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रमज़ान में संगीत सुनना

السؤال: 12647

क्या रोज़े के दौरान संगीत हराम है ॽ

الجواب

الحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله وآله وبعد.

संगीत सुनना हराम है, चाहे रमज़ान में हो या रमज़ान के अलावा अन्य दिनों में, जबकि रमज़ान के महीने में उसकी निषिद्धता अधिक गंभीर और उसका पाप बहुत बड़ा है, क्योंकि रोज़े का उद्देश्य मात्र खाने पीने से रूक जाना नहीं है, बल्कि उसका उद्देश्य अल्लाह तआला का तक़्वा (ईश्भय) साकार करना, शरीर के अंगों का रोज़ा रखना और उनका अल्लाह की अवहेलना से परहेज़ करना है। अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है :

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمْ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ [البقرة : 183]

“ऐ ईमान वालो! तुम पर रोज़े रखना अनिवार्य किया गया है जिस प्रकार तुम से पूर्व लोगों पर अनिवार्य किया गया था, ताकि तुम सयंम और भय अनुभव करो।” (सूरतुल बक़रा : 183)

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “रोज़ा मात्र खाने पीने से रूकने का नाम नहीं है, बल्कि वास्तव में रोज़ा व्यर्थ और अश्लील चीज़ों से बचने का नाम है . . ” इसे हाकिम ने रिवायत करके कहा है कि : यह हदीस मुस्लिम की शर्त पर सहीह है। (अंत)

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित स्पष्ट व सहीह सुन्नत (हदीस) वाद्ययंत्रों के सुनने के निषेध पर दलालत करती है। इमाम बुखारी ने ता'लीक़न (बिना सनद के) रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मेरी उम्मत (समुदाय) में ऐसे लोग होंगे जो व्यभिचार, रेशम, शराब और संगीत वाद्ययंत्र को हलाल ठहरा लेंगे . . .” इस हदीस को तबरानी और बैहक़ी ने मौसूलन (नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक सनद के साथ) रिवायत किया है।

यह हदीस दो मायनों में संगीत वाद्ययंत्र के हराम होने पर तर्क स्थापित करती है :

प्रथम : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान “वे हलाल ठहरा लेंगे” इस बात को स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि उपर्युक्त चीज़ें हराम और निषिध हैं, चुनाँचे वे लोग इन्हें हलाल (वैध) ठहरा लेंगे।

दूसरा : संगीत वाद्ययंत्रों का वर्णन ऐसी चीज़ों के साथ मिलाकर किया गया है जो निश्चित रूप से हराम हैं और वह व्यभिचार और शराब है, यदि वह (संगीत वाद्ययंत्र) हराम न होते तो उन्हें उनके (यानी व्यभिचार और शराब) के साथ मिलाकर वर्णन न किया जाता।

देखिए : अस्सिलसिला अस्सहीहा लिल-अल्बानी हदीस संख्या (91).

मुसलमान पर अनिवार्य यह है कि वह इस मुबारक (शुभ) महीने से लाभ उठाए, इसमें अल्लाह की ओर ध्यान आकर्षित करे, उस के समक्ष तौबा (पश्चाताप) करे और रमज़ान से पहले जिन हराम और निषिद्ध चीज़ों के करने का आदी था उनसे बाज़ आ जाए, आशा है कि अल्लाह सर्वशक्तिमान उसके रोज़े को स्वीकार कर ले और उसकी स्थिति को सुधार दे।

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