मुसलमान लोग रमज़ान के महीने के प्रवेश करने और उसके समाप्त होने के बार में एकजुट क्यों नहीं होते? और इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जा सकता है?
मुसलमानों का रोज़ा रखने और तोड़ने में एकजुट होना एक शरई मांग है और इसे प्राप्त करने के तरीक़े का वर्णन
प्रश्न: 106498
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
हर प्रकारकी प्रशंसा औरगुणगान केवल अल्लाहके लिए योग्य है।
”इस में कोईसंदेह नहीं किमुसलमानों का रोज़ारखने और रोज़ा तोड़नेमें एकजुट होनाएक अच्छी बात हैऔर दिलों को प्रियहै और जहाँ हो सकेशरई तौर पर अपेक्षितहै, लेकिन इसकीओर दो चीज़ों केद्वारा ही रास्तासंभव है :
प्रथम : सभी मुसलमानविद्वान हिसाबपर भरोसा करनारद्द कर दें जिसतरह कि अल्लाहके पैगंबर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने इसे रद्द करदिया और उम्मतके पूर्वजों नेइसे रद्द कर दिया, और वेचाँद की दृष्टिपर या संख्या पूरीकरने पर अमल करेंजैसाकि अल्लाहके पैगंबर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने सहीह हदीसोंके अंदर इसे स्पष्टकिया है। तथा शैखुलइस्लाम इब्ने तैमिय्यारहुमहुल्लाह नेफतावा (25/132, 133) में इस बातपर विद्वानों कीसर्वसहमति का उल्लेखकिया है कि रोज़ेऔर इफ्तार आदिको साबित करनेमें हिसाब पर भरोसाकरना जायज़ नहींहै। तथा हाफिज़ने फत्हुलबारी(4/127) में अल-बाजी से:(हिसाब का एतिबारन करने पर पूर्वजोंकी सर्वसहमति काउल्लेख किया हैऔर यह कि उनकी सर्वसहमतिउनके बाद में आनेवालों पर हुज्जत(तर्क) है।)
दूसरी चीज़: वे लोग किसीभी इस्लामी देशमें जो अल्लाहकी शरीअत पर अमलकरता है और उसकेअहकाम की पाबंदीकरता है, चाँद की दृष्टिसाबित हो जानेपर भरोसा करें।चुनाँचे जब भीवहाँ (यानी उसदेश में) शरई सबूतोंके साथ चाँद कीदृष्टि साबित होजाए, चाहे वह रमज़ानके प्रवेश करनेमें हो या उससेनिकलने में हो,इसमें उनकी पैरवीकरें। नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमके इस कथन पर अमलकरते हुए किः ”चाँददेखकर रोज़ा रखोऔर चाँद देखकररोज़ा रखना बंदकरो, यदि तुम्हारेऊपर बदली हो जायेतो अवधि पूरी करो।”
तथा इसीविषय में आप सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमका यह फरमान भीहै : ”हम एक अनपढ़ (निरक्षर)लोग हैं, हम न लिखतेहैं और न गणना करतेहैं, महीना इतनाऔर इतना और इतनाहोता है।” और आपने अपने हाथ सेतीन बार संकेतकिया और तीसरीबार अपने अंगूठेको बंद कर लिया।”और महीना इतनाऔर इतना और इतनाहोता है।” और आपने अपनी पूरी अंगुलियोंसे संकेत किया।आप सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमका इससे मतलब यहथा कि महीना उन्तीसदिनों का होताहै और (कभी) तीस दिनका होता है। इसअर्थ की हदीसेंबहुत हैं, जिनमेंइब्ने उमर, अबूहुरैरा, और हुज़ैफाबिन अल-यमान वगैरहरज़ियल्लाहु अन्हुमकी हदीसेंशामिल हैं। औरयह बात सर्वज्ञातहै कि नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमका संबोधन मदीनावालों के लिए विशिष्ठनहीं है। बल्किवह परलोक के दिनतक सभी नगरों औरसभी युगों मेंपूरी उम्मत केलिए संबोधन है।तो जब भी यह दोनोंचीज़ें पाई जायेंगीतो इस्लामी राज्योंके लिए रोज़ा रखनेपर और रोज़ा तोड़नेपर एकजुट होनासंभव होगा। हमअल्लाह तआला सेप्रश्न करते हैंकि वह उन्हें इसकीतौफीक़ प्रदान करे, और इस्लामीशरीअत को लागूकरने और उसके विरूधचीज़ों को त्यागनेपर मदद करे। इसमेंकोई संदेह नहींकि यह उनके ऊपरअनिवार्य है। क्योंकिअल्लाह सर्वशक्तिमानका कथन है :
فَلا وَرَبِّكَ لا يُؤْمِنُونَ حَتَّى يُحَكِّمُوكَ فِيمَا شَجَرَبَيْنَهُمْ ثُمَّ لا يَجِدُوا فِي أَنْفُسِهِمْ حَرَجاً مِمَّا قَضَيْتَوَيُسَلِّمُوا تَسْلِيماً [النساء : 65]
”(हेमुहम्मद !) सौगन्ध हैआपके रब (पालनहार)की ! यह मोमिन नहींहो सकते जब तक किआपस के समस्त विवाद(मतभेद) में आपकोन्यायकर्ता न मानलें, फिर जो न्यायआप उन में कर देंउस से अपने हृदयमें किसी प्रकारकी तंगी और अप्रसन्नतान अनुभव करें, बल्किसम्पूर्ण रूप सेउसको स्वीकार करलें।” (सूरतुन-निसाः65)
तथा इसके अर्थमें आने वाली अन्यआयतें भी हैं।तथा इसमें कोईसंदेह नहीं किअपने सभी मामलोंमें उससे फैसलाकराने में उनकाकल्याण, और उनका नजात(मोक्ष), उनका एकीकरण,उनके दुश्नों परउनकी विजय और लोकपरलोक के सौभाग्यकी प्राप्ति है।चुनाँचे हम अल्लाहसे प्रार्थना करतेहैं कि वह उनकेसीनों को इसकेलिए खोल दे और उनकीइस पर सहायता करे।निःसंदेह वह सुननेवालाबहुत निकट है।”अंत हुआ।
फज़ीलतुश्शैखअब्दुल अज़ीज़ बिनबाज़ रहिमहुल्लाह।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर