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हिंदू धर्म का संछिप्त परिचय

प्रश्न: 126472

क्या आप मुझे हिंदू धर्म के बारे में कुछ तथ्यों का खुलासा कर सकते हैं ?

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हरप्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सर्व

प्रथम : परिभाषा

हिंदू

धर्म (हिंदुत्व) : जिसे ब्रह्मवाद भी कहते हैं, एक बुतपरस्त (मूर्तिपूजक) धर्म है, जिसका भारत के अधिकांश लोग पालन करते हैं, यह आस्थाओं, परंपराओं और रीतियों का एक समूह है जो पंद्रहवीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर हमारे वर्तमान समय तक एक लंबे काल के दौरान गठित हुआ है, जहाँ – पंद्रहवीं शताब्दी ईसा पूर्व में – हिंदुस्तान के मूल वासी (आदिवासी) निवास करते थे जिनकी कुछ आदिम आस्थाएं और विचारधाराएं थीं, फिर अपने रास्ते में ईरानियों के पास से गुज़रते हुए आर्य योद्धा आए, तो उनकी मान्यतायें और विचार उन देशों से प्रभावित हुए जिनसे उनका गुज़र हुआ, और जब वे हिंदुस्तान में स्थायी रूप से बस गए तो मान्यताओं और आस्थाओं के बीच सम्मिश्रण हुआ, जिससे हिंदू धर्म की एक ऐसे धर्म के रूप में उत्पत्ति हुई जिसके अंदर आदिम विचार जैसे प्रकृति, पूर्वजों और विशेष रूप से गाय की पूजा थी, तथा आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व में हिंदू धर्म विकसित हुआ जब ब्रह्मवाद के सिद्धांत का गठन हुआ, और उन्हों ने ब्रह्मा की पूजा करने की बात कही।

हिंदू

धर्म का कोई निर्धारित संस्थापक नहीं है, तथा उसकी अधिकांश पुस्तकों के निर्धारित लेखकों की जानकारी नहीं है, क्योंकि हिंदू धर्म और इसी तरह उसकी पुस्तकें लंबी अवधियों के दौरान अस्तित्व में आई हैं।

दूसरा

: विचारधाराएंऔरआस्थाएं

हम

हिंदू धर्म को उसकी पुस्तकों, पूज्य के प्रति उसके दृष्टिकोण, उसकी आस्थाओं, उसके वर्गों के माध्यम के साथ साथ, कुछ वैचारिक मुद्दों और अन्य आस्थाओं से समझ सकते हैं।

– उसकीपुस्तकें :

हिंदू

धर्म की एक बड़ी संख्या में किताबें हैं जिनका समझना कठिन है और उनकी भाषाएं विचित्र हैं, तथा बहुत सी पुस्तकें उनकी व्याख्या करने, और कुछ अन्य पुस्तकें उन व्याख्याओं का संक्षेप करने के लिए लिखी गई हैं, और वे सभी उनके निकट पवित्र हैं, उनमें से महत्वपूर्ण निम्नलिखित हैं :

1-

वेद (veda) : यहसंस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है हिकमत, बुद्धि और ज्ञान। यह आर्यों के जीवन तथा मानसिक जीवन के सादगी (अनुभवहीनता) से दार्शिनक सूझबूझ तक विकसित होने की सीढ़ियों को चित्रित करता है, तथा इसमें कुछ प्रार्थनाएं हैं जो संदेह और आशंका पर निष्कर्षित होती हैं, तथा इसमें ऐसा देवत्वारोपण पाया जाता है जो वहदतुल वजूद (सभीअस्तित्व के एक होने या सर्वेश्वरवाद) तक पहुँचता है, यह चार पुस्तकों से मिलकर बना है।

2-

महाभारत : यह ग्रीस (यूनानियों) के यहाँ ओडिसी और इलियड की तरह एक भारतीय महाकाव्य है, जिसके लेखक ऋषि पराशर के पुत्र “व्यास”हैं, जिन्होंनेउसे 950 ई. पू. मेंसंकलितकियाथा, जोशाहीपरिवारोंकेप्रधानोंकेबीचयुद्धकावर्णनकरताहै, इसयुद्धमेंदेवताभीसम्मिलितथे।

– हिंदूधर्मकादेवताओंकेप्रतिदृष्टिकोण :

एकीकरण (एकेश्वरवाद) : सूक्ष्मअर्थोंमेंएकेश्वरवाद (तौहीद) नहींपायाजाताहै, किन्तुजबवेकिसीएकदेवताकीओरध्यानमग्नहोतेहैंतोअपनेपूर्णहृदयकेसाथध्यानमग्नहोतेहैं, यहाँतककिअन्यसभीदेवताउनकीआँखोंसेओझलहोजातेहैं, उससमयवेउसेदेवताओंकादेवतायापरमपरमेश्वरकेनामसेसंबोधितकरतेहैं।

विविधता (बहुदेववाद) : येलोगकहतेहैंकिहरउपयोगीयाहानिकारकप्रकृतिकाएकदेवताहैजिसकीपूजाकीजातीहै : जैसे – पानी, हवा, नदियाँ, पहाड़ . . . औरवेबहुतसारेदेवताहैंजिनकीवेपूजाऔरप्रसादकेद्वारानिकटताप्राप्तकरतेहैं।

ट्रिनिटी (त्रिदेव, त्रिमूर्ति): नौवींशताब्दीई. पू. मेंयाजकोंनेसभीदेवताओंकोएकदेवतामेंएकत्रितकरदियाजिसनेअपनेअस्तित्वसेसंसारकोनिकालाहै, उसीकानामउन्होंनेरखाहै:

1-

ब्रह्मा : इसएतिबारसेकिवहईश्वरहै।

2-

विष्णु : इसएतिबारसेकिवहसंरक्षकहै।

3-

शिव : इसएतिबारसेकिवहसर्वनाशकहै।अतःजिसव्याक्तिनेतीनोंदेवताओंमेंसेकिसीएककीपूजाकी, तोवास्तवमेंउसनेसबकीपूजाकीयाएकसर्वोच्चकीपूजाकी, औरउनकेबीचकोईअंतरनहींहै, इसतरहउन्होंनेईसाइयोंकेसामनेत्रिकोणकीआस्थाकाद्वारखोलदिया।

हिंदूलोगगायऔरकईप्रकारकेसर्पणशीलजंतुओंजैसेनाग, औरकईप्रकारकेपशुओंजैसेकिबंदरकोपवित्रसमझतेहैं, किंतुउनसबकेबीचगायकोवहपवित्रताप्राप्तहैजिसकेऊपरकोईऔरपवित्रतानहींहै, तथामंदिरों, घरोंऔरमैदानोंमेंउसकीमूर्तियाँलगीहोतीहैं, तथाउसेकिसीभीजगहस्थानांतरितहोनेकाअधिकारहोताहै, किसीहिंदूकेलिएउसेकष्टपहुँचानायाबलिकरनाजाइज़नहींहै, यदिउसकीमृत्युहोजायतोधामिर्कसंस्कारकेसाथउसेदफनायाजाताहै।

हिंदुओंकामाननाहैकिउनकेदेवताकृष्णानामकएकव्यक्तिकेअंदरभीहुलूलकिएहैं, तथाउसकेअंदरपरमेश्वरमनुष्यसेमिलगया, यालाहूत (परमेश्वरस्वभाव) नासूत (मानवप्रकृति) मेंसमाविष्टहोगया, औरवेकृष्णाकेबारेमेंवैसीहीबातेंकरतेहैंजिसतरहकिईसाईलोगमसीह (यीशु) केबारेमेंबातकरतेहैं।शैखमुहम्मदअबूज़ोहरारहिमहुल्लाहनेउनदोनोंकेबीचतुलनाकरतेहुएआश्चर्यपूर्णसमानता, बल्किअनुरूपताप्रदर्शितकियाहै, औरतुलनाकेअंतमेंयहकहतेहुएटिप्पड़ीकीहैकि : “ईसाइयोंकोचाहिएकिअपनेधर्मकेमूलस्रोतकापतालगायें।”

(

ग) – हिन्दूसमाजमेंवर्णव्यवस्था :

जबसेआर्यलोगहिंदुस्तानपहुँचेहैंउन्होंनेवर्णों (वर्गों) कागठनकियाहैऔरवेअभीतकमौजूदहैं, उनकेउन्मूलनकाकोईरास्तानहींहै ; क्योंकियेईश्वरकीरचितअनन्तप्रभागहैंजैसाकिवेलोगआस्थारखतेहैं।

मनुव्यवस्थामेंयेवर्णनिम्नानुसारआयेहैं :

1-

ब्राह्मण : येवेलोगहैंजिन्हेंभगवानब्रह्मानेअपनेमुँहसेपैदाकियाहै : उन्हींमेंसेशिक्षक, पुजारीऔरन्यायधीशहैं, तथाविवाहऔरमृत्युकेमामलोंमेंसबउन्हींकीओरलौटतेहै, औरउनकीउपस्थितिहीमेंचढ़ावाचढ़ानाऔरप्रसादप्रस्तुतकरनाजाइज़है।

2-

क्षत्रिय : येवोलोगहैंजिन्हेंभगवाननेअपनेदोनोंबाहोंसेपैदाकियाहै : येलोगशिक्षाप्राप्तकरतेहैं, चढ़ावाचढ़ातेहैंऔररक्षाकेलिएहथियारउठातेहैं।

3-

वैश्य : येवोलोगहैंजिन्हेंभगवाननेअपनीजांघसेपैदाकियाहै : येलोगखेतीऔरव्यापारकरते, धनइकट्ठाकरतेऔरधार्मिकसंस्थाओंपरखर्चकरतेहैं।

4-

शूद्र : जिन्हेंभगवाननेअपनेपैरसेपैदाकियाहै, येलोगमूलकालेलोगोंकेसाथ“अछूतों”केवर्गकागठनकरतेहैं।उनकाकामपिछलेतीनशरीफवर्गोंकीसेवाकरनाहै, तथावेतुच्छ (नीच) औरगंदेव्यवसायकरतेहैं।

वेसभीलोगधार्मिकभावनासेइसवर्ण (जाति) व्यवस्थाकेअधीनहोनेपरएकमतहैं।

पुरूषकेलिएअपनेसेउच्चतरवर्गसेविवाहकरनेकीअनुमतिहै, तथावहनिम्नवर्गसेभीशादीकरसकताहै, परंतुपत्निकोचौथेवर्गशूद्रसेनहींहोनाचाहिए, तथाशूद्रवर्णकेपुरूषकेलिएकिसीभीहालतमेंअपनेसेउच्चतरवर्णसेशादीकरनाजाइज़नहींहै।

ब्राह्मणलोगचुनीदासृष्टिहैं, उन्हेंदेवताओंसेभीसंबंधितकियाजाताहै, औरउन्हेंअपनेदासशूद्रकेधनोंमेंसेजोकुछभीवेचाहेंलेनेकाअधिकारहै।

जोब्राह्मणपवित्रग्रंथकोलिखताहै, वहबख्शाहुआहैयद्यपिउसनेतीनोंलोकोंकोअपनेगुनाहोंसेनष्टकरदियाहो।

राजाकेलिए – चाहेहालातकितनेभीकठोरहों – ब्राह्मणसेटैक्सयाचुँगीलेनाजाइज़नहींहै।

यदिब्राह्मणक़त्लकिएजानेकाअधिकृतहैतोशासककेलिएकेवलइतनाजाइज़हैकिवहउसकेसिरकोमुँडादे, जहाँतकउसकेअलावाकासंबंधहैतोउसेक़त्लकियाजायेगा।

वहब्राहमणजिसकीआयुदसवर्षहैवहउसशूद्रपरप्राथमिकतारखताहैजिसकीआयुसौवर्षकेक़रीबहै, जिसप्रकारकीपिताअपनेबच्चेपरप्राथमिकतारखताहै।

