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ज़कात निकालते समय नीयत को बोलना धर्मसंगत नहीं है

प्रश्न: 144650

ज़कात निकालते समय नीयत को बोलने (अर्थात ज़ुबान से नीयत करने) का क्या हुक्म है ॽ क्या मेरे लिए ज़कात निकालते समय उदाहरण के तौर पर यह कहना वैध है किः (ऐ अल्लाह! यह धन मेरी संपत्ति की ज़कात है), यदि ऐसा कहना जाइज़ नहीं है तो ज़कात निकालते समय कैसे नीयत की जायेगी ॽ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह
के लिए योग्य है।

नीयत का स्थान हृदय है, और उसे बोलना न नमाज़
में जाइज़ है,न रोज़े में और न ही ज़कात में। तथा प्रश्न संख्या : (13337)
का उत्तर देखिए।

शैख फौज़ान हफिज़हुल्लाह ने फरमाया : सिवाय दो
मसअलों के:

पहला मस्अला :

हज्ज या उम्रा का एहराम बांधते समय कहा जायेगा
: “लब्बैका उमरतन”,या “लब्बैका हज्जन”.

दूसरा मस्अला :

हदी (हज्ज की क़ुर्बानी का जानवर) या क़ुर्बानी
के जानवर, या अक़ीक़ा का जानवर ज़ब्ह करते समय ज़ुबान से उसका नाम लिया जायेगा, उसके रूप
को स्पष्ट किया जायेगा कि वह अक़ीक़ा का जानवर है, या क़ुर्बानी का है, या हज्ज की क़ुर्बानी
का है और किसकी तरफ से है, चुनाँचे वह कहेगा : बिस्मिल्लाहि अन् फुलान,
बिस्मिल्लाह अन्नी व अन् अह्ले बैती (अल्लाह के नाम से यह फलाँ की ओर से है,
अल्लाह के नाम से यह मेरी तरफ से और मेरे घर वालों की तरफ से है) और उसे ज़ब्ह कर दे।

इन दोनों मस्अलों में ज़ुबान से नीयत करना वर्णित
है, और इन दोनों मुद्दों के अलावा किसी अन्य इबादत में ज़ुबान से नीयत करना जाइज़ नहीं
है,न नमाज़ में और न ही इसके अलावा किसी अन्य इबादत में।”अल-मुनतक़ा मिन फतावा अल-फौज़ान (5 / 30) से समाप्त हुआ।

इस आधार पर, जो व्यक्ति अपने धन का ज़कात निकालना
चाहे वह अपने दिल में नीयत करेगा कि यह राशि उसके धन की ज़कात है,और उसके लिए ज़ुबान से
नीयत को बोलना धर्म संगत नहीं है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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