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अगर मासिक धर्म वाली महिला का आशूरा का रोज़ा छूट जाए तो क्या वह उसके बाद इसकी क़ज़ा करेगीॽ

प्रश्न: 146212

यदि मुहर्रम की नौवीं, दसवीं और ग्यारहवीं तारीख के दिनों में कोई महिला माहवारी की हालत में हो तो क्या स्नान करनो के बाद उसके लिए उन दिनों की क़ज़ा करना जायज़ हैॽ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

जिस व्यक्ति का आशूरा का रोज़ा छूट जाए तो वह उसकी क़ज़ा नही करेगा; क्योंकि इसका कोई प्रमाण नहीं है, और इसलिए भी कि इसका अज्र व सवाब मुहर्रम की दसवीं तारीख़ के रोज़े के साथ संबंधित है, और वह गुज़र चुका है।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया :

जिस औरत पर आशूरा का दिन आए और वह माहवारी की अवस्था में हो तो क्या वह उसके रोज़े की क़ज़ा करेगीॽतथा क्या कोई ऐसा नियम व सिद्धान्त है कि किन नवाफिल (स्वैच्छिक उपासना कृत्यों) की क़ज़ा की जाएगी और किन नवाफिल की क़ज़ा नहीं की जाएगीॽअल्लाह आपको बेहतर बदला दे।

तो शैख रहिमहुल्लाह ने जवाब दिया :

''नवाफिल (स्वैच्छिक उपासना कृत्य) दो प्रकार के हैं : एक प्रकार (का नफ्ल) वह है जिसका कोई कारण हो, और दूसरा प्रकार वह है जिसका कोई कारण न हो। अतः जिसका कोई कारण हो तो कारण खत्म हो जाने से वह भी खत्म हो जाएगा और उसकी क़ज़ा नहीं की जाएगी। उदाहरणार्थ : तहिय्यतुल मस्जिद (मस्जिद में प्रवेश करने की नमाज़), यदि कोई व्यक्ति मस्जिद में आए और बैठ जाए और देर तक बैठा रहे और फिर तहिय्यतुल मस्जिद अदा करना चाहे, तो यह तहिय्यतुल मस्जिद नहीं होगी क्योंकि यह एक कारण वाली नमाज़ है, जो एक कारण से जुड़ी हुई है। और जब वह कारण समाप्त हो गया तो उसकी वैधता भी समाप्त हो गई। इसी के समान जैसा कि प्रत्यक्ष होता है अरफा के दिन और आशूरा के दिन के रोज़े भी हैं। यदि मनुष्य बिना किसी उज़्र (कारण) के अरफा और आशूरा के दिन के रोजों को विलंब कर दे, तो इस बात में कोई संदेह नहीं कि वह उसकी क़ज़ा नहीं करेगा। और यदि वह उसकी क़ज़ा कर भी ले तो उसे उसका लाभ नहीं होगा। अर्थात् उसे अरफा और आशूरा का रोज़ा रखने का लाभ प्राप्त नहीं होगा।

इसी तरह जब वह दिन इन्सान पर इस अवस्था में आए कि वह माज़ूर हो, जैसे कि मासिक धर्म वाली और प्रसूता महिला या बीमार आदमी, तो प्रत्यक्ष यही होता है कि वह क़ज़ा नहीं करेगा; क्योंकि यह एक निर्धारित दिन के साथ विशिष्ट है, जिसके बीत जाने के साथ ही उसका हुक्म भी समाप्त हो जाएगा।'' "मजमूओ फतावा इब्ने उसैमीन'' (20/43) से समाप्त हुआ।

परंतु जो व्यक्ति इस दिन का रोज़ा छोड़ने में माज़ूर (क्षम्य) हो – जैसे मासिक धर्म वाली और प्रजनन करने वाली (प्रसूता) महिला, रोगी और मुसाफिर -. और उसकी उस दिन रोज़ा रखने की आदत हो, या उसकी उस दिन रोज़ा रखने की नीयत हो, तो उसे उसकी नीयत पर अज्र व सवाब दिया जाएगा। क्योंकि सहीह बुखारी (हदीस संख्या : 2996) में अबू मूसा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (जब बन्दा बीमार होता है या सफर करता है, तो उसके लिए उन सभी कार्यों का अज्र व सवाब लिखा जाता है जिन्हें वह निवासी और स्वस्थ होने की अवस्था में किया करता था।)

इब्ने हजर रहिमहुल्लाह कहते हैं : आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह कथन कि : (उसके लिए उन सभी कार्यों का अज्र व सवाब लिखा जाता है जिन्हें वह निवासी और स्वस्थ होने की अवस्था में किया करता था।) उस आदमी के लिए है जो अल्लाह की आज्ञाकारिता का कोई कार्य किया करता था, तो उस से रोक दिया गया, जबकि उसकी यह नीयत थी कि – यदि बाधा न होती – तो वह उसे हमेशा जारी रखता।'' अंत हुआ।

''फत्हुल बारी''

और अल्लाह तआला ही सब से अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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