क्या अरबी में दुआ करना और (कई) दुआओं को आपस में मिलाना तथा उनका इस्तेमाल अल्लाह की पवित्रता बयान करने और उसकी स्तुति करने के लिए करना जायज़ हैॽ उदाहरण के तौर पर यह दुआ करना :
" सुबहानल्लाह व बिहम्दिह, अददा खल्क़िह, व रिज़ा नफ़्सिह, व ज़िनता अर्शिह, व मिदादा कलिमातिह” (मैं अल्लाह की पाकी बयान करता हूँ और उसकी प्रशंसा करता हूँ, उसकी सृष्टि की संख्या के बराबर, उसकी आत्मा की प्रसन्नता के बराबर, उसके अर्श (सिंहासन) के वज़न के बराबर और उसके शब्दों की स्याही के बराबर) और उसके बाद ही : “सुब्हानल्लाह व बि-हम्दिह, सुबहानल्लाहिल अज़ीम” (अल्लाह पवित्र है और उसी की सब प्रशंसा है, महान अल्लाह पवित्र है) कहना और उसके बाद कोई दूसरी दुआ पढ़ना। और इसी तरह।