जब मनुष्य को कोई प्रसन्नता प्राप्त हो, तो क्या उसके लिए अल्लाह सर्वशक्तिमान का शुक्र अदा करने के लिए दो रकअत (नफ़्ल) नमाज़ अदा करना जायज़ है?
क्या अल्लाह तआला के लिए कृतज्ञता के तौर पर दो रकअत नमाज़ पढ़ना जायज़ है?
प्रश्न: 131657
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
उत्तर :
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
किसी नेमत (अनुग्रह) के प्राप्त होने या किसी संकट (आपदा) के टलने के समय अल्लाह तआला के लिए आभार (शुक्र) प्रकट करते हुए सज्दा करना, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आप के सहाबा से प्रमाणित सुन्नतों (परंपराओं) में से है।
इस का उल्लेख प्रश्न संख्य (5110) के उत्तर में बीत चुका है।
रही बीत अल्लाह तआला के लिए शुक्र (कृतज्ञता) के तौर पर दो रकअत नमाज़ पढ़ने की, तो इस संबंध में विद्वानों के बीच मतभेद है।
चुनाँचे कुछ विद्वानों ने किसी नई नेमत (अनुग्रह) के प्राप्त होने पर इसे (यानी दो रकअत नमाज़ अदा करन) मुस्तहब कहा है, और इसकी वैधता के लिए निम्नलिखित हदीसों से दलील पकड़ी जा सकाती है :
1- कअब बिन उज्रह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि : जिस समय कअब बिन मालिक और उनके साथियों की तौबा (पश्चाताप) स्वीकार हुई, तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें दो रकअत नमाज़ पढ़ने का आदेश दिया। इस हदीस को इमाम हाकिम ने “अल-मुस्तदरक अला अस्सहीहैन” (5/148) में रिवायत किया है।
लेकिन यह हदीस सहीह नहीं है, क्योंकि इसकी सनद में “यह्या बिन अल-मुसन्ना” नामी रावी है।
जिसके बारे में हाफिज़ अल-उक़ैली रहिमहुल्लाह कहते हैं कि : ‘‘इनकी हदीस गैर महफ़ूज़ (असुरक्षित) है, और उन्हें हदीस की रिवायत के लिए नहीं जाना जाता है।’’ “अज़-ज़ुअफ़ा अल-कबीर” (4/432) से समाप्त हुआ।
2- इब्ने माजा (हदीस संख्या : 1391) ने सलमह बिन रजा के माध्यम से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा कि मुझसे हदीस बयान किया शअ-शाने अब्दुल्लाह बिन अबी औफा़ रज़ियल्लाहु अन्हु के माध्यम से कि : “अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को जिस दिन अबू जह्ल के सिर (यानी मारे जाने) की शुभ सूचना दी गई तो आप ने दो रकअत नमाज़ अदा की।“
इस हदीस को कुछ विद्वानों जैसे – इब्ने हजर और इब्ने मुलक़्क़िन ने हसन कहा है। देखें : “अल बद्र अल मुनीर“ (9/106), तलख़ीस अल-हबीर ( 4/107)।
लेकिन अल-बूसीरी रहिमहुल्लाह कहते हैं कि : “इस हदीस की सनद में कलाम किया गया है (यानी आपत्ति व्यक्त की गई है), इसकी सनद में “शअ्-शा बिन्ते अब्दुल्लाह” के बारे में मैंने किसी को जरह या तौसीक़ करते नहीं देखा है। (अर्थात किसी ने उन्हें भरोसेमंद या अविश्वासपात्र नहीं कहा है)।
“सलमह बिन रजा” को इब्ने मुईन ने कमज़ोर कहा है। जबकि इब्ने अदी ने उनके बारे में कहा है कि : उन्हों ने ऐसी हदीसें रिवायत की हैं जिन पर उनका पालन (अनुकरण) नहीं किया गया है। इमाम नसाई ने उन्हें ज़ईफ कहा है। दाराक़ुतनी कहते हैं कि : वह विश्वसनीय रावियों से अलग हदीसें रिवायत करता है। अबू ज़ुर्आ कहते हैं कि : वह “सदूक’’ है। अबू हातिम कहते हैं कि उस की हदीसों में कोई हर्ज (आपत्ति की बात) नहीं है।’’
“मिसबाहुज़ ज़ुजाजह“ (1/211) से समाप्त हुआ।
इसी प्रकार शैख अलबानी ने इस हदीस को ''ज़ईफ़ सुनन इब्ने माजा'' में ज़ईफ़ क़रार दिया है।
3- नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मक्का पर विजय के वर्ष, आठ रकअत नमाज़ पढ़ी थी। इसके बारे में बहुत सारे विद्वानों का कहना है कि यह नमाज़ विजय की अनुकंपा पर अल्लाह तआला का धन्यवाद करने के तौर पर थी।
इस संर्दभ में मुहम्मद बिन नस्र मर्वज़ी कहते हैं कि : रही बात नेमतों (अनुग्रहों) के प्राप्त होने पर अल्लाह तआला का शुक्र अदा करने के लिए नमाज़ पढ़ने या सज्दा करने की, तो इसी अध्याय में से यह है कि : जब अल्लाह सर्वशक्तिमान ने अपने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को मक्का पर विजय प्रदान किया, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने स्नान किया और अल्लाह सर्वशक्तिमान का धन्यवाद करते हुए आठ रकअत नमाज अदा की।’’
ताज़ीम क़दरिस्सलात” (1/240) से समाप्त हुआ।
तथा हाफ़िज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह कहते हैं कि :
“इस घटना में धन्यवाद करने के लिए नमाज़ पढ़ने की वैधता पाई जाती है।’’
“फ़त्हुल बारी” (3/15) से समाप्त हुआ।
लेकिन इस हदीस से शुक्र अदा करने के लिए दो रकअत नमाज़ अदा करने पर तर्क स्थापित करने के बारे में दो रूप से मतभेद किया जा सकता है :
1- यह नमाज़ विजय और जीत के साथ विशिष्ट है, इसलिए इसे खुशी की सभी स्थितियों के लिए सामान्य नहीं बनाया जा सकता।
इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह कहते हैं कि : “यह विजय प्राप्त होने पर शुक्र अदा करने की नमाज़ है, विद्वानों के दो कथनों में से समर्थन प्राप्त कथन के अनुसार।““अल-बिदाया वन्-निहाया” (1/324) से समाप्त हुआ।
इसी प्रकार शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह कहते हैं कि :
“वे (अर्थात पूर्वज) किसी नगर पर विजय प्राप्त होने के अवसर पर यह मुस्तहब समझ़ते थे कि इमाम अल्लाह का शुक्र अदा करने के लिए आठ रकअत नमाज़ पढ़े, और उसे वे सलातुल-फत्ह (विजय की नमाज़) का नाम देते थे।” “मजमूउल फ़तावा” (17/474) से समाप्त हुआ।
इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह कहते हैं कि : “फिर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उम्मे हानी बिन्त अबी तालिब के घर आऐ, वहाँ पर आप ने स्नान किया और उनके घर में आठ रकअत (नफ़ल) नमाज़ पढ़ी। वह चाश्त का समय था।'' तो कुछ लोगों ने उसे चाश्त के समय की नमाज़ समझ़ लिया, हालाँकि यह विजय की नमाज़ है।
इस्लामी शासक जब कोई क़िला या नगर पराजित करते थे तो विजय के बाद, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुकरण करते हुऐ यह नमाज़ पढ़ते थे।
तथा इस कहानी में इस बात का संकेत पाया जाता हे कि यह नमाज़ विजय के कारण अल्लाह तआला का शुक्र (धन्यवाद) अदा करने के तौर पर थी। क्योंकि उम्मे हानी रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं कि : “मैंने आपको इससे पहले और इस के बाद यह नमाज़ पढ़ते हुऐ कभी नहीं देखा।”“ज़ादुल मआद” (3/361) से समाप्त हुआ।
2- उम्मे हानी बिन्ते अबी तालिब रज़ियल्लाहु अन्हा, जिन्हों ने इस हदीस को रिवायत किया है, इस हदीस के शब्दों में स्पष्ट रूप से कहती हैं कि यह चाश्त के समय की नमाज़ थी। और यह उस मत के विरूध है जिसकी ओर इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह अपनी पिछली बात में गए हैं।
