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रमज़ान के महीने के दिन में संभोग करने से सम्बंधित छ: फतावे

प्रश्न: 12329

यह बात किसी पर रहस्य नहीं कि जिस व्यक्ति ने रमज़ान के दिन में अपनी पत्नी से संभोग कर लिया उस पर एक गुलाम आज़ाद करना या लगातार दो महीने रोज़े रखना या साठ मिस्कीनों (गरीबों) को खाना खिलाना अनिवार्य है। प्रश्न यह है कि :
1- अगर आदमी अपनी पत्नी से एक से अधिक बार और विभिन्न दिनों में संभोग कर ले, तो क्या वह प्रत्येक दिन के बदले दो महीना रोज़ा रखे गा, या केवल दो महीने का रोज़ा रख लेना उन सभी दिनों के लिए काफी है जिन में उसने संभोग कया है ?
2- यदि उसे इस बात की जानकारी नहीं है कि जिस ने अपनी पत्नी से संभोग किया है, उस पर उपर्युक्त हुक्म लागु होता है, बल्कि वह यह समझता था कि जितने दिन उस ने अपनी पत्नी से संभोग किया है उस के बदले एक दिन क़ज़ा करना होगा। तो इस का क्या हुक्म होगा ?
3- क्या पत्नी पर भी उसी तरह कफ्फारा अनिवार्य है जिस तरह पति पर अनिवार्य है ?
4- क्या खाने के बदले पैसा भुगतान करना जाइज़ है ?
5- क्या अपनी तरफ से और पत्नी की तरफ से एक ही मिस्कीन को खाना खिलाना जाइज़ है ?
6- यदि कसी को खाना खिलाने के लिए न पाये तो किसी खैराती संस्था उदाहरण के तौर पर रियाज़ में स्थित जमईयतुल बिर्र या किसी अन्य संस्था को देना जाइज़ है ?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

जिस वयक्ति पर रोज़ा अनिवार्य है :

प्रथम : यदि उस ने अपनी पत्नी से रमज़ान के दिन में एक बार या एक से अधिक बार एक ही दिन में संभोग किया है, तो उस पर एक ही कफ्फारा अनिवार्य है यदि उस ने पहले संभोग का कफ्फारा नहीं दिया है। और यदि उस ने रमज़ान के दिन में कई दिनों में संभोग किया है, तो उस पर उन सभी दिनों के अनुसार कफ्फारा अनिवार्य है जिन में उसने संभोग किया है।

दूसरा : उस पर संभोग करने से कफ्फारा अनिवार्य हुआ है,चाहे वह (हुक्म से अनभिज्ञ) जाहिल ही क्यों न हो उस पर संभोग के कारण कफ्फारा अनिवार्य है।

तीसरा : पत्नी पर भी संभोग के कारण कफ्फारा अनिवार्य है यदि वह इस मामले में अपने पति की बात मानने वाली थी। किन्तु जिसे बाध्य (मजबूर) किया गया हो उस पर कोई चीज़ अनिवार्य नहीं है।

चौथा : खाना खिलाने के बदले पैसा देना जाइज़ नहीं है, और ऐसा करना उसके लिए किफायत नहीं करेगा (पर्याप्त नहीं होगा)।

पांचवाँ : एक ही मिस्कीन को आधा साअ अपनी ओर से और आधा साअ अपनी पत्नी की तरफ से खाना खिलाना जाइज़ है। और इसे उन दोनों की तरफ से साठ मिस्कीनों में से एक मिस्कीन को खाना खिलाना समझा जाये गा।

छठा : उसे एक ही मिस्कीन को देना जाइज़ नहीं है, और न ही खैराती संस्था या अन्य किसी को देना जाइज़ है, क्योंकि हो सकता है कि वह साठ मिस्कीनों पर वितरित न करे। मोमिन पर अनिवार्य यह है कि वह अपनी ज़िम्मेदारी को कफ्फारों और अन्य वाजिब चीज़ों से बरी करने का अभिलाषी हो।

और अल्लाह तआला ही तौफीक़ देने वाला है, तथा अल्लाह तआला हमारे पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, उनकी सन्तान और उनके साथियों पर दया और शान्ति अवतरित करे।

स्रोत

इफ्ता और वैज्ञानिक अनुसंधान की स्थायी समिति के फतावा (10 / 320) से।

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