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उन क्षेत्रों में इशा की नमाज़ का समय जिनमें शफक़ (उषमा) देर से गायब होता है

प्रश्न: 135415

हम सऊदी अरब के छात्र हैं जो ब्रिटिश में शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजे गए हैं, और निर्धारित रूप से “बर्मिंघम” सिटी में रहते हैं, इन दिनों – गर्मियों के मौसम की शुरूआत के साथ – पूरे समय मग़्रिब की नमाज़ के समय के शुरू होने और इशा की नमाज़ के समय के आरंभ होने के बीच समस्या का सामना किया है। हर साल मुसलमानों के बीच जो कुछ वे करते हैं उसके बारे में कोलाहल उठाया जाता है, कुछ मस्जिदों में इशा की नमाज़ मग़्रिब की नमाज़ के समय के दाखिल होने के 90 मिनट के बाद पढ़ी जाती है, जबकि कुछ मस्जिदों में शफक़ की लालिमा के गायब होने की प्रतीक्षा कि जाती है जिसकी अवधि कभी कभार 3 घंटे तक पहुँचती है !! जिससे लोगों को असुविधा होती है, विशेष कर जब रातें छोटी होती हैं। हम मुसलमान, कॉलेज के आवास में इन दिनों में इशा की नमाज़ दो जमाअतों (समूहों) में पढ़ते हैं, पहली जमाअत : इशा की नमाज़ 90 मिनट के बाद पढ़ती है, और निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है :

1. शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने अपने एक भाषण में उल्लेख किया है कि मग़्रिब की नमाज़ के समय के प्रवेश करने और इशा के बीच अधिकतम अवधि एक घंटा और बत्तीस मिनट है।

2. सऊदी अरब के एक प्रसिद्ध शैख (विद्वान) के फत्वा के आधार पर।

3. कुछ हिस्सों, और साल के कुछ मौसमों में शफक़ रात भर गायब नहीं होता है।

4. कुछ मस्जिदें और इस्लामी केंद्र 90 मिनट के नियम का पालन करते हैं।

5. हरमैन शरीफैन (मक्का और मदीना की मस्जिदों) में इसी नियम पर आधार है।
परंतु दूसरी जमाअत : देर से नमाज़ पढ़ती है, उसका आधार निम्नलिखित बातें हैं :

(क) – स्थायी समिति का एक फत्वा कि हर नमाज़ को उसके शरई समय पर, उसकी शरई अलामत के हिसाब से (जब रात, दिन से अलग हो जाए तो) पढ़ी जाए।

(ख) – सऊदिया के एक प्रसिद्ध शैख (विद्वान) का एक फत्वा जिसमें उन्हों ने ज़ोर देकर कहा है कि 90 मिनट का नियम गलत है।

(ग) – कुछ मस्जिदों और इस्लामी केंद्रों में इसी का का पालन किया जा रहा है।

(घ) – “मुस्लिम विश्व लीग” द्वारा प्रमाणित कैलेंडर।

वास्तव में, – ऐ आदरणीय शैख! – “लीग” का कैलेंडर, साल के कुछ मौसमों में, हमारे लिए दुविधा और कष्ट पैदा कर रहा है। हम नमाज़ के कैलेंडर (समय सारणी) के बारे में निम्नलिखित साइट पर भरोसा करते हैं :

www.islamicfinder.org

जो कि सभी कैलेंडरों, और गणना के प्रसिद्ध तरीक़ों को उपलब्ध कराता है, साथ ही साथ उसमें व्यक्तिगत संशोधन की संभावना होती है। चूँकि हमने हस मुद्दे के बारे में इंटरनेट आदि पर कोई सैद्धांतिक अनुसंधान, या सपष्ट फत्वा नहीं पाया, इसलिए -ऐ आदरणीय शैख – हम आप से पर्याप्त अनुसंधान और संतोशजनक उत्तर की प्रतीक्षा करते हैं, जिसके द्वारा अल्लाह से हम दुआ करते हैं कि वह दिलों को एकजुट कर दे, और इस मुद्दे के बारे में उन्हें हक़ पर एकत्रित कर दे। तथा अल्लाह तआला आपको अच्छा बदला प्रदान करे।

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकारकी प्रशंसा औरगुणगान केवल अल्लाहके लिए योग्य है।

सर्व प्रथम:

विद्वानोंके निकट नमाज़ कीसर्वसम्मत शर्तोंमें से एक: नमाज़के समय का प्रवेशकरना है, अल्लाहतआला ने फरमाया:

إِنَّالصَّلاةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ كِتَاباً مَوْقُوتاً[النساء: 103].