मुस्लिम (हदीस संख्या: 336) ने उम्मे हानी रज़ियल्लाहु अन्हा से उल्लेख किया है कि उन्हों ने फरमाया : “जब मक़्क़ा पर विजय होने का वर्ष था, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आईं जबकि आप मक़्क़ा के ऊपरी भाग में थे। तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम स्नान के लिए उठे और फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने आप पर पर्दा किया। फ़िर आप ने अपना कपड़ा लिया और उसे पहन लिया, फ़िर आप ने आठ रकअत चाश्त की नमाज़ अदा की।”
नववी रहिमहुल्लाह मुस्लिम की शरह (व्याख्या) में कहते हैं कि :
“उम्मे हानी का यह कहना कि : ’’फ़िर आठ रकअत ''सुब्हतुज़-ज़ुहा'' (चाश्त की तस्बीह यानी नमाज़) अदा की” इसमें एक बारीक लाभदायक बात है, वह यह कि चाश्त के समय की नमाज आठ रकअत है। दलील का स्थान यह है कि उन्हों ने स्पष्ट शब्दों में इसे चाश्त के समय की नमाज़ क़रार दिया, और यह इस बात का स्पष्टीकरण है कि यह एक ज्ञात, नियत सुन्नत थी, और आप ने उसे चाश्त की नमाज़ की नीयत (इरादे) से पढ़ी थी, जबकि दूसरी रिवायत इसके विरूध है कि ‘‘आप ने आठ रकअतें पढ़ीं और यह चाश्त का समय था।’’ क्योंकि इस हदीस के शब्दों से कुछ लोगों को सही बात के विपरीत का भ्रम हो जाता है और वह कहते हैं कि : इस हदीस में कोई दलील नहीं है कि चाश्त की नमाज़ आठ रकअत है। और वह यह गुमान करते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस समय में मक़्क़ा पर विजय होने के कारण आठ रकअत नमाज़ पढ़ी थी, न कि चाश्त का समय होने के कारण। यह विचार जिसे इस कथन के अनुयायी ने इस शब्द में अपनाया है, वह हदीस के इस शब्द ‘‘सुब्हतुज़-ज़ुहा’’ में नहीं आ सकता।
प्राचीन समय से लेकर कर आज तक, लोग इस हदीस से चाश्त की नमाज़ को आठ रकअत साबित करने पर दलील पकड़ते रहे हैं।और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है। ‘‘सुब्हा‘‘ से अभिप्राय नफ़्ल नमाज़ है, उसका यह नाम उसमें पाई जाने वाली तस्बीह के कारण रखा गया है।’’ अन्त हुआ।
उपर्युक्त बातों के आधार पर, अधिकतर विद्वान तथाकथित ‘‘शुक्र की नमाज़’’ की अवैधता की ओर गए हैं।
रमली कहते हैं कि : “हमारे लिए ऐसी कोई नमाज़ नहीं है जिसे ‘‘शुक्र की नमाज’’ का नमा दिया जाए”। “तोहफ़तुल मुहताज” (3/208) से अंत हुआ।
शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह कहते हैं कि :
“मैं नहीं जानता कि शुक्र की नमाज के बारे में कोई चीज़ वर्णित है, परंतु शुक्र का सज्दा करने के बारे में हदीस वर्णित है।’’ अन्त हुआ
“मजमूउल फ़तावा” (11/424).
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह कहते हैं कि :
“मैं सुन्नत (हदीस) में कोई ऐसी नमाज़ नहीं जानता जिसका नाम : शुक्र की नमाज है, परंतु उसमें सज्दे का उल्लेख मिलता है जिसे : शुक्र का सज्दा कहा जाता है।’’ अन्त हुआ
“फ़तावा नूरूअ अला अद-दर्ब” (6/17).
तथा उन्हों ने एक स्थान पर यह भी कहा कि : “शुक्र अदा करने के लिए क़ियाम और रुकू पर आधारित कोई नमाज़ नहीं है, बल्कि उसके लिए केवल सज्दा है।’’ अन्त हुआ
“फ़तावा नूरून अला अद-दर्ब”(6/18)
इसलिए मुसलमान के लिए धर्मसंगत यह है कि जब उसके साथ कोई ऐसे चीज़ पेश आए जिससे उसे खुशी प्राप्त हो, तो वह अल्लाह के लिए शुक्र (आभार व कृतज्ञता) प्रकट करते हुए सज्दा करे। रही बात शुक्र की नमाज़ पढ़ने की, तो उसका कोई आधार (सबूत) नहीं है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
संबंधित उत्तरों