रमज़ान के रोज़े की शुरूआत और ईदुल फित्र को सुनिश्चित करने में मुस्लिम विद्वानों के बीच काफी मतभेद है। उनमें से कुछ लोग नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीस ( चाँद देखकर रोज़ा रखो और चाँद देखकर रोज़ा तोड़ो।) के आधार पर चाँद देखने पर अमल करते हैं। जबकि कुछ लोग खगोलशास्त्रियों के विचारों पर भरोसा करते हैं और कहते हैं कि : खगोल शास्त्र के विद्वान खगोल विज्ञान में शिखर पर हुँच गए हैं कि उनके लिए चाँद के महीनों की शुरूआत की जानकारी प्राप्त करना संभव हो गया है, तो इस मुद्दे में सहीह बात क्या है ॽ
चाँद देखने का एतबार होगा खगोलशास्त्रियों की गणना का नहीं
प्रश्न: 1226
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
सबसे पहले : सही कथन जिस पर अमल करना अनिवार्य है, वह है जिस पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान ( चाँद देख कर रोज़ा रखो और चाँद देखकर रोज़ा तोड़ो ) तर्क स्थापित करता है कि रमज़ान के महीने की शुरूआत और उसके अंत के संबंध में आँख के द्वारा चाँद देखने का एतबार होगा, क्योंकि इस्लाम की शरीअत (शास्त्र) जिसके साथ अल्लाह तआला ने हमारे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भेजा है वह सामान्य है और परलोक के दिन तक निरंतर रहने वाली है, और वह हर समय और स्थान के लिए उप्युक्त है चाहे सांसारिक विज्ञान विकसित हों या विकसित न हों, और चाहे मशीनरी उपलब्ध हों या न हों, और चाहे देशवासियों में ऐसा व्यक्ति मौजूद हो जो खगोलीय गणना जानता हो या उनमें इसे जानने वाला कोई मौजूद न हो। नेत्र के द्वारा चाँद देखने पर लोग हर काल और नगर में सक्षम होते है, विपरीत खगोलीय गणना के कि कभी उसके जानने वाले मौजूद होते हैं और कभी उसका जानने वाला कोई नहीं होता, इसी तरह मशीन कभी उपलब्ध होती है और कभी उपलब्ध नहीं होती है।
दूसरा : अल्लाह सर्वशक्तिमान को खगोल विज्ञान और उसके अलावा अन्य विज्ञान के क्षेत्र में जो प्रगति और विकास हो चुका और जो कुछ होने वाला है सभी चीज़ों का पूर्वज्ञान है, इसके उपरांत भी उसका फरमान है :
فَمَنْ شَهِدَ مِنْكُمُ الشَّهْرَ فَلْيَصُمْهُ [البقرة: 185]
“तुम में से जो व्यक्ति इस महीने को पाए उसे उसका रोज़ा रखना चाहिए।” (सूरतुल बक़रा : 185)
और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसको अपने इस कथन के द्वारा स्पष्ट किया है :
“ चाँद देख कर रोज़ा रखो और चाँद देखकर रोज़ा तोड़ो।”
तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रमज़ान के महीने का रोज़ा रखना और उसे तोड़ने (रोज़ा रखना बंद करने) को चाँद देखने पर लंबित किया है, उसे सितारों की गणना के द्वारा महीने की जानकारी पर लंबित नहीं किया है, जबकि अल्लाह तआला को ज्ञात है कि खगोल शास्त्री सितारों की गणना और उनकी गति के आकलन के प्रति अपनी जानकारी में विकास करेंगे। अतः मुसलमानों पर उस चीज़ को अपनाना अनिवार्य है जिसे अल्लाह तआला ने अपने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ज़बान पर उनके लिए धर्मसंगत कर दिया है कि रोज़ा रखने और रोज़ा रखना बंद करने में चाँद के देखने पर भरोसा किया जाए, और यह बात विद्वानों की सर्व सहमति के समान है, और जिसने इस बारे में मतभेद किया और सितारों की गणना पर भरोसा किया तो उसका कथन शाज़ (विद्वानों की सर्वसहमति के विरूद्ध) है, उस पर भरोसा नहीं किया जायेगा। और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।
स्रोत:
फतावा स्थायी समिति 10 / 106