“बेशकनमाज़मुसलमानों परनिश्चित औरनिर्धारितवक़्त परफर्ज़ की गईहै।”(सूरतुन्निसाः103).

शैख अब्दुर्रहमानअस-सादी रहिमहुल्लाहने फरमाया:

अर्थातउसके समय पर अनिवार्यहै, तो इस आयत सेउसकी अनिवार्यताका पता चला,और यसह कि उसकाएक समय जिसके बिनावह शुद्ध नहींहो सकती है,और वे यही समय हैंजो सभी छोट,बड़े, ज्ञानी औरअज्ञानी मुसलमानोंके यहा प्रमाणितहैं। ‘‘तफ्सीर सअदी” (पृष्ठ: 198)

दूसरा :

मग़्रिबकी नमाज़ का प्रथमसमय : छितिज मेंसूरज की टिकियाका गायब होना,और उसका अंतिमसमय – जिसके साथही इशा का समय प्रवेशकरता है – लाल उषमाका गायब होना है।

अब्दुल्लाहबिन अम्र बिन आसरज़ियल्लाहु अन्हुमासे वर्णित है किउन्हों ने कहा:अल्लाह के पैगंबरसल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम ने फरमाया:“मग्रिब की नमाज़का वक़्त उस समयहै जब सूरज डूबजाए (और उस समय तकरहता है) जब तक किशफक़ गायब न हो जाए,और इशा की नमाज़का वक़्त आधी राततक रहता है।” इसेमुस्लिम (हदीससंख्या : 612) ने रिवायतकिया है।

शरीअत मेंनिर्धारित ये समयसीमा उन देशोंमें होगी जिनमेंदिन और रात चौबीसघंटे में होतेहैं, और इस हालतमें दिन के लंबेहोने और रात केछोटी होने का कोईएतिबार नहीं है,सिवाय इसके किइशा का समय नमाज़की अदायगी के लिएकाफी न हो,यदि उसके लिए पर्याप्तसमय नहीं है तो:गोया उसका कोईसमय ही नहीं है,और उसका उसके सबसेनिकट देश से अनुमानलगाया जायेगा जिसमें रात दिन ऐसेहोते हैं जो पाँचोंनमाज़ों की अदायगीके लिए पर्याप्तहोते हैं।

और आप लोगोंका यह मुद्दा ऐसाहै जिसका विद्वानोंने एहतिमाम कियाहै और उसे अपनेबीच अनुसंधान औरफत्वा का विषयबनाया है,कुछ लोगों ने उसकेबारे में इस शीर्षकके साथ एक अलग पुस्तिकाका उल्लेख कियाहै: “जिन क्षेत्रोंमें शफक़ (उषा) देरसे गायब होता हैऔर फज्र जल्दीउदय होती है,उनमें इशा की नमाज़और खाने पीने सेरूकने का समय”, और वह पुस्तिकाइस्तांबुल मेंइस्लामी रिसर्चसेंटर के अध्यक्षडॉक्टर ‘‘तैयार आल्तीक़ोलाज” की है,विद्वानों नेइस मुद्दे मेंतीन कथनों पर मतभेदकिया है :

पहला कथन: मगिरब और इशाकी नमाज़ो को जमा(एकत्रित) करनेकी रूख्सत को अपनाना; ऐसा कष्ट और कठिनाईपाए जाने के कारणजो बारिश और उसकेअलावा नमाज़ जमाकरने के अन्य कारणोंसे कम नहीं है।

दूसरा कथन: इशा की नमाज़का अनुमान लगाना,कुछ लोगों ने इसबारे में मक्कामुकर्रमा का एतिबारकरने का आह्वानकिया है, औ जिन लोगोंने यह बात कही हैउनमें से एक अभीवर्णित पुस्तिकाके लेखक भी हैं।

तीसरा कथन: इशाकी नमाज़ के शरईवक़्त की पाबंदीकरना, और वह शफक़ कागायब होना है,जब तक कि वह समयइशा की नमाज़ केलिए काफी है।

और इस अंतिमकथन को ही हम राजेह(उचित) समझते हैं,और इसी पर नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमके नुसूस (हदीसके मूल शब्द) दलालतकरते हैं, तथा इसीका फत्वा वरिष्ठविद्वानों की कौंसिल,इफ्ता की स्थायीसमिति तथा शैखइब्ने अल-उसैमीनऔर शैख इब्ने बाज़और इनके अलावाअन्य विद्वान देतेहैं।

शैख मुहम्मदबिन सालेह अल उसैमीनरहिमहुल्लाह नेफरमाया:

“ये निर्धारितसमय सारणी : उन स्थानोंपर (लागू) होगी जहाँदिन और रात चौबीसघंटे के दौरानआता है, चाहे दिन औररात दोनों बराबरहों , या उन दोनोंमें से कोई एक दूसरेसे थोड़ा या अधिकबढ़कर (ज़्यादा)हो।

प्रंतुजिस स्थान पर चौबीसघंटे के दौरानरात और दिन नहींआता है: तो वह इसबात से खाली नहींहोगा कि : या तो सालके सभी दिनों मेंऐसा ही होता होगा,या केवल उसके कुछदिनों में ऐसाहोता होगा।

यदि वह उसकेकुछ दिनों मेंऐसा होता है,उदाहरण के तौरपर किसी स्थानपर रात दिन सालके पूरे मौसम मेंचौबीस घंटे मेंहोते हैं,किंतु कुछ मौसमोंमें वह चौबीस घंटाया उस से अधिक होतीऔर दिन भी इसी तरहहोता है तो: ऐसीस्थिति में यातो छितिज में कोईजीवित लक्षण होगीजिसके द्वारा समयको निर्धारित करनासंभव होगा,जैसे कि रोशनीके बढ़ने का आरंभ,या उसका पूर्णतयासमाप्त हो जाना,तो उस दृश्य (लक्षण)पर हुक्म को लंबितकिया जायेगा,और या तो उसमेंऐसी कोई चीज़ नहींहोगी, तो ऐसी स्थितिमें नमाज़ के औक़ातका अनुमान उस अंतिमदिन के हिसाब सेकिया जायेगा जोरात या दिन के निरंतरचौबीस घंटे केहोने से पहले था…

यदि किसीस्थान पर रात औरदिन साल के सभीमौसमों में चौबीसघंटे के दौराननहीं होते हैं: तो नमाज़ के औक़ातका अनुमान लगायाजायेगा ;क्योंकिमुस्लिम ने नवासबिन समआन रज़ियल्लाहुअन्हु की हदीससे रिवायत कियाहै कि नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने दज्जाल का चर्चाकिया जो कि आखिरीज़माने में होगा,तो लोगों ने आपसे उसके धरती परठहरने के बारेमें पूछा तो आपने फरमाया : ‘‘चालीस दिन,एक दिन एक साल केसमान, और एक दिन एकमहीने के समान,और एक दिन जुमाके समान, और बाक़ीदिन तुम्हारे दिनोंके समान होंगे।” तोलोगों ने कहा : ऐअल्लाह के पैगंबर!वह दिन जो एक सालके बराबर होगाउसमें हमारे लिएएक दिन की नमाज़काफी होगी ॽ आप ने फरमाया :“नहीं, उसके लिएतुम अनुमान करलेना।”

. . . जब यह बातसाबित हो गई किजिस जगह रात औरदिन (चौबी घंटे)के अंदर नहीं होतेहैं तो उसके लिएअनुमान लगाया जायेगातो प्रश्न यह उठताहै कि हम उसका अनुमानकैसे करेंगे ॽ

. . . कुछ विद्वानोंका विचार है कि: औसत (मध्यस्थ) समयसे उसका अनुमानकिया जायेगा,चुनाँचे रात कोबारह घंटा अनुमानितकिया जायेगा,और इसी तरह दिनको भी ; क्योंकि जबस्वयं इसी जगहका एतिबार करनाअसंभव हो गया : तोऔसत जगह का एतिबारकिया जायेगा,उस मुस्तहाज़ाऔरत के समान जिसकीकोई आदत नहीं होतीऔर न ही वह उसकीतमीज़ कर सकती है।

जबकि दूसरेविद्वानों का विचारयह है कि : उस जगहके सबसे निकट देशके द्वारा अनुमानकिया जायेगा,जिसमें रात औरदिन साल के दौरानही होते हैं ; क्योंकि जब स्वयंउसी जगह का एतिबारकरना असंभव होगया तो उसके समानतरसबसे निकट जगहका एतिबार कियाजायेगा, और वह उसकेसबसे निकट का देशहै जिसमें चौबीसघंटे के दौरानरात और दिन होतेहैं।

और यही कथनसबसे राजेह (उचित)है ; क्योंकि यहतर्क के एतिबारसे सबसे मज़बूतहै, और वस्तुस्थितिके सबसे निकट है।

“मजमूओफतावा शैख इब्नेउसैमीन” (12/197,198).

और यही सऊदीअरब में वरिष्ठविद्वानों के बोर्डका कथन है,और इफ्ता की स्थायीसमिति ने इसकासमर्थन किया है,और हमने उनके फत्वोंको प्रश्न संख्या(5842) के उत्तर मेंउल्लेख किया है,जिसमें उनका यहकथन है :

“. . . इसके अलावा अन्यकथन और कर्मसंबंधी हदीसेंजो पाँचों नमाज़ोंके औक़ात के निर्धारणमें अवतरित हुईहैं, और उन हदीसोंमें दिन के लंबेऔर छोटे होने औररात के लंबी औरछोटी होने के बीचअंतर नहीं कियागया है, जबकि नमाज़के औक़ात उन निशानियोंके द्वारा एक दूसरेसे अलग होते हैंजिन्हें अल्लाहके पैगंबर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने स्पष्ट कियाहै।” अंत हुआ।

आप लोग जिसदेश में शि़क्षाप्राप्त कर रहेहैं उसकी स्थितिको देखते हुए : हमपाते हैं कि उसमेंदिन और रात चौबीसघंटे में ही होतेहैं और इशा की नमाज़का समय इतना छोटानहीं होता है किवह उसमें नमाज़अदा करने के लिएकाफी न हो। इस आधारपर, आप लोगों केहक़ में यह बात अनिवार्यहै कि नमाज़ों कोउनके शरई औक़ातमें अदा करें।

तीसरा:

यदि इशाका समय बहुत अधिकविलंब हो जाताहो कि नमाज़ को उसकेसमय पर पढ़ने मेंकष्ट होता हो,तो ऐसी स्थितिमें मगरिब और इशाकी नमाज़ में जमातक़दीम करने (अर्थातमगरिब और इशा कीनमाज़ को एक साथगगरिब के समय मेंपढ़ने) में कोई आपत्तिनहीं है।

तथा प्रश्नसंख्या : (5709) के उत्तरमें हम ने शैख अल-उसैमीनरहिमहुल्लाह कायह कथन उललेख कियाहै :

“ और अगरशफक़ (उषा) फज्र कीनमाज़ के समय सेइतने लंबे समयपहले गायब होताहै जो इशा की नमाज़के लिए पर्याप्तहै : तो उनके लिएप्रतीक्षा करनाअनिवार्य है यहाँतक कि वह (शफक़) गायबहो जाऐ, सिावाय इसकेकि उनके ऊपर प्रतीक्षाकरना कठिन हो तोऐसी स्थिति मेंउनके लिए इशा कीनमाज़ को मगरिबके साथ मिलाकरमगरिब के समय मेंपढ़ना जाइज़ है ; तंगी,असुविधा और कष्टको दूर करने केलिए . . . ’’ अंत हुआ।

तथा मुस्लिमविश्व लीग के अधीन‘‘इस्लामी फिक़्हसमिति” के निर्णयमें आया है :

“परिषदके सदस्यों नेउच्च अक्षांश वालेदेशों में नमाज़की समय सारणी औररोज़े के विषय कोउठाया, और कुछ सदस्योंद्वारा प्रस्तुतशरई और खगोलीयअध्ययनों,और संबंधित तकनीकीपहलुओं के प्रस्तुतियोंको सुना जिनकीपरिषद के ग्यारहवेसत्र में सिफारिशकी गई थी,और निम्नलिखितनिर्णय लिया :

“ . . .

