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क्या मगरिब की नमाज़ को खाने पर प्राथमिकता दी जायेगी ॽ या खाने को नमाज़ पर प्राथमिकता दी जायेगी ॽ

प्रश्न: 129913

मुसलमान किस तरह इफतार करे (रोज़ा खोले) ॽ क्योंकि बहुत से लोग खाने में व्यस्त होते हैं यहाँ तक कि मगरिब की नमाज़ का समय समाप्त हो जाता है, और जब आप उन से पूछें तो वे आप से कहते हैं कि : खाने की उपस्थिति में नमाज़ नहीं है। क्या इस कथन से दलील पकड़ना जायज़ है क्योंकि मगरिब का समय तंग होता है ॽ अब मैं क्या करूँ ॽ क्या मैं खजूर से इफतार करूँ फिर मगरिब की नमाज़ पढ़ूँ और उसके बाद खाना मुकम्मल करूँ ॽ या कि मैं मुकम्मल खाना खा लूँ फिर मगरिब की नमाज़ पढ़ूँ ॽ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

“सुन्नत का तरीक़ा यह है कि जब निश्चित रूप् से सूरज डूब जाए तो रोज़ादार इफतार करने में जल्दी करे, क्योंकि हदीस में है कि : “लोग निरंतर भलाई में रहेंगे जब तक वे रोज़ा इफतार करने में जल्दी करेंगे।” तथा इस हदीस के आधार पर कि : “अल्लाह के निकट अल्लाह के सबसे अधिक प्रिय बंदे उनमें इफतार करने में सबसे जल्दी करने वाले हैं।” तथा रोज़ेदार के हक़ में सबसे संपूर्ण बात यह है कि वह चंद खजूरों पर रोज़ा इफतार करे फिर खाना खाने को मगरिब की नमाज़ के बाद तक विलंब कर दे ताकि वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरण करते हुए इफतार में जल्दी करने की सुन्नत को और मगरिब की नमाज़ को उसके प्रथम समय में जमाअत के साथ पढ़ने को एक साथ प्राप्त कर सके।

जहाँ तक इस हदीस का संबंध है कि : “खाना की उपस्थिति में नमाज़ नहीं है, और न ही इस हालत में कि पेशाब और पाखान उसे रोक रहे हों।” और इस हदीस का किः “जब इशा की नमाज़ और रात का खाना उपस्थित हो जाए तो रात के खाने से शुरूआत करो।” और इसके अर्थ में वर्णित अन्य हदीसें, तो इसका मतलब यह है कि जिसके सामने खाना पेश किया जाए या वह खाने पर उपस्थित हो, तो वह नमाज़ पढ़ने से पहले खाने से शुरूआत करेगा ताकि वह नमाज़ के लिए इस हालत में आए कि उसका दिल खाने की इच्छा से मुक्त हो, तो वह दिल के खुशू (विनम्र हृदय) के साथ नमाज़ पढ़े, लेकिन उसके लिए यह जायज़ नहीं है कि वह नमाज़ पढ़ने से पहले खाने पर उपस्थित होने या खाना पेश करने की मांग करे, अगर इसकी वजह से प्रथम समय में या जमाअत के साथ नमाज़ छूट जाती हो। और अल्लाह तआला ही तौफीक़ देने वाला है, तथा अल्लाह तआला हमारे पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर और आप के आल व अस्हाब पर दया और शांति अवतरित करे।” अंत हुआ।

इफ्ता और वैज्ञानिक अनुसंधान की स्थायी समिति

शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़। शैख अब्दुल अज़ीज़ आलुश्शैख। शैख अब्दुल्लाह बिन गुदैयान। शैख सालेह अल-फौज़ान। शैख बक्र अबू ज़ैद।

स्रोत

“फतावा स्थायी समिति - द्वितीय संग्रह” (9/32)

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