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उन क्षेत्रों में इशा की नमाज़ का समय जिनमें शफक़ (उषमा) देर से गायब होता है

प्रश्न: 135415

हम सऊदी अरब के छात्र हैं जो ब्रिटिश में शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजे गए हैं, और निर्धारित रूप से “बर्मिंघम” सिटी में रहते हैं, इन दिनों – गर्मियों के मौसम की शुरूआत के साथ – पूरे समय मग़्रिब की नमाज़ के समय के शुरू होने और इशा की नमाज़ के समय के आरंभ होने के बीच समस्या का सामना किया है। हर साल मुसलमानों के बीच जो कुछ वे करते हैं उसके बारे में कोलाहल उठाया जाता है, कुछ मस्जिदों में इशा की नमाज़ मग़्रिब की नमाज़ के समय के दाखिल होने के 90 मिनट के बाद पढ़ी जाती है, जबकि कुछ मस्जिदों में शफक़ की लालिमा के गायब होने की प्रतीक्षा कि जाती है जिसकी अवधि कभी कभार 3 घंटे तक पहुँचती है !! जिससे लोगों को असुविधा होती है, विशेष कर जब रातें छोटी होती हैं। हम मुसलमान, कॉलेज के आवास में इन दिनों में इशा की नमाज़ दो जमाअतों (समूहों) में पढ़ते हैं, पहली जमाअत : इशा की नमाज़ 90 मिनट के बाद पढ़ती है, और निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है :

1. शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने अपने एक भाषण में उल्लेख किया है कि मग़्रिब की नमाज़ के समय के प्रवेश करने और इशा के बीच अधिकतम अवधि एक घंटा और बत्तीस मिनट है।

2. सऊदी अरब के एक प्रसिद्ध शैख (विद्वान) के फत्वा के आधार पर।

3. कुछ हिस्सों, और साल के कुछ मौसमों में शफक़ रात भर गायब नहीं होता है।

4. कुछ मस्जिदें और इस्लामी केंद्र 90 मिनट के नियम का पालन करते हैं।

5. हरमैन शरीफैन (मक्का और मदीना की मस्जिदों) में इसी नियम पर आधार है।
परंतु दूसरी जमाअत : देर से नमाज़ पढ़ती है, उसका आधार निम्नलिखित बातें हैं :

(क) – स्थायी समिति का एक फत्वा कि हर नमाज़ को उसके शरई समय पर, उसकी शरई अलामत के हिसाब से (जब रात, दिन से अलग हो जाए तो) पढ़ी जाए।

(ख) – सऊदिया के एक प्रसिद्ध शैख (विद्वान) का एक फत्वा जिसमें उन्हों ने ज़ोर देकर कहा है कि 90 मिनट का नियम गलत है।

(ग) – कुछ मस्जिदों और इस्लामी केंद्रों में इसी का का पालन किया जा रहा है।

(घ) – “मुस्लिम विश्व लीग” द्वारा प्रमाणित कैलेंडर।

वास्तव में, – ऐ आदरणीय शैख! – “लीग” का कैलेंडर, साल के कुछ मौसमों में, हमारे लिए दुविधा और कष्ट पैदा कर रहा है। हम नमाज़ के कैलेंडर (समय सारणी) के बारे में निम्नलिखित साइट पर भरोसा करते हैं :

www.islamicfinder.org

जो कि सभी कैलेंडरों, और गणना के प्रसिद्ध तरीक़ों को उपलब्ध कराता है, साथ ही साथ उसमें व्यक्तिगत संशोधन की संभावना होती है। चूँकि हमने हस मुद्दे के बारे में इंटरनेट आदि पर कोई सैद्धांतिक अनुसंधान, या सपष्ट फत्वा नहीं पाया, इसलिए -ऐ आदरणीय शैख – हम आप से पर्याप्त अनुसंधान और संतोशजनक उत्तर की प्रतीक्षा करते हैं, जिसके द्वारा अल्लाह से हम दुआ करते हैं कि वह दिलों को एकजुट कर दे, और इस मुद्दे के बारे में उन्हें हक़ पर एकत्रित कर दे। तथा अल्लाह तआला आपको अच्छा बदला प्रदान करे।

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार
की प्रशंसा और
गुणगान केवल अल्लाह
के लिए योग्य है।

सर्व प्रथम
:

विद्वानों
के निकट नमाज़ की
सर्वसम्मत शर्तों
में से एक: नमाज़
के समय का प्रवेश
करना है,
अल्लाह
तआला ने फरमाया:

إِنَّ
الصَّلاةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ كِتَاباً مَوْقُوتاً
[النساء
: 103].

“बेशक
नमाज़
मुसलमानों पर
निश्चित और
निर्धारित
वक़्त पर
फर्ज़ की गई
है।”
(सूरतुन्निसाः
103).

शैख अब्दुर्रहमान
अस-सादी रहिमहुल्लाह
ने फरमाया:

अर्थात
उसके समय पर अनिवार्य
है,
तो इस आयत से
उसकी अनिवार्यता
का पता चला,
और यसह कि उसका
एक समय जिसके बिना
वह शुद्ध नहीं
हो सकती है,
और वे यही समय हैं
जो सभी छोट,
बड़े,
ज्ञानी और
अज्ञानी मुसलमानों
के यहा प्रमाणित
हैं। ‘‘तफ्सीर सअदी” (पृष्ठ: 198)

दूसरा :

मग़्रिब
की नमाज़ का प्रथम
समय : छितिज में
सूरज की टिकिया
का गायब होना,
और उसका अंतिम
समय – जिसके साथ
ही इशा का समय प्रवेश
करता है – लाल उषमा
का गायब होना है।

अब्दुल्लाह
बिन अम्र बिन आस
रज़ियल्लाहु अन्हुमा
से वर्णित है कि
उन्हों ने कहा:
अल्लाह के पैगंबर
सल्लल्लाहु अलैहि
व सल्लम ने फरमाया:
“मग्रिब की नमाज़
का वक़्त उस समय
है जब सूरज डूब
जाए (और उस समय तक
रहता है) जब तक कि
शफक़ गायब न हो जाए,
और इशा की नमाज़
का वक़्त आधी रात
तक रहता है।” इसे
मुस्लिम (हदीस
संख्या : 612) ने रिवायत
किया है।

शरीअत में
निर्धारित ये समय
सीमा उन देशों
में होगी जिनमें
दिन और रात चौबीस
घंटे में होते
हैं,
और इस हालत
में दिन के लंबे
होने और रात के
छोटी होने का कोई
एतिबार नहीं है,
सिवाय इसके कि
इशा का समय नमाज़
की अदायगी के लिए
काफी न हो,
यदि उसके लिए पर्याप्त
समय नहीं है तो:
गोया उसका कोई
समय ही नहीं है,
और उसका उसके सबसे
निकट देश से अनुमान
लगाया जायेगा जिस
में रात दिन ऐसे
होते हैं जो पाँचों
नमाज़ों की अदायगी
के लिए पर्याप्त
होते हैं।

और आप लोगों
का यह मुद्दा ऐसा
है जिसका विद्वानों
ने एहतिमाम किया
है और उसे अपने
बीच अनुसंधान और
फत्वा का विषय
बनाया है,
कुछ लोगों ने उसके
बारे में इस शीर्षक
के साथ एक अलग पुस्तिका
का उल्लेख किया
है:
“जिन क्षेत्रों
में शफक़ (उषा) देर
से गायब होता है
और फज्र जल्दी
उदय होती है,
उनमें इशा की नमाज़
और खाने पीने से
रूकने का समय”,
और वह पुस्तिका
इस्तांबुल में
इस्लामी रिसर्च
सेंटर के अध्यक्ष
डॉक्टर ‘‘तैयार आल्ती
क़ोलाज” की है,
विद्वानों ने
इस मुद्दे में
तीन कथनों पर मतभेद
किया है :

पहला कथन: मगिरब और इशा
की नमाज़ो को जमा
(एकत्रित) करने
की रूख्सत को अपनाना
;
ऐसा कष्ट और कठिनाई
पाए जाने के कारण
जो बारिश और उसके
अलावा नमाज़ जमा
करने के अन्य कारणों
से कम नहीं है।

दूसरा कथन: इशा की नमाज़
का अनुमान लगाना,
कुछ लोगों ने इस
बारे में मक्का
मुकर्रमा का एतिबार
करने का आह्वान
किया है,
औ जिन लोगों
ने यह बात कही है
उनमें से एक अभी
वर्णित पुस्तिका
के लेखक भी हैं।

तीसरा कथन:
इशा
की नमाज़ के शरई
वक़्त की पाबंदी
करना,
और वह शफक़ का
गायब होना है,
जब तक कि वह समय
इशा की नमाज़ के
लिए काफी है।

और इस अंतिम
कथन को ही हम राजेह
(उचित) समझते हैं,
और इसी पर नबी सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम
के नुसूस (हदीस
के मूल शब्द) दलालत
करते हैं, तथा इसी
का फत्वा वरिष्ठ
विद्वानों की कौंसिल,
इफ्ता की स्थायी
समिति तथा शैख
इब्ने अल-उसैमीन
और शैख इब्ने बाज़
और इनके अलावा
अन्य विद्वान देते
हैं।

शैख मुहम्मद
बिन सालेह अल उसैमीन
रहिमहुल्लाह ने
फरमाया:

“ये निर्धारित
समय सारणी : उन स्थानों
पर (लागू) होगी जहाँ
दिन और रात चौबीस
घंटे के दौरान
आता है,
चाहे दिन और
रात दोनों बराबर
हों ,
या उन दोनों
में से कोई एक दूसरे
से थोड़ा या अधिक
बढ़कर (ज़्यादा)
हो।

प्रंतु
जिस स्थान पर चौबीस
घंटे के दौरान
रात और दिन नहीं
आता है: तो वह इस
बात से खाली नहीं
होगा कि : या तो साल
के सभी दिनों में
ऐसा ही होता होगा,
या केवल उसके कुछ
दिनों में ऐसा
होता होगा।

यदि वह उसके
कुछ दिनों में
ऐसा होता है,
उदाहरण के तौर
पर किसी स्थान
पर रात दिन साल
के पूरे मौसम में
चौबीस घंटे में
होते हैं,
किंतु कुछ मौसमों
में वह चौबीस घंटा
या उस से अधिक होती
और दिन भी इसी तरह
होता है तो: ऐसी
स्थिति में या
तो छितिज में कोई
जीवित लक्षण होगी
जिसके द्वारा समय
को निर्धारित करना
संभव होगा,
जैसे कि रोशनी
के बढ़ने का आरंभ,
या उसका पूर्णतया
समाप्त हो जाना,
तो उस दृश्य (लक्षण)
पर हुक्म को लंबित
किया जायेगा,
और या तो उसमें
ऐसी कोई चीज़ नहीं
होगी,
तो ऐसी स्थिति
में नमाज़ के औक़ात
का अनुमान उस अंतिम
दिन के हिसाब से
किया जायेगा जो
रात या दिन के निरंतर
चौबीस घंटे के
होने से पहले था

यदि किसी
स्थान पर रात और
दिन साल के सभी
मौसमों में चौबीस
घंटे के दौरान
नहीं होते हैं
: तो नमाज़ के औक़ात
का अनुमान लगाया
जायेगा ;
क्योंकि
मुस्लिम ने नवास
बिन समआन रज़ियल्लाहु
अन्हु की हदीस
से रिवायत किया
है कि नबी सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम
ने दज्जाल का चर्चा
किया जो कि आखिरी
ज़माने में होगा,
तो लोगों ने आप
से उसके धरती पर
ठहरने के बारे
में पूछा तो आप
ने फरमाया :
‘‘चालीस दिन,
एक दिन एक साल के
समान,
और एक दिन एक
महीने के समान,
और एक दिन जुमा
के समान,
और बाक़ी
दिन तुम्हारे दिनों
के समान होंगे।” तो
लोगों ने कहा : ऐ
अल्लाह के पैगंबर!
वह दिन जो एक साल
के बराबर होगा
उसमें हमारे लिए
एक दिन की नमाज़
काफी होगी
ॽ आप ने फरमाया :
“नहीं, उसके लिए
तुम अनुमान कर
लेना।”

. . . जब यह बात
साबित हो गई कि
जिस जगह रात और
दिन (चौबी घंटे)
के अंदर नहीं होते
हैं तो उसके लिए
अनुमान लगाया जायेगा
तो प्रश्न यह उठता
है कि हम उसका अनुमान
कैसे करेंगे

. . . कुछ विद्वानों
का विचार है कि
: औसत (मध्यस्थ) समय
से उसका अनुमान
किया जायेगा,
चुनाँचे रात को
बारह घंटा अनुमानित
किया जायेगा,
और इसी तरह दिन
को भी ;
क्योंकि जब
स्वयं इसी जगह
का एतिबार करना
असंभव हो गया : तो
औसत जगह का एतिबार
किया जायेगा,
उस मुस्तहाज़ा
औरत के समान जिसकी
कोई आदत नहीं होती
और न ही वह उसकी
तमीज़ कर सकती है।

