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जो व्यक्ति हज्ज या उम्रा करना चाहता है वह मीक़ात पर क्या करेगा?

प्रश्न: 109225

जो व्यक्ति हज्ज या उम्रा करना चाहता है उसे मीक़ात पर क्या करना चाहिए?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार कीप्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

‘‘जब वह मीक़ात परपहुँचे तो उसके लिए मुस्तहब (अच्छा) है कि वह स्नान करे और सुगंध (खुश्बू) लगाए।क्योंकि यह बात वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एहराम बांधने के समयसिले हुए वस्त्र उतार दिए और स्नान किया। और क्योंकि सहीहैन (सहीह बुखारी व सहीहमुस्लिम) में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से साबित है कि उन्हों ने फरमाया : (मैं अल्लाहके पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को सुगंध लगाती थी आपके एहराम के लिए आपकेएहराम बांधने से पहले, और आपके हलाल होने पर आपके काबा का तवाफ़ करने से पहले।) तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आयशा रज़ियल्लाहुअन्हा को, जब वह मासिक धर्म से हो गईं और उन्हों ने उम्रा का एहराम बांध रखा था,यह आदेश दिया कि वह स्नान कर हज्ज का एहराम बांधें। तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अस्मा बिन्त उमैस को जब उन्हों ने ज़ुल-हुलैफा पहुँचकरबच्चे को जना, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आदेश दिया कि वह स्नान करें औरकपड़े का लंगोट बांध लें और एहराम बांधें। इससे पता चला कि औरत जब मीक़ात परपहुँचे और वह मासिक धर्म से हो या बच्चे के जनने के बाद उसे खून बह रहा हो, तो वहस्नान करेगी और लोगों के साथ एहराम बांधेगी और वह अल्लाह के घर (काबा) का तवाफ़ करने के अलावाहर वह काम करेगी जो एक हाजी करता है, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आयशाऔर अस्मा रज़ियल्लाहु अन्हुमा को इसका आदेश दिया था।

जो आदमी एहरामबांधना चाहता है उसके लिए मुस्तहब यह है कि वह अपनी मूंछ, अपने नाखूनों और अपने जघनऔर बगल के बालों की देखभाल करे, चुनाँचे जिसे काटने की ज़रूरत हो उसे काट ले, ताकि ऐसा न हो कि उसे एहरामके बाद उसे काटने की जरूरत पड़े जबकि वह उसके ऊपर (एहराम की हालत में होने केकारण) हराम व निषिद्ध हो। और इसलिए कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नेमुसलमानों के लिए इन चीज़ों का हर समय ध्यान रखने का हुक्म दिया है। जैसाकि सहीहैनमें अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से प्रमाणित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमने फरमाया : (पाँच चीज़ें प्राकृतिक हैं : खत्ना, उस्तरे से जघन के बालों को साफकरना, मूंछें कतरना, नाखून काटना, बगल के बाल उखाड़ना।) तथा सहीह मुस्लिम में अनसरज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने फरमाया: (हमारे लिए मूंछें कतरने,नाखून काटने, बगल के बाल उखाड़ने और जघन के बालों को मूंडने के विषय में समयनिर्धारित किया गया है कि : हम उन्हें चालीस दिन से अधिक न छोड़ें।)

जबकि नसाई ने इन शब्दोंके साथ रिवायत किया है कि : (हमारे लिए अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमने समय निर्धारित किया है।) तथा अहमद, अबू दाऊद और तिर्मिज़ी ने नसाई के शब्दों केसाथ रिवायत किया है। रही बात सिर (के बालों) की, तो एहराम बांधने के समय इसमें सेकुछ भी लेना (काटना) धर्मसंगत नहीं है, न तो पुरुषों के लिए और न ही महिलाओं के लिए।

जहाँ तक दाढ़ी का संबंध हैतो उसका मूंडना या उसमें से कुछ भी काटना हर समय हराम (निषिद्ध) है, बल्कि उसेवैसे ही छोड़ देना और बढ़ाना अनिवार्य है; क्योंकि सहीहैन में इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमासे साबित है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नेफरमाया : (मुश्रिकों का विरोध करो, और दाढ़ी को बढ़ाओ और मूंछों को बारीक करो)।तथा मुस्लिम ने अपनी सहीह में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से उल्लेख किया है किउन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (मूंछों कोकतरो और दाढ़ी को बढ़ने दो, मजूस (अग्निपूजकों) का विरोध करो।).

इस युग में बहुत सेलोगों के इस सुन्नत का उल्लंघन करने और दाढ़ी का विरोध करने, तथा काफिरों और महिलाओंकी समानता अपनाने से संतुष्ट होने की वजह से आपदा बढ़ गई है, विशेषकर वे लोग जोज्ञान और शिक्षा से संबंधित हैं। इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजेऊन (निःसन्देहहम अल्लाह ही के लिए हैं और उसी की ओर वापस होनेवाले हैं), हम अल्लाह से प्रश्नकरते हैं कि वह हमें और सारे मुसलमानों को सुन्नत का अनुपालन करने, उसे दृढ़ता केसाथ थामने और उसकी ओर आमंत्रित करने की तौफीक़ प्रदान करे, अगरचे अक्सर लोग इससे उपेक्षाकरते हैं। हस्बुनल्लाहु व नेमल वकील, व ला हौला व ला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहलिअलिय्यिल अज़ीम।

फिर पुरुष एक चादर औरतहबंद पहन ले। मुस्तहब यह है कि वे दोनों सफेद औरसाफ़ सुथरे हों। और यह भी मुस्तहब है कि वह जूते (नअल) में एहराम बांधे; क्योंकिनबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : (और तुम में से कोई व्यक्ति एक तहबंद,एक चादर और दो जूतियों में एहराम बांधे) इसे इमाम अहमद ने वर्णन किया है।

रही बात महिला की तोउसके लिए काले या हरे या उनके अलावा अन्य जिस रंग के कपड़े में भी चाहे एहराम बांधसकती है, पर वह पुरुषों की उनकी पोशाक में नकल करने से सावधान रहेगी। लेकिन उसकेलिए एहराम की हालत में नकाब और दस्ताने पहनना अनुमेय नहीं है। परंतु वह अपने चेहरेको नकाब और दस्ताने के अलावा से ढांपेगी, क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमने एहराम वाली महिला को नकाब और दस्ताने पहनने से मना किया है। रही बात कुछसामान्य जन का महिलाओं के एहराम को एकमात्र हरे या काले रंग के कपड़े में विशिष्टकरने की, तो उसका कोई आधार नहीं है।

फिर वह स्नान औरसफाई-सुथराई से फारिग होने और एहराम के कपड़े पहनने के बाद, अपने दिल से हज्ज याउम्रा में से उस इबादत की नीयत करे जिसे वह करना चाहता है, क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम का फरमान है : (कार्यों का आधार नीयतों (इरादों) पर है, और हर आदमी के लिए वहीकुछ है जिसकी उसने नीयत की है।).

तथा उसके लिए उसचीज़ का शब्दों में उच्चारण करना धर्मसंगत है जिसकी उसने नीयत की है, यदि उसकीनीयत उम्रा की है तो वह कहेः (लब्बैका उम्रह) या (अल्लाहुम्मा लब्बैका उम्रह) औरयदि उसकी नीयत हज्ज की है तो वह कहेः (लब्बैका हज्जा) या (अल्लाहुम्मा लब्बैकाहज्जा), क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ऐसा किया है, और यदि उसने उनदोनों की एक साथ नीयत की है तो वह उसका तल्बिया पुकारते हुए कहेः (अल्लाहुम्मालब्बैका उम्रतन व हज्जा)। सर्वश्रेष्ठ यह है कि वह शब्दों के द्वारा इसका उच्चारणसवारी पर विराजमान होने के बाद करे चाहे वह चौपाया हो या कार या अन्य, क्योंकि नबीसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी सवारी (ऊँटनी) पर बैठने के बाद तल्बिया पुकाराथा जब वह आपको लेकर मीक़ात से चल पड़ी थी, यही विद्वानो के कथनों में से सबसे सहीकथन है।

उसके लिए नीयत काशब्दों द्वारा उच्चारण करना विशिष्ट रूप से केवल एहराम में जायज़ है, क्योंकि नबीसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से ऐसा वर्णित है।

जहाँ तक नमाज़,तवाफ़ वगैरह का संबंध है तो उसके लिए इनमें से किसी चीज़ के अंदर शब्दों में नीयतकरना उचित नहीं है, चुनाँचे वह यह नही कहेगाः नवैतो अन-उसल्लिया कज़ा व कज़ा (मैंने ऐसी और ऐसी नमाज़ पढ़ने का इरादा किया) और न यह किः नवैतो अन-अतूफा कज़ा (मैंने ऐसा तवाफ़ करने की नीयत की), बल्कि शब्दों के द्वारा उसका उच्चारण करना नवीनअविष्कारित बिदअतों में से है, और उसे ऊंचे स्वर में बोलना और अधिक बुरा और सख्तगुनाह का काम है। यदि नीयत का शब्दों में उच्चारण करना धर्मसंगत होता तो पैगंबरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उसे अवश्य स्पष्ट करते, और अपने कर्म या कथन के द्वाराउसे उम्मत के लिए बयान करते, और सलफ सालेहीन (पुनीत पूर्वज) उसे करने में पहल किएहोते।

जब नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम से ऐसा वर्णित नहीं है, और न ही आपके सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम सेही ऐसा वर्णित है, तो पता चला कि यह बिदअत है, और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम काकथन हैः (सबसे बुरा मामला नवाचार हैं, और हर बिदअत पथ-भ्रष्टता है)। इसे मुस्लिमने अपनी सहीह में उल्लेख किया है। तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (जिसनेहमारी इस शरीअत में कोई ऐसी चीज़ ईजाद की जिस का उस से कोई संबंध नहीं है तो वहमर्दूद (अस्वीकृत) है।). इस हदीस के सहीह होने पर बुख़ारी और मुस्लिम कीसहमति है। तथा मुस्लिम की एक रिवायत के शब्द यह हैः (जिसने कोई ऐसा काम किया जिसपरहमारा आदेश नहीं है तो वह अस्वीकृत है।) समाप्त हुआ

फज़ीलतुश्शैख अब्दुल अज़ीज़बिन बाज़ रहिमहुल्लाह.

इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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