ब्राह्मणकेलिएअपनेदेशमेंभूखसेमरनासहीनहींहै।

मनुकेनियमानुसारअछूतलोगपशुओंसेअधिकगिरेहुएऔरकुत्तोंसेअधिकअपमानितहैं।

अछूतोंकेलिएसौभाग्यकीबातहैकिवेब्राह्मणोंकीसेवाकरेंऔरउनकेलिएकोईपुण्यनहींहै।

यदिकोईअछूतकिसीब्राह्मणकोमारनेकेलिएउसपरहाथयालाठीउठाए, तोउसकेहाथकाटदियेजायें, औरयदिवहउसेलातमारेतोउसकेपैरकोफाड़दियाजाए।

यदिकोईअछूतकिसीब्राह्मणकेसाथबैठनेकाइरादाकरेतोराजाकोचाहिएकिउसकेचूतड़कोदागदेऔरउसेदेशसेनिकालदे।

यदिकोईअछूतकिसीब्राह्मणकोशिक्षादेनेकादावाकरेतोउसेउबलताहुआतेलपिलायाजायेगा।

कुत्ता, बिल्ली, मेंढक, गिर्गिट, कौआ, उल्लूऔरअछूतवर्गकेकिसीआदमीकीहत्याकरनेकापरायश्चितबराबरहै।

हालमेंअछूतोंकीस्थितिमेंमामूलीसुधारदिखाईदियाहै, इसडरसेकिउनकीस्थितियोंकालाभउठायाजायऔरवेदूसरेधर्मोंमेंप्रवेशहोजायं, विशेषकरईसाइधर्मजोउनसेसंघर्षकररहाहै, यासाम्यवादजोउन्हेंवर्गोंकेसंघर्षकेविचारकेमाध्यमसेआमंत्रितकरताहै, किंतुअधिकांशअछूतोंनेइस्लामधर्ममेंआदरवसम्मानऔरसमानतापाया, अतःउन्होंनेइस्लामधर्मकोस्वीकारकरलिया।

(

घ) – उनकीमान्यतायें :

उनकी

मान्यताएंऔरआस्थाएं“कर्मा”, पुनर्जन्म (आवागवन), मोक्ष, औरअस्तित्वकीएकतामेंप्रकटहोतीहैं :

1- “कर्मा”

: दंड संहिता, अर्थात्ब्रह्मांडकीव्यवस्थाएकईश्वरीयव्यवस्थाहैजोशुद्धन्यायपरक़ायमहै, यहन्यायअनिवार्यरूपसेहोकररहेगा, चाहेवर्तमानजीवनमें, याआनेवालेजीवनमें, औरएकजीवनकाबदलादूसरेजीवनमेंमिलेगा, तथापृथ्वीपरीक्षणकाघरहै, जिसतरहकियहबदलेऔरपुण्यकाघरहै।

2-

पुनर्जन्म (आत्माओंकाआवागवन) : जबइंसानमरजाताहैतोउसकाशरीरनष्टहोजाताहै, औरउसकीआत्माउससेनिकलकर, उसनेअपनेपहलेजीवनमेंजोकर्मकिएहैंउसकेअनुसार, एकदूसरेशरीरमेंघुल-मिलजातीऔरउसकारूप्धारणकरलेतीहै, औरआत्माउसमेंएकनयाचक्रशुरूकरतीहै।

3-

मोक्ष : अच्छेऔरबुरेकार्योंसेबार-बारएकनयाजीवननिष्कर्षितहोताहैताकिपिछलेसत्रमेंउसनेजोकुछकियाहैउसपरआत्मकोपुरस्कृतयादंडितकियाजाए।

जिसेकिसीचीज़कीइच्छानहींहैऔरवहकदापिकिसीचीज़कीइच्छानहींकरेगा, औरवहइच्छाओंकीगुलामीसेमुक्तहोगया, औरउसकामनसंतुष्टहोगया, तोउसेहवास (चेतना) मेंनहींलौटायाजाताहै, बल्किउसकीआत्मामोक्षप्राप्तकरब्रह्मासेमिलजातीहै।

4-

सर्वअस्तित्वकीएकता : दार्शिनकअमूर्तनेहिंदुओंकोइसमान्यतातकपहुँचादियाकिइंसानविचारों, व्यवस्थाओंऔरसंस्थाओंकीरचनाकरसकताहै, जिसतरहकिवहउनकीरक्षाकरनेयाउनकाविनाशकरनेपरसक्षमहै, इसतरहमनुष्यदेवताओंकेसाथमिलजाताहै, औरस्वयंआत्माहीरचनाकरनेवालीशक्तिबनजातीहै।

