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क़ुरआन के हक़ की क़सम खाने का हुक्म

प्रश्न: 105375

क़ुरआन के हक़ (अधिकार) की क़सम खाने या शपथ लेने का क्या हुक्म हैॽ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

 “क़ुरआन के हक़ (अधिकार) की क़सम खाना (या शपथ ग्रहण करना) किसी के लिए भी अनुमेय नहीं है। क्योंकि क़ुरआन का हक़ (अधिकार) यह है कि हम उसका सम्मान करें, उसका पालन करें और यह विश्वास करें कि वह महिमावान अल्लाह की वाणी है। और ये सब हमारे कार्यों में से हैं, और मख़्लूक़ की या उसके कार्यों की क़सम नहीं खाई जाती। बल्कि, केवल महिमावान अल्लाह की, या उसके नामों में से किसी नाम या उसके गुणों में से किसी गुण की क़सम खाई जाती है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : (जो व्यक्ति क़सम खाना चाहे, वह केवल अल्लाह की क़सम खाए, या फिर चुप रहे।”

और अल्लाह तआला ही तौफ़ीक़ (सामर्थ्य) प्रदान करने वाला है, तथा अल्लाह हमारे पैगंबर मुहम्मद, उनके परिवार और उनके साथियों पर दया एवं शांति अवतरित करे।” उद्धरण समाप्त हुआ।

शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़ … शैख अब्दुर्रज़्ज़ाक़ अफ़ीफ़ी … शैख अब्दुल्लाह बिन ग़ुदय्यान … शैख अब्दुल्लाह बिन क़ऊद।

"फ़तावा अल-लज्नह अद-दाईमह लिल-इफ़्ता” (24/363).

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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