उपदेश की सभाओं में महिलाओं के बीच हिजाब पहनना एक आम बात हो गई है, यह दावा करते हुए कि फ़रिश्ते उन्हें देखते हैं। उसे फ़रिश्तों के देखने के कारण शर्म आती है; तो क्या यह कथन सही है? और ऐसे शब्द कहने का क्या हुक्म है?
क्या महिला उपदेश की सभाओं में फ़रिश्तों की आँखों से परदा करेगी?
प्रश्न: 144805
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
सर्व प्रथम :
आम तौर पर, महिला जब महिलाओं की सभाओं में बैठे, तो उसे अपने पोशाक में शालीनता और अपने भाषण में शिष्टता अपनाना चाहिए, खासकर अगर वे उपदेश और ज़िक्र की सभाएँ हैं, या वे क़ुरआन और इस्लामी ज्ञान आदि का अध्ययन करने के लिए हैं।
लेकिन उनके लिए हिजाब पहनना इस आधार पर धर्मसंगत नहीं है कि फ़रिश्ते उन्हें देखते हैं, इसलिए वे फ़रिश्तों को गैर-महरम पुरुषों के रूप में मानें, या यह उनकी ओर से शर्म और अधिक शालीनता के तौर पर हो।
क्योंकि यह एक ऐसा काम है, जिसका कोई सबूत नहीं है। यह अल्लाहर के धर्म में एक ऐसा नियम बनाना है, जिसकी अल्लाह ने अनुमति नहीं दी है। अगर यह सही होता, तो महिला को अपने घर में भी हिजाब पहनना पड़ता, क्योंकि फरिश्ते उसे वहाँ भी देखते हैं।
शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह से पूछा गया :
क्या यह सच है कि फ़रिश्ते महिलाओं की ज़िक्र की सभाओं में उपस्थित नहीं होते हैं, यदि महिलाएँ अपने बालों को खोले रखती हैं (अर्थात् वे हिजाब नहीं पहनती हैं)?
तो उन्होंने उत्तर दिया : “मैं इसका कोई आधार नहीं जानता। वे क़ुरआन का पाठ कर सकती हैं और अल्लाह का ज़िक्र कर सकती हैं, भले ही वे अपने सिर खोले हुए हों, जब तक कि कोई गैर-महरम आदमी उनके पास मौजूद नहीं है। तथा यह फ़रिश्तों को प्रवेश करने से नहीं रोकता है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
“मजमूओ फ़तावा इब्ने बाज़” (24/85).
जहाँ तक ज़िक्र, उपदेश और क़ुरआन की सभाओं में मुस्लिम महिला के अपने पहनावे में शालीनता अपनाकर, अपने शब्दों में शिष्ट होकर और अपने कार्यों में समझदारी का प्रदर्शन करते हुए बैठने का संबंध है : तो यह एक सराहनीय एवं प्रशंसनीय काम है, और वह उसके प्रति बाध्य होने के योग्य है; क्योंकि ज़िक्र और क़ुरआन की सभाओं में शिष्टाचार अपनाना और शिष्टता व भद्रता का ध्यान रखना एक वांछनीय काम है जिसके लिए प्रोत्साहित किया गया है।
इमाम नववी रहिमहुल्लाह ने कहा :
“नमाज़ के बाहर क़ुरआन पढ़ने वाले के लिए मुस्तहब है कि क़िबला की ओर मुख करे, तथा वह शांति के साथ और गरिमापूर्ण तरीके से, विनम्र होकर अपने सिर को झुकाए हुए बैठे। उसका अकेले बैठना अपने शिष्टाचार की सुंदरता में, अपने शिक्षक के सामने बैठने के समान हो। यही सबसे पूर्ण तरीक़ा है। यदि वह खड़े होकर या लेटकर या अपने बिस्तर पर, या किसी अन्य स्थिति (मुद्रा) में पाठ करता है, तो यह जायज़ है।”
“मुख़्तसर अत्-तिब्यान” (पृष्ठ 17).
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर