को फहली कंकरी मारने के समय से करेगा, और यदि तल्बियह के साथ ही तक्बीर कहता है तो कोई आपत्ति की बात नहीं है। क्योंकि अनस रज़ियल्लाहु अन्हु का कथन है : ‘‘अरफा के दिन तल्बियह कहने वाला तल्बिया कहता था और उस पर कोई इनकार नही किया जाता था और तक्बीर कहनेवाला तक्बीर कहता था और उसके ऊपर कोई आपत्ति नहीं जताई जाती थी।'' इसे बुखारी ने रिवायत किया है।
लेकिन उपर्युक्त दिनों में मोहरिम के हक़ में बेहतर तल्बियह कहना और हलाल (गैर मोहरिम) के हक़ में तक्बीर कहना है।
इससे आप को पता चल गया होगा कि विद्वानों के सबसे सहीह कथन के अनुसार मुतलक़ (अप्रतिबंधित) और मुक़ैयद (प्रतिबंधित) तक्बीर पाँच दिनों में एकत्रित हो जाते हैं और वह अरफा का दिन, कुर्बानी का दिन (यौमुन्नहर), और तश्रीक़ के तीन दिन हैं। रही बात आठवीं ज़ुल-हिज्जा के दिन और उससे पहले महीने के शुरू तक के दिनों की, तो तकबीर उसमें मुतलक़ (अप्रतिबंधित) है मुक़ैयद (प्रतिबंधित) नहीं है, जैसाकि इसके बारे में आयत और आसार (यानी सहाबा किराम का अमल) गुज़र चुके हैं। तथा मुसनद (अहमद) में इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया कि आप ने फरमाया : ‘‘अल्लाह के निकट कोई भी दिन ऐसा नहीं है जिसमें अमल (नेकी) करना अल्लाह के निकट इन दस दिनों से अधिक महान और अधिक पसंदीदा हो, अतः इन दिनों में अधिक से अधिक ला इलाहा इल्लल्लाह, अल्लाहु अक्बर और अल्हम्दुलिल्लाह कहो।'' या जैसा भी आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमने फरमाया।
स्रोत:
किताब मजमूओ फतावा व मक़ालात मुतनौविआ लि-समाहतिश शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़ – रहिमहुल्लाह - 13/17
संबंधित उत्तरों