आत्मादेवताओंकेसमानअनन्त, सर्वदीयऔरबाक़ीरहनेवालीहै, उसकीरचनानहींकीगईहै।

मनुष्यऔरदेवताओंकेबीचरिश्ता, आगकीचिंगारीऔरस्वयंआगकेबीचरिश्तेकेसमान, तथाबीजऔरवृक्षकेबीचरिश्तेकेसमानहै।

यहपूराब्रह्मांडमात्रवास्तविकअस्तित्वकाप्रदर्शनऔरदृश्यहै, औरमानवआत्मासुप्रीमआत्माकाएकहिस्साहै।

– अन्यविचारऔरआस्थायें:

शरीरकोमरनेकेबादजलादियाजायेगा, क्योंकियहआत्माकोऊपरकीओर, औरखड़ीशक्लमें, जानेकीअनुमतिप्रदानकरताहै, ताकिवहसर्वोप्परिराज्यतकजल्दसेजल्दकमसेकमसमयमेंपहुँचजाए, तथाजलनाआत्माकोशरीरकेढाँचेसेपूरीतरहसेछुटकारादिलानाहै।

जबआत्माछुटकारापाकरऊपरचढ़तीहैतोउसकेसामनेतीनदुनियाहोतीहै :

1-

ऊपरी (उच्चतम) दुनिया : फरिश्तों (स्वर्गदूतों) कीदुनिया।

2-

यालोगोंकीदुनिया : लोगोंकेरहनेकीदुनियाउनकेशरीरमेंहुलूलकरके।

3-

यानरककीदुनिया : औरयहपापऔरअपराधकरनेवालोंकेलिएहै।

नरककोईएकनहींहै, बल्किहरगुनाहवालेकेलिएएकविशिष्टनरकहै।

दूसरीदुनियामेंपुनर्जन्मआत्माकेलिएहैशरीरकेलिएनहींहै।

जिसमहिलाकापतिमरजाताहैवहउसकेबादविवाहनहींकरतीहै, बल्किवहनित्यदुर्भाग्यमेंजीवनयापनकरतीहै, औरअपमानऔरमानहानिकाविषयरहतीहै, औरउसकापदनौकरकेपदसेभीकमतरऔरनीचहोताहै, इसीलिएकभीकभारऔरतअपनेपतिकीमृत्युकेबादसतीहोजातीहैताकिउससंभावितयातनाऔरप्रकोपसेबचावकरसकेजिसमेंउसेरहनापड़ेगा।आधुनिकभारतमेंकानूननेइसप्रक्रियाकोनिषिद्धकरारदियाहै।

तीसरा

: उसकेफैलावऔरप्रभावकास्थान

हिंदू

धर्मभारतीयउपमहाद्वीपमेंनियंत्रणकरताथाऔरउसमेंफैलाहुआथा।लेकिनमुसलमानोंऔरहिंदुओंकेबीचब्रह्मांड, जीवनऔरउसगायकेप्रतिजिसेहिंदूपूजते, औरमुसलमानबलिकरउसकामांसखातेहैंउनकेदृष्टिकोणमेंव्यापकदूरी – विभाजनकेपैदाहोनेकाएककारणथी, चुनाँचिपूर्वीऔरपश्चिमीभागसमेतपाकिस्तानीराज्यकेस्थापनाकीघोषणाकीगईजिसकेअधिकांशलोगमुसलमानोंमेंसेथे, जबकिभारतराज्यकोबाक़ीरखागयाजिसकेअधिकांशवासीहिंदूहैंऔरमुसलमानउसमेंएकबड़ेअल्पसंख्यकहैं।

यह

परिचयकुछसंक्षेपऔरपरिवर्तनकेसाथपुस्तक“अल-मौसूअतुलमुयस्सरहफिलअद्यानवल-मज़ाहिबवल-अहज़ाबअल-मुआसिरह” (2/724-731) सेलियागयाहै।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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