तीसरा : उच्चडिग्री वाले क्षेत्रोंको तीन भागों मेंविभाजित किया जायेगा:

पहला क्षेत्र:जो अक्षांश (45) डिग्रीऔर (48) डिग्री के बीचउत्तर और दक्षिणस्थित है, और उसमें चौबीसघंटे में औक़ातके प्रत्यक्ष विलक्षणस्पष्ट रूप सेपाए जाते हैं,चाहे औक़ात लंबेहों या छोटे।

दूसरा क्षेत्र:जो अक्षांश (48) डिग्रीऔर (66) डिग्री के बीचउत्तर और दक्षिणस्थित हैं,और उसमें साल केकुछ दिनों मेंऔक़ात के कुछ खगोलीयविलक्षण नहीं पायेजाते हैं,जैसे कि शफक़ (उषमा)जिसके द्वारा इशाका आरंभ होता हैगायब न हो,और मगरिब का वक़्तयहाँ तक फैल जाएकि फज्र के साथघुल मिल जाये।

तीसरा क्षेत्र: अक्षांश के ऊपर(66) डिग्री दक्षिणऔर उत्तर दोनोंक़ुतुब की ओर स्थितहै, और उसमें साल कीएक लंबी अवधि मेंदिन या रात के समयऔक़ात के प्रत्यक्षलक्षण (स्पष्टसंकेत) नहीं मिलतेहैं।

चौथा : पहलेक्षेत्र में हुक्मयह है कि : उसके निवासीनमाज़ के अंदर उसकेशरई औक़ात,तथा रोज़े में उसकेशरई वक़्त की पाबंदीकरेंगे फज्र सादिक़के उदय होने सेलेकर सूरज के डूबनेतक ; नमाज़और रोज़े के औक़ातमें शरई नुसूसपर अमल करते हुए,और जो व्यक्तिवक़्त के लंबाहोने के कारण किसीदिन का रोज़ा रखने,या उसे पूरा करनेमें बेबस है,तो वह रोज़ा तोड़दे, और उचित दिनोंमें उसकी क़ज़ा करे. . . ’’ अंत हुआ।

और इसी हालतके बारे में प्रश्नकिया गया है,जैसा कि यह बातस्पष्ट है।

तथा इस्लामीफिक़्ह समिति केएक बाद के निर्णयमें पिछले निर्णयपर ज़ोर दिसा गयाहै, और उस आदमीके लिए जो इशा कीनमाज़ को आदा करनेमें कठिनाई काअनुभव करता है,(उसे) यह रूख्सतदी गई है कि वह उसेमगरिब के साथ इकटठाकरके पढ़ ले,और इस बात को स्पष्टताके साथ बयान कियागया है कि इसे एकआम आदत न बना ले,बल्कि यह केवलउज़्र वालों केलिए है, चुनाँचे उसनिर्णय में आयाहै कि:

“किंतुयदि नमाज़ के औक़ातके संकेत ज़ाहिरहोते हैं,लेकिन शफक़ का गायबहोना जिसके द्वाराइशा की नमाज़ कासमय दाखिल होताहै बहुत अधिक विलंबहो जाता है: तो ‘‘समिति” का विचार हैइशा की नमाज़ कोशरीअत में निधार्रितउसके समय पर अदाकरना ज़रूरी है,किंतु जिस आदमीके लिए प्रतीक्षाकरना और उसे उसकेसमय पर अदा करनाकठिन है – जैसे छात्र,कर्मचारी और श्रमिकलोग अपने काम केदिनों में – तो उसकेलिए इशा की नमाज़को इकट्ठा करकेपढ़ना जायज़ है ; इस उम्मत से कष्टऔर तंगी को दूरकरने के बारे मेंवर्णित प्रमाणोंपर अमल करते हुए।और इसी में से वहहदीस है जो मुस्लिमवगैरह में इब्नेअब्बास रज़ियल्लाहुअन्हुमा से वर्णितहै कि उन्हों नेफरमाया: ‘‘अल्लाह केरसूल सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने ज़ुहर अैर अस्रके बीच और मगरिबऔर इशा के बाच मदीनामें बिना किसीडर और बारिश केइकट्ठा किया” तो इब्ने अब्बाससे इसके बारे मेंपूछा गया तो उन्होंने फरमाया : आप नेचाहा कि अपनी उम्मतको तंगी और असुविधामें न डालें।”

किंतु यहबात ध्यान मेंरहे कि दो नमाज़ोंको इकट्ठा करनाउस देश में सभीलोगों का उस अवधिके दौरान मूल सिद्धांतन बन जाए,क्योंकिइसका मतलब इकट्ठाकरने की रूख्सतको अज़ीमत (मूल हुक्म)में बदल देना होगा. . .

