तीस शाबान की रात को हम नया चाँद देखने के लिए निकले, किन्तु आसमान पर बादल था जिसके कारण हम चाँद न देख सके। क्या हम तीस शाबान के दिन का रोज़ा रखें? क्योंकि वह सन्दिग्ध दिन है।
शक के दिन का रोज़ा रखना
سوال: 13711
ستایش خدا و صلوات و سلام بر رسول خدا و خاندانش.
इसे शक (सन्देह) का दन कहा जाता है (क्योंकि उसका मामला सन्दिग्ध होता है कि वह शाबान का अन्तिम दिन है या रमज़ान का पहला दिन), और इस दिन का रोज़ा रखना हराम है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है किः "उसे (यानी चाँद) देखकर रोज़ा रखो, और उसे (यानी चाँद) देखकर रोज़ा रखना बन्द करो। अगर वह तुम से गुप्त रह जाए (अर्थात् दिखाई न पड़े) तो शाबान के तीस दिन पूरे करो।" इस हदीस को बुखारी ने (हदीस संख्या : 1909 के अन्तर्गत) रिवायत किया है।
अम्मार बिन यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं : जिसने शक के दिन रोज़ा रखा, उसने अबुल क़ासिम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की अवज्ञा और अवहेलना की। इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है और अल्लामा अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 553) में सही कहा है।
हाफिज़ इब्न हजर कहते हैं : इस हदीस के द्वारा शक के दिन के रोज़े के हराम होने पर दलील पकड़ी गई है। क्योंक सहाबी अपने विचार से कोई बात नहीं कह सकता। अत: वह मर्फू’ हदीस की श्रेणी में से है। (मर्फू’ उस हदीस को कहते हैं जिसकी निस्बत रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की तरफ की गई हो)
फतावा की स्थायी समिति के विद्वानों का शक के दिन के रोज़े के बारे में कहना है कि "सुन्नत (हदीस) उस दिन के रोज़े के हराम होने पर दलालत करती है।" फतावा स्थायी समित (10/117)
शैख मुहम्मद बिन सालेह उसैमीन रहिमहुल्लाह ने शक के दिन के रोज़े के हुक्म के बारे में मतभेद का उल्लेख करने के बाद फरमाया : "इन कथनों में सबसे सही कथन हराम होने का है, लेकिन अगर इमाम के निकट इस दिन के रोज़े की अनिवार्यता साबित हो जाए और वह लोगों को इस दिन का रोज़ा रखने का आदेश दे, तो उसका विरोध नहीं किया जाएग और उसका विरोध न करने का प्रदर्शन इस प्रकार होगा कि आदमी खुलेआम उस दिन का रोज़ा तोड़ने का प्रदर्शन न करे, बल्कि वह गुप्त रूप से रोज़ा तोड़े।" (अश-शर्हुल मुम्ते’ 6/318)
منبع:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर