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एक ही सफर में एक से अधिक व्यक्ति के लिए उम्रा करना

प्रश्न: 134276

प्रश्न: क्या एक से अधिक व्यक्ति के लिए उम्रा करना सही है ॽ ज्ञात रहे कि उम्रा करने वाला पहली बार उम्रा कर रहा है ॽ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्यहै।

सर्व प्रथम :

एक ही सफर में एक से अधिक बार उम्रा करना, चाहे वह अपनी तरफसे हो या किसी अन्य की ओर से, सुन्नत से प्रमाणित नहीं है और न ही सलफ (पूर्वजों)के तरीक़े से प्रमाणित है। क्योंकि मूल सिद्धांत यह है कि हर उम्रे के लिए एक अलगसफर है।

अतः जिस व्यक्ति ने उम्रा के लिए सफर किया वह अपने इस सफरमें उसे एक बार ही करेगा, उसके हक़ में उसे अनेक बार करना धर्मसंगत नहीं है, सिवायइसके कि वह मक्का से सफर करते हुए बाहर निकला हो फिर वहाँ वापस आया हो।

तथा इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

“आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के उम्रों में से एक भी उम्रामक्का से बाहर निकल कर नहीं था, जैसाकि आजकल बहुत से लोग करते हैं, बल्कि आपके सभीउम्रे मक्का में प्रवेश करते हुए थे, तथा आप ने वह्य के उतरने के बाद मक्का मेंतेरह साल निवास किया, लेकिन आपके बारे में कहीं भी यह वर्णन नहीं किया गया है किउस अवधि में आप ने मक्का से बाहर निकल कर उम्रा किया है। पता चला कि आप सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम ने जो भी उम्रा किया है और उसे धर्मसंगत करार दिया है वह मक्का मेंप्रवेश करने वाले का उम्रा है, न कि उस व्यक्ति का उम्रा जो उसमें मौजूद था फिर वहहरम की सीमा से बाहर निकल कर जाता है ताकि उम्रा करे। और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के समय काल में किसी ने भी ऐसा नहीं किया है, सिवाय अकेली आयशा रज़ियल्लाहुअन्हा के ; क्योंकि उन्हों ने उम्रा का तल्बिया पुकारा था, लेकिन वहमासिक धर्म से हो गईं तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें आदेश दिया तोउन्हों ने उम्रा पर हज्ज को दाखिल कर लिया और हज्ज क़िरान करने वाली हो गईं, और आपने उन्हें बतलाया कि उनका बैतुल्लाह का तवाफ और सफा व मर्वा के बीच सई करना उनकेहज्ज और उम्रा दोनों की तरफ से हो गया, तो उन्हों ने अपने दिल में यह सोचा कि उनकीसाथ वालियाँ अलग अलग हज्ज और उम्रे के साथ लौटेंगी (क्योंकि वे हज्ज तमत्तुअकरनेवालियाँ थीं, और उन्हें मासिक धर्म नहीं आया था, और उन्हों ने क़िरान नहीं कियाथा) और वह अपने हज्ज के अंतर्गत उम्रे के साथ लौटेंगी, अतः आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी दिलजोई के लिए उनके भाई को हुक्म दिया कि उन्हें तनईम से उम्राकराकर लायें, और आप ने स्वयं उस हज्ज में तनईम से उम्रा नहीं किया, और न ही आपकेसाथ मौजूद लोगों में से किसी ने किया।”

“ज़ादुल मआद” (2/89, 90) सेसमाप्त हुआ।

तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया :

कुछ लोग दूर दराज़ जगह से उम्रा करने के मक़सद से मक्का आतेहैं, फिर वे उम्रा करते हैं और हलाल हो जाते हैं, फिर वे तनईमजाते हैं और फिर उम्रा करते हैं, अर्थात वह अपने सफर में कई एक उम्रा करता हैं, तोयह कैसा है ॽ

तो उन्हों ने उत्तर दिया :

