रमज़ान में बेहोशी
प्रश्न: 12425
उस आदमी पर क्या चीज़ अनिवार्य है जिस पर रमज़ान का महीना इस हाल में आया कि वह एक कार्य दुर्घटना के कारण बेहोशी की अवस्था में था और 22 दिन के बाद ही उसे होश आया ॽ
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
यह प्रश्न शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह – अल्लाह उन पर दया करे – पर पेश किया गया तो उन्हों ने फरमाया :
राजेह (पसंदीदा) क़ौल के आधर पर : किसी बीमारी से या बिना बीमारी के बेहोशी के कारण बुद्धि (समझबूझ) का समाप्त हो जाना नमाज़ की अनिवार्यता को समाप्त कर देता है, अतः उसके ऊपर नमाज़ की क़ज़ा अनिवार्य नहीं होती है, जहाँ तक रोज़े का मामला है तो उसके ऊपर उन दिनों की क़ज़ा करना अनिवार्य है जिनके उसने अपनी बेहोशी की हालत में रोज़े नहीं रखे हैं।
नमाज़ और रोज़े के बीच अंतर यह है कि नमाज़ (एक दिन में) कई बार आती है, यदि उसने छूटी हुई नमाज़ों की क़ज़ा नहीं की तो वह दूसरे दिन तो नमाज़ पढ़ेगा ही, किंतु रोज़ा बार-बार नहीं आता है, इसीलिए मासिक धर्म वाली औरत रोज़ा क़ज़ा करती है और नमाज़ क़ज़ा नहीं करती है।
स्रोत:
अल्लिक़ाउश्शह्री 17 ( सत्रहवीं मासिक बैठक )