जबकि दूसरे
विद्वानों का विचार
यह है कि : उस जगह
के सबसे निकट देश
के द्वारा अनुमान
किया जायेगा,
जिसमें रात और
दिन साल के दौरान
ही होते हैं
;
क्योंकि जब स्वयं
उसी जगह का एतिबार
करना असंभव हो
गया तो उसके समानतर
सबसे निकट जगह
का एतिबार किया
जायेगा,
और वह उसके
सबसे निकट का देश
है जिसमें चौबीस
घंटे के दौरान
रात और दिन होते
हैं।

और यही कथन
सबसे राजेह (उचित)
है ;
क्योंकि यह
तर्क के एतिबार
से सबसे मज़बूत
है,
और वस्तुस्थिति
के सबसे निकट है।

“मजमूओ
फतावा शैख इब्ने
उसैमीन” (12/197,
198).

और यही सऊदी
अरब में वरिष्ठ
विद्वानों के बोर्ड
का कथन है,
और इफ्ता की स्थायी
समिति ने इसका
समर्थन किया है,
और हमने उनके फत्वों
को प्रश्न संख्या
(5842) के उत्तर में
उल्लेख किया है,
जिसमें उनका यह
कथन है :

“. . .
इसके अलावा अन्य
कथन और कर्म
संबंधी हदीसें
जो पाँचों नमाज़ों
के औक़ात के निर्धारण
में अवतरित हुई
हैं,
और उन हदीसों
में दिन के लंबे
और छोटे होने और
रात के लंबी और
छोटी होने के बीच
अंतर नहीं किया
गया है,
जबकि नमाज़
के औक़ात उन निशानियों
के द्वारा एक दूसरे
से अलग होते हैं
जिन्हें अल्लाह
के पैगंबर सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम
ने स्पष्ट किया
है।” अंत हुआ।

आप लोग जिस
देश में शि़क्षा
प्राप्त कर रहे
हैं उसकी स्थिति
को देखते हुए : हम
पाते हैं कि उसमें
दिन और रात चौबीस
घंटे में ही होते
हैं और इशा की नमाज़
का समय इतना छोटा
नहीं होता है कि
वह उसमें नमाज़
अदा करने के लिए
काफी न हो। इस आधार
पर,
आप लोगों के
हक़ में यह बात अनिवार्य
है कि नमाज़ों को
उनके शरई औक़ात
में अदा करें।

तीसरा:

यदि इशा
का समय बहुत अधिक
विलंब हो जाता
हो कि नमाज़ को उसके
समय पर पढ़ने में
कष्ट होता हो,
तो ऐसी स्थिति
में मगरिब और इशा
की नमाज़ में जमा
तक़दीम करने (अर्थात
मगरिब और इशा की
नमाज़ को एक साथ
गगरिब के समय में
पढ़ने) में कोई आपत्ति
नहीं है।

तथा प्रश्न
संख्या : (5709) के उत्तर
में हम ने शैख अल-उसैमीन
रहिमहुल्लाह का
यह कथन उललेख किया
है :

“ और अगर
शफक़ (उषा) फज्र की
नमाज़ के समय से
इतने लंबे समय
पहले गायब होता
है जो इशा की नमाज़
के लिए पर्याप्त
है : तो उनके लिए
प्रतीक्षा करना
अनिवार्य है यहाँ
तक कि वह (शफक़) गायब
हो जाऐ,
सिावाय इसके
कि उनके ऊपर प्रतीक्षा
करना कठिन हो तो
ऐसी स्थिति में
उनके लिए इशा की
नमाज़ को मगरिब
के साथ मिलाकर
मगरिब के समय में
पढ़ना जाइज़ है
; तंगी,
असुविधा और कष्ट
को दूर करने के
लिए . . . ’’ अंत हुआ।

तथा मुस्लिम
विश्व लीग के अधीन
‘‘इस्लामी फिक़्ह
समिति” के निर्णय
में आया है :

“परिषद
के सदस्यों ने
उच्च अक्षांश वाले
देशों में नमाज़
की समय सारणी और
रोज़े के विषय को
उठाया,
और कुछ सदस्यों
द्वारा प्रस्तुत
शरई और खगोलीय
अध्ययनों,
और संबंधित तकनीकी
पहलुओं के प्रस्तुतियों
को सुना जिनकी
परिषद के ग्यारहवे
सत्र में सिफारिश
की गई थी,
और निम्नलिखित
निर्णय लिया :

“ . . .