“यह, अल्लाह तआला आपको आशीर्वाद दे, अल्लाह के दीन मेंबिद्अत (नवाचार) है, क्योंकि वह आदमी अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमऔर आपके सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से बढ़कर (भलाई का) अभिलाषी और उत्सुक नहीं है, औरहम सभी जानते हैं कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रमज़ान के अंत में मक्का केअंदर एक विजयी के रूप में प्रवेश किए, और उन्नीस दिन मक्का में बने रहे और कभी भीतनईम की ओर नहीं निकले ताकि उम्रा का एहराम बाँधें, और इसी तरह सहाबा भी थे, अतःएक ही सफर में कई एक बार उम्रा करना बिद्अतों में से है।” इब्ने उसैमीन की बात समाप्त हुई।

“लिक़ाउल बाबिल मफतूह”(121/28)

तथा शैख अल्बानी रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

“तनईम से उम्रा का एहराम बाँधना, जहाँ से सैयिदा आयशारज़ियल्लाहु अन्हा ने एहराम बाँधा था, यह हुक्म आयशा और उनकी जैसी स्थिति वालों केसाथ विशिष्ट है, और मैं तनईम से उम्रा को मासिक धर्म वाली औरत के उम्रा की संज्ञादेता हूँ, क्योंकि आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा जब हज्जतुल वदाअ के अवसर पर नबीसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ हज्ज करने के लिए निकलीं, और उन्हों ने उम्रा काएहराम बाँधा था, तो जब वह मक्का के निकट एक स्थान पर पहुँचीं जिसे “सरिफ”के नाम से जाना जाता है, तो उनके पास पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आए तोउन्हें रोते हुए पाया, आप ने उन से पूछा : “तुम क्यों रो रही होॽ क्या तुम्हें मासिकधर्म आ गया है ॽ” उन्हों ने कहा : हाँ, ऐ अल्लाह के रसूल। आप सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम ने फरमाया : “यह तो एक ऐसी चीज़ हैजिसे अल्लाह तआला ले आदम की बेटियों पर लिख दिया है, तो तुम वही सब करो जो हज्जकरनेवाला करता है, सिवाय इसके कि तुम तवाफ न करो और नमाज़ न पढ़ो।”चुनाँचे उन्हों ने न तवाफ किया और न नमाज़ पढ़ीं यहाँ तक कि अरफात में पवित्र हो गईंफिर उन्हों ने हज्ज के मनासिक का पालन किया और पूरा हज्ज किया, जब अल्लाह केपैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सफर करने और मदीना लौटने का इरादा किया तो आपउनके पास उनके खेमे में आए और फिर रोते हुए पाया, आप ने कहा : “तुझेक्या हुआ हैॽ” उन्हों ने कहा : मुझे क्या हुआ है ॽ लोग हज्ज और उम्राके साथ लौटें और मैं बिना उम्रा के केवल हज्ज के साथ लौटूँ। क्योंकि उनके मासिकधर्म के कारण उनका उम्रा हज्ज इफ्राद में बदल गया था (शैख अल्बानी रहिमहुल्लाह नेइसी को चयन किया है, जबकि उनके अलावा दूसरे विद्वानों ने इस बात को चयन किया है किवह हज्ज क़िरान करने वाली हो गई थीं, हज्ज इफ्राद करने वाली नहीं थीं), तो पैगंबरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को उनके ऊपर दया आई और आप ने उनके भाई अब्दुर्रहमान बिनअबू बक्र सिद्दीक़ को हुक्म दिया कि वह ऊँटनी पर अपने पीछे बिठाकर उन्हें तनईम लेजाएं, तो उन्हों ने ऐसा ही किया और वह वापस आईं और उम्रा किया, तो उनका दिल खुश होगया, इसीलिए हम कहते हैं : जिस महिला को वही समस्या पेश आ जाए जो आयशा रज़ियल्लाहुअन्हा को पेश आया था, कि वह मासिक धर्म से हो गईं और उन्हों ने उम्रा का एहरामबाँध रखा था, और वह उम्रा को मुकम्मल करने पर सक्षम न हो तो उसका उम्रा हज्ज मेंबदल जायेगा, अतः जो चीज़ उससे छूट गई उसकी छतिपूर्ति उसी ढंग से की जायेगी जिसेअल्लाह ने अपने पैगंबर की ज़ुबानी आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा के लिए धर्मसंगत किया है,तो यह मासिक धर्मवाली औरत तनईम जायेगी और उम्रा करेगी, रही बात पुरूषों की तोअल्लाह का शुक्र है कि उन्हें मासिक धर्म नहीं आता है, तो फिर मासिकधर्म वाली औरतके प्रावधान से उनका क्या संबंध है ॽ और इसका प्रमाण यहहै, जैसा कि पैगंबर की जीवननी (सीरत) और सहाबा के हालात के कुछ विद्वानों का कहनाहै, कि : रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ एक लाख सहाबा ने हज्ज किया, परंतुउनमें से किसी एक ने भी आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा के उम्रा की तरह उम्रा नहीं किया।”अल्बानी की बात समाप्त हुई।