जहाँ तकइस कठिनाई के नियमका संबंध है : तोउसका आधार परंपराहै, और वह लोगों,स्थानों और परिस्थितियोंकी भिन्नता केएतिबार से भिन्नभिन्न होता है।” मुस्लिमविश्व लीग के केंद्रस्थान मक्का मुकर्रमामें 22-27 शव्वाल 1428 हिज्री,3-8 नवंबर 2007 ई. की अवधिमें आयोजित “उन्नीसवेंसत्र”, द्वितीय प्रस्तावसे समाप्त हुआ।

चौथा :

जहाँ तकमग़्रिब और इशाके बीच वक़्त कोएक घंटा बत्तीसमिनट से अनुमानितकरने की बात है: तो हम उसे शैख उसैमीन,या उनके अलावाके यहाँ नहीं पातेहैं, और हमने ऊपरशैख रहिमहुल्लाहकी बात उल्लेखकी है लेकिन उन्होंने इस कथन को उल्लेखनहीं किया है औरन ही उसे राजेहठहराया है।

हो सकताहै कि शैख रहिमहुल्लाहसे वर्णन करनेवाले से गलती हुईहै, और शैख रहिमहुल्लाहने आम तौर पर औरअक्सर मध्यस्थदेशों में, या निश्चितरूप से सऊदियाके अंदर मग्रिबऔर इशा के बीच केवक्त को मुरादलिया हो, और यही बातसबसे निकट मालूमहोती है।

(क)- शैख उसैमीनरहिमहुल्लाह केकथनों में से यहभी है :

“वास्तव में इशाका वक़्त अज़ानके साथ विशिष्टनहीं है ;क्योंकिइशा का समय कभीकभार साल के कुछहिस्सों मे,और कुछ मौसमोंमें : सूरज डूबनेऔर इशा का समय प्रवेशकरने के बीच सवाघंटा (एक घंटा पंद्रहमिनट), कभी कभार एकघंटा बीस मिनट,कभी कभार एक घंटापचीस मिनट, और कभी कभार एकघंटा तीस मिनटहोता है, वह बदलतारहता और भिन्नभिन्न होता है,सभी मौसमों मेंउसे निर्धारितया व्यवस्थित करनासंभव नहीं है।”

“जलसातरमज़ानीयह”

(ख)- तथा आपरहिमहुल्लाह नेयह भी फरमाया :

मग़्रिबका समय सूरज डूबनेसे लेकर लाल शफक़(उषा) के गायब होनेतक है, तो कभी कभारमग़्रिब और इशाके बीच एक घंटाऔर आधा (डेढ़ घंटा),कभी कभार एक घंटाबीस मिनट,और कभी कभार एकघंटा सत्तरह मिनटहोता है, वह भिन्नभिन्न होता है।

“मजमूओफतावा शैख अल-उसैमीन” (7/338)

सारांशयह कि :

1. जिन देशों मेंदिन और रात चौबीसघंटे में होतेहैं : उनमें नमाज़ोंकी उसके शरई वक़्तोंमें पाबंदी करनाअनिवार्य है, चाहेरात लंबी हो याछोटी।

2. जिन देशों मेंदिन और रात चौबीसघंटों में नहींहोते हैं : उनमेंनमाज़ों के संबंधमें उस स्थान कीपाबंदी की जायेगीजो उसके निकटतमहै जिसमें दिनऔर रात पाया जाताहै।

3. जिन देशों मेंशफक़ फज्र तक निरंतररहता है, या वह गायबतो होता है परंतुवह वक़्त इशा कीनमाज़ के लिए काफीनहीं होता है : तोउनके निकटतम स्थानकी पाबंदी की जायेगीजिसमें उसकी नमाज़के लिए पर्याप्तसमय होता है।

4. उज़्र वालों केलिए यदि उनके लिएइशा के समय की प्रतीक्षाकरना कठिन है तोमग़्रिब और इशाकी नमाज़ को इकट्ठाकरके पढ़ना जायज़है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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