तीसरा : उच्च
डिग्री वाले क्षेत्रों
को तीन भागों में
विभाजित किया जायेगा
:

पहला क्षेत्र:
जो अक्षांश (45) डिग्री
और (48) डिग्री के बीच
उत्तर और दक्षिण
स्थित है,
और उसमें चौबीस
घंटे में औक़ात
के प्रत्यक्ष विलक्षण
स्पष्ट रूप से
पाए जाते हैं,
चाहे औक़ात लंबे
हों या छोटे।

दूसरा क्षेत्र:
जो अक्षांश (48) डिग्री
और (66) डिग्री के बीच
उत्तर और दक्षिण
स्थित हैं,
और उसमें साल के
कुछ दिनों में
औक़ात के कुछ खगोलीय
विलक्षण नहीं पाये
जाते हैं,
जैसे कि शफक़ (उषमा)
जिसके द्वारा इशा
का आरंभ होता है
गायब न हो,
और मगरिब का वक़्त
यहाँ तक फैल जाए
कि फज्र के साथ
घुल मिल जाये।

तीसरा क्षेत्र
: अक्षांश के ऊपर
(66) डिग्री दक्षिण
और उत्तर दोनों
क़ुतुब की ओर स्थित
है,
और उसमें साल की
एक लंबी अवधि में
दिन या रात के समय
औक़ात के प्रत्यक्ष
लक्षण (स्पष्ट
संकेत) नहीं मिलते
हैं।

चौथा : पहले
क्षेत्र में हुक्म
यह है कि : उसके निवासी
नमाज़ के अंदर उसके
शरई औक़ात,
तथा रोज़े में उसके
शरई वक़्त की पाबंदी
करेंगे फज्र सादिक़
के उदय होने से
लेकर सूरज के डूबने
तक ;
नमाज़
और रोज़े के औक़ात
में शरई नुसूस
पर अमल करते हुए,
और जो व्यक्ति
वक़्त के लंबा
होने के कारण किसी
दिन का रोज़ा रखने,
या उसे पूरा करने
में बेबस है,
तो वह रोज़ा तोड़
दे,
और उचित दिनों
में उसकी क़ज़ा करे
. . . ’’ अंत हुआ।

और इसी हालत
के बारे में प्रश्न
किया गया है,
जैसा कि यह बात
स्पष्ट है।

तथा इस्लामी
फिक़्ह समिति के
एक बाद के निर्णय
में पिछले निर्णय
पर ज़ोर दिसा गया
है,
और उस आदमी
के लिए जो इशा की
नमाज़ को आदा करने
में कठिनाई का
अनुभव करता है,
(उसे) यह रूख्सत
दी गई है कि वह उसे
मगरिब के साथ इकटठा
करके पढ़ ले,
और इस बात को स्पष्टता
के साथ बयान किया
गया है कि इसे एक
आम आदत न बना ले,
बल्कि यह केवल
उज़्र वालों के
लिए है,
चुनाँचे उस
निर्णय में आया
है कि:

“किंतु
यदि नमाज़ के औक़ात
के संकेत ज़ाहिर
होते हैं,
लेकिन शफक़ का गायब
होना जिसके द्वारा
इशा की नमाज़ का
समय दाखिल होता
है बहुत अधिक विलंब
हो जाता है: तो
‘‘समिति”

का विचार है
इशा की नमाज़ को
शरीअत में निधार्रित
उसके समय पर अदा
करना ज़रूरी है,
किंतु जिस आदमी
के लिए प्रतीक्षा
करना और उसे उसके
समय पर अदा करना
कठिन है – जैसे छात्र,
कर्मचारी और श्रमिक
लोग अपने काम के
दिनों में – तो उसके
लिए इशा की नमाज़
को इकट्ठा करके
पढ़ना जायज़ है
;
इस उम्मत से कष्ट
और तंगी को दूर
करने के बारे में
वर्णित प्रमाणों
पर अमल करते हुए।
और इसी में से वह
हदीस है जो मुस्लिम
वगैरह में इब्ने
अब्बास रज़ियल्लाहु
अन्हुमा से वर्णित
है कि उन्हों ने
फरमाया: ‘‘अल्लाह के
रसूल सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम
ने ज़ुहर अैर अस्र
के बीच और मगरिब
और इशा के बाच मदीना
में बिना किसी
डर और बारिश के
इकट्ठा किया” तो इब्ने अब्बास
से इसके बारे में
पूछा गया तो उन्हों
ने फरमाया : आप ने
चाहा कि अपनी उम्मत
को तंगी और असुविधा
में न डालें।”

किंतु यह
बात ध्यान में
रहे कि दो नमाज़ों
को इकट्ठा करना
उस देश में सभी
लोगों का उस अवधि
के दौरान मूल सिद्धांत
न बन जाए,
क्योंकि
इसका मतलब इकट्ठा
करने की रूख्सत
को अज़ीमत (मूल हुक्म)
में बदल देना होगा
. . .

जहाँ तक
इस कठिनाई के नियम
का संबंध है : तो
उसका आधार परंपरा
है,
और वह लोगों,
स्थानों और परिस्थितियों
की भिन्नता के
एतिबार से भिन्न
भिन्न होता है।” मुस्लिम
विश्व लीग के केंद्र
स्थान मक्का मुकर्रमा
में 22-27 शव्वाल 1428 हिज्री,
3-8 नवंबर 2007 ई. की अवधि
में आयोजित
“उन्नीसवें
सत्र”, द्वितीय प्रस्ताव
से समाप्त हुआ।

चौथा :

जहाँ तक
मग़्रिब और इशा
के बीच वक़्त को
एक घंटा बत्तीस
मिनट से अनुमानित
करने की बात है
: तो हम उसे शैख उसैमीन,
या उनके अलावा
के यहाँ नहीं पाते
हैं,
और हमने ऊपर
शैख रहिमहुल्लाह
की बात उल्लेख
की है लेकिन उन्हों
ने इस कथन को उल्लेख
नहीं किया है और
न ही उसे राजेह
ठहराया है।

हो सकता
है कि शैख रहिमहुल्लाह
से वर्णन करने
वाले से गलती हुई
है,
और शैख रहिमहुल्लाह
ने आम तौर पर और
अक्सर मध्यस्थ
देशों में, या निश्चित
रूप से सऊदिया
के अंदर मग्रिब
और इशा के बीच के
वक्त को मुराद
लिया हो,
और यही बात
सबसे निकट मालूम
होती है।

(क)- शैख उसैमीन
रहिमहुल्लाह के
कथनों में से यह
भी है :

“वास्तव में इशा
का वक़्त अज़ान
के साथ विशिष्ट
नहीं है ;
क्योंकि
इशा का समय कभी
कभार साल के कुछ
हिस्सों मे,
और कुछ मौसमों
में : सूरज डूबने
और इशा का समय प्रवेश
करने के बीच सवा
घंटा (एक घंटा पंद्रह
मिनट),
कभी कभार एक
घंटा बीस मिनट,
कभी कभार एक घंटा
पचीस मिनट,
और कभी कभार एक
घंटा तीस मिनट
होता है,
वह बदलता
रहता और भिन्न
भिन्न होता है,
सभी मौसमों में
उसे निर्धारित
या व्यवस्थित करना
संभव नहीं है।”

“जलसात
रमज़ानीयह”

(ख)- तथा आप
रहिमहुल्लाह ने
यह भी फरमाया :

मग़्रिब
का समय सूरज डूबने
से लेकर लाल शफक़
(उषा) के गायब होने
तक है,
तो कभी कभार
मग़्रिब और इशा
के बीच एक घंटा
और आधा (डेढ़ घंटा),
कभी कभार एक घंटा
बीस मिनट,
और कभी कभार एक
घंटा सत्तरह मिनट
होता है,
वह भिन्न
भिन्न होता है।

“मजमूओ
फतावा शैख अल-उसैमीन” (7/338)

सारांश
यह कि :

1. जिन देशों में
दिन और रात चौबीस
घंटे में होते
हैं : उनमें नमाज़ों
की उसके शरई वक़्तों
में पाबंदी करना
अनिवार्य है, चाहे
रात लंबी हो या
छोटी।

2. जिन देशों में
दिन और रात चौबीस
घंटों में नहीं
होते हैं : उनमें
नमाज़ों के संबंध
में उस स्थान की
पाबंदी की जायेगी
जो उसके निकटतम
है जिसमें दिन
और रात पाया जाता
है।

3. जिन देशों में
शफक़ फज्र तक निरंतर
रहता है,
या वह गायब
तो होता है परंतु
वह वक़्त इशा की
नमाज़ के लिए काफी
नहीं होता है : तो
उनके निकटतम स्थान
की पाबंदी की जायेगी
जिसमें उसकी नमाज़
के लिए पर्याप्त
समय होता है।

4. उज़्र वालों के
लिए यदि उनके लिए
इशा के समय की प्रतीक्षा
करना कठिन है तो
मग़्रिब और इशा
की नमाज़ को इकट्ठा
करके पढ़ना जायज़
है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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