अतः जो व्यक्ति मक्का में है उसके लिए उम्रा का एहरामबाँधने के लिए तनईम जाना धर्मसंगत नहीं है, बल्कि उसके लिए धर्मसंगत यह है कि यदिवह किसी ज़रूरत के लिए मक्का से बाहर निकले, जैसे कि यदि वह मदीना, या जद्दा, यातायफ के लिए निकले . . . फिर वह मक्का वापस लौटने का इरादा करे, तो उसके लिए कोईआपत्ति की बात नहीं है कि वह उम्रा के साथ वापस लौटे।

तथा मक्का में उपस्थित उस व्यक्ति के लिए तनईम जाने कीरूख्सत हो सकती है ताकि वह किसी दूसरे की ओर से उम्रा का एहराम बाँधे जो व्यक्तिदूर दराज़ जगह से आया है, उसे हरमैन शरीफैन के देश में प्रवेश करने के लिए वीज़ा औरभारी खर्च की ज़रूरत होती है, और उसे नहीं पता कि उसे दुबारा इसका अवसर मिलेगा यानहीं ॽ

तो इस तरह के आदमी के लिए तनईम से किसी दूसरे की तरफ सेउम्रा करने की रूख्सत हो सकती है, परंतु जिसके लिए मक्का लौटना आसान है तो वह एकही सफर में एक से अधिक उम्रा नहीं करेगा, चाहे वह अपनी तरफ से हो या किसी दूसरे कीओर से।

दूसरा :

किसी दूसरे की ओर से उम्रा करना जायज़ है यदि वह दूसराव्यक्ति बुढ़ापे (वयोवृद्धि) या ऐसी बीमारी की वजह से जिससे स्वस्थ्य होने की आशानहीं है, असमर्थ और असक्षम हो, या वह मृतक हो, इस शर्त के साथ कि उम्रा करने वालापहले अपना उम्रा कर चुका हो।

इफ्ता की स्थायी समिति के विद्वानों से प्रश्न किया गया कि:

मैं अल्लाह के पवित्र घर का उम्रा करना चाहता हूँ, और मेराइरादा है कि जब मैं अपने उम्रा से फारिग हो जाऊँगा तो अपने माता पिता की ओर सेउम्रा करूँगा – जबकि अल्लाह का शुक्र है कि वे दोनों जीवित हैं – और उन दोनों केमाता पिता की ओर से भी उम्रा करुंगा – जबकि वे दोनों मृत्यु पा चुके हैं अल्लाह उनदोनों पर दया करे – क्या यह तरीक़ा मेरे लिए सही है या नहीं ॽ

तो उन्हों ने उत्तर दिया :

“यदि आप अपनी ओर से उम्रा कर चुके हैं तो आपके लिए अपने मातापिता की ओर से उम्रा करना जायज़ है यदि वे दोनो बुढ़ापे या ठीक न होने वाली बीमारीकी वजह से असक्षम और असमर्थ हों। तथा आपके लिए अपने माता पिता के मृतक माता पिताकी तरफ से भी उम्रा करना जायज़ है।” अंत हुआ।

“फतावा स्थायी समिति” (11/80-81).

तथा अधिक लाभ के लिए प्रश्न संख्या (111501) का उत्तरदेखें।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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