डाउनलोड करें
0 / 0

रोज़ेदार को इफतार कराने की फज़ीलत

प्रश्न: 12598

रोज़ेदार को इफतार कराने पर क्या सवाब निष्कर्षित होता है ॽ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

ज़ैद बिन खालिद अल-जोहनी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “ जिस व्यक्ति ने किसी रोज़ेदार को रोज़ा इफ्तार करवाया उसके लिए उसी के समान अज्र व सवाब है, परंतु रोज़ेदार के अज्र में कोई कमी न होगी।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 807) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 1746) ने रिवायत किया है और इब्ने हिब्बान (8/216) तथा अल्बानी ने सहीहुल जामे (हदीस संख्या : 6415) में सहीह कहा है।

शैखुल इस्लाम ने फरमाया : उसे रोज़ा इफतार कराने से अभिप्राय यह है कि उसे पेट भर खाना खिलाए। (अल-इख्तियारात पृष्ठ : 194)

सलफ सालेहीन (पुनीत पूर्वज) खाना खिलाने के बहुत इच्छुक होते थे और उसे सर्वश्रेष्ठ इबादतों में से समझते थे।

कुछ सलफ का कहना है : मैं अपने दस साथियों को निमंत्रण दूँ और उन्हें उनके पसंद का खाना खिलाऊँ मेरे निकट इस चीज़ से अधिक पसंदीदा है कि मैं इसमाईल की संतान से दस लोगों को आज़ाद करूँ।

बहुत से सलफ रोज़ा रखते हुए भी अपनी इफ्तारी दूसरे को प्रदान कर देते थ, उन्हीं में से अब्दुल्लाह बिन उमर – रज़ियल्लाहु अन्हुमा -, दाऊद ताई, मालिक बिन दीनार, अहमद बिन हंबल हैं, तथा इब्ने उमर यतीमों और मिस्कीनों के साथ ही रोज़ा इफ्तार करते थे।

तथा पूर्वजों में से कुछ लोग ऐसे थे कि स्वयं रोज़े से होते हुए अपने भाईयों को खाना खिलाते थे और बैठकर उनकी सेवा करते थे, उन्हीं में से हसन बसरी और इब्नुल मुबारक हैं।

अबुस्सिवार अल-अदवी कहते हैं : बनी अदी के कुछ लोग इस मस्जिद में नमाज़ पढ़ते थे, उन में से किसी एक ने भी कभी किसी खाने पर अकेले इफ्तार नहीं किया, अगर वह किसी को अपने साथ खाने के लिए पाता तो खाता, नहीं तो अपने खाने को मस्जिद में निकाल कर ले जाता था और उसे लोगों के साथ खाता था और लोग उसके साथ खाते थे।

खाना खिलाने की इबादत से बहुत सी इबादतें जन्म लेती हैं उन्हीं में से एक: खाना खिलाये गए लोगों के साथ प्यार और महब्बत का पैदा होना है, जो कि स्वर्ग में प्रवेश पाने का एक कारण बन जाता है, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “तुम जन्नत में दाखिल नहीं हो सकते यहाँ तक कि ईमान ले आओ, और ईमान वाले नहीं बन सकते यहाँ तक कि आपस में प्यार करने लगो।” इस हदीस को मुस्लिम (हदीस संख्या : 54) ने रिवायत किया है।

इसी तरह इस से नेक और सदाचारी लोगों की संगत और उस आज्ञाकारिता (नेकियों) पर उनकी मदद करने में अज्र व सवाब की आशा निष्कर्षित होती है जिन पर वे आपके खाने के द्वारा शक्ति प्राप्त किए हैं।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

at email

डाक सेवा की सदस्यता लें

साइट की नवीन समाचार और आवधिक अपडेट प्राप्त करने के लिए मेलिंग सूची में शामिल हों

phone

इस्लाम प्रश्न और उत्तर एप्लिकेशन

सामग्री का तेज एवं इंटरनेट के बिना ब्राउज़ करने की क्षमता

download iosdownload android
at email

डाक सेवा की सदस्यता लें

साइट की नवीन समाचार और आवधिक अपडेट प्राप्त करने के लिए मेलिंग सूची में शामिल हों

phone

इस्लाम प्रश्न और उत्तर एप्लिकेशन

सामग्री का तेज एवं इंटरनेट के बिना ब्राउज़ करने की क्षमता

download iosdownload android