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चाँद देखने के लिए दूरबीन की मदद लेना जायज़ है खगोलीय गणना की नहीं

प्रश्न: 1245

चाँद की उमर तीस घंटे होने से पहले नग्न आँखों से चाँद को देखना असंभव है, इसके अलावा कभी-कभी मौसम की वजह से भी देखना संभव नहीं होता है। तो क्या इस आधार पर, नये चाँद को देखने के लिए संभावित समय और रमज़ान के महीने के आरंभ का समय आकलन करने में खगोलीय जानकारी के इस्तेमाल का सहारा लेना जायज़ है ? या कि हमारे लिए रमज़ानुल मुबारक के महीने का रोज़ा शुरू करने से पहले, चाँद को देखना ज़रूरी है ?

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

चाँद देखने में दूरबीन की मदद लेना जायज़ है, लेकिन रमज़ानुल मुबारक के महीने की शुरूआत को या रोजा रखना बंद करने को साबित करने में खगोल विज्ञान पर भरोसा करना जायज़ नहीं है। क्योंकि अल्लाह तआला ने इसे हमारे लिए धर्मसंगत नहीं ठहराया है, न तो अपनी किताब में, और न ही अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत में, बल्कि उसने हमारे लिए रमज़ान के महीने के आरंभ और उसके अंत को साबित करना चाँद की दृष्टि के द्वारा धर्म संगत करार दिया है, रोज़े की शुरूआत के लिए रमज़ान के महीने का चाँद देखना और रोज़ा तोड़ने और ईदुल फित्र की नमाज़ के लिए एकट्ठा होने के लिए शव्वाल का चाँद देखना। और चाँद को लोगों के लिए और हज्ज के लिए समयसारणी करार दिया है। अतः मुसलमान के लिए उसके बिना किसी इबादत का समय निर्धारित करना जायज़ नहीं है जैसे कि रमज़ान का रोज़ा, ईदें, अल्लाह के घर का हज्ज, गलती से की जाने वाली हत्या के कफ्फारा और ज़िहार के कफ्फारा का रोज़ा, इत्यादि। अल्लाह तआला का फरमान है :

فَمَنْ شَهِدَ مِنْكُمُ الشَّهْرَ فَلْيَصُمْهُ [سورة البقرة : 185]

''तुम में से जो व्यक्ति इस महीना को पाए उसे इसका रोज़ा रखना चाहिए।'' (सूरतुल बक़राः 185)

तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :

يسألونك عن الأهلة قل هي مواقيت للناس والحج [سورة البقرة : 189]

''वे लोग आप से चाँदों के बारे में प्रश्न करते हैं, आप कह दीजिए कि यह लोगों के लिए और हज्ज के लिए निर्धारित समय हैं।''(सूरतुल बक़राः 189)

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

''चाँद देखकर रोज़ा रखो और चाँद देखकर रोज़ा रखना बंद करो। यदि तुम्हारे ऊपर बदली हो जाये (और चाँद देखना संभव न हो) तो तीस दिन पूरे करो।’’

इस आधार पर, जिस व्यक्ति के मतला (यानी चाँद उदय होने का समय) में चाँद दिखाई न दे, चाहे बदली हो, या आसमान साफ हो, तो उसके ऊपर (शाबान की अवधि) तीस दिन पूरा करना अनिवार्य है।

फतावा स्थायी समिति 10/100

और यह उस स्थिति में है जब दूसरे शहर में चाँद देखे जाने का सबूत न हो, और यदि दूसरे शहर में चाँद का देखा जाना शरई तरीक़े से प्रमाणित हो जाए तो जमहूर विद्वानों के मतानुसार उन पर रोज़ा रखना अनिवार्य है। और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद

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