प्रश्न : एक आदमी ने एक भूमि खरीदी परंतु व्यापार के इरादा से नहीं, बल्कि खरीदने से उसका मक़सद अपने धन को नष्ट होने से सुरक्षित करना है, और जब उसे पैसे की आवश्यकता होगी तो उसे बेच देगा, तो क्या उसके ऊपर ज़कात अनिवार्य है या नहीं ?
जिसने अपने धन की सुरक्षा के लिए भूमि खरीदी, तो क्या साल गुज़रने पर उसके ऊपर ज़कात अनिवार्य है ?
प्रश्न: 146371
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
हरप्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
जिसआदमी ने ज़मीन खरीदी लेकिन व्यापार के उद्देश्य से नहीं, बल्कि धन को सुरक्षित करने के मक़सद से या उसके अलावा किसी अन्यकारण से … तो उसके ऊपर ज़मीन में ज़कात नहीं है चाहे वह इस स्थिति में उसके साथ दससाल बनी रहे, क्योंकि उसने व्यापार की नीयत नहीं की है, और इसलिए कि इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि उन्होंने कहा : ‘‘सामान में ज़कात नहीं है सिवाय इसके कि वह व्यापार के लिए हो।”इसे बैहक़ी ने रिवायत किया है और नववी ने ‘‘अल-मजमूअ” (6/5) में रिवायत किया है, तथा हाफिज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने ‘‘अद्दिरायह” (1/261) में इसे सही कहा है।
बहूतीने शरह “मुंतहल-इरादात” (1/434) में फरमाया :
“सामान कहते हैं जो चीज़ लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से बिक्री और खरीदारीके लिए तैयार की जाती है चाहे वह नक़द से ही क्यों न हो।” अंत हुआ।
तथाशैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
“तिाजारत का सामान वह चीज़ है जिसे इनसान ने कमाई के लिए तैयारकिया है। अतः हर वह धन जिसे आदमी ने कमाई के लिए तैयार किया है वह तिजारत का सामानहै चाहे वह मवेशियों में से हो या फलों में से,या दानों (अनाजों) में से, या गाड़ियों में से, या मशीनोंमें से, या किसी भी चीज़ से हो . . . क्योंकि इंसान उसे बेचने के लिए पेश करता है, और इसलिए कि वह पेश किया जाता है और समाप्त हो जाता है, बाक़ी नहीं रहता है,चुनांचे आप व्यापारी को पायेंगे कि वह सामान को पेश करताहै और शाम को बेच देता है, क्योंकि उसका मात्र उसी से कोई मक़सद नहीं होता है बल्कि उसकामकसद लाभ कमाना होता है, अतः हर वह चीज़ जो कमाई करने के लिए तैयार की गई है वह व्यापारका सामान है।” ‘‘शरहुल काफी” से समाप्त हुआ।
तथाआप रहिमहुल्लाह ने यह भी फरमाया : ‘‘व्यापार का सामान वे धन हैं जिन्हें आदमी ने व्यापार के लिएतैयार किए हैं अर्थात उसका व्यापार के अलावा कोई और मक़सद नहीं है …”“लिक़ाउल बाबिल मफतूह” (78) से समाप्त हुआ।
तथाआप रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया : उस आदमी के बारे में जिसने अपने धन को ऐसी भूमिमें लगा दिया है जिसके द्वारा उसका इरादा व्यापार करना नहीं है, और न तो उस पर निर्माण करना या उसमें खेती करना है, बल्कि उसका कहना है कि : वह मेरे धन की रक्षा करेगी और यदि मुझेउसकी आवश्यकता पड़ी तो मैं उसे बेच दूँगा,तो क्या उसमें ज़कात अनिवार्य है ?
तोउन्हों ने उत्तर दिया : “उसमें ज़कात अनिवार्य नहीं है। यहाँ तक कि कुछ फुक़हा का कहनाहै कि: यदि उसने ज़कात से बचने के लिए अपने माल से रियलस्टेट (अचल संपत्ति) खरीद ली, तो उस पर ज़कात अनिवार्य नहीं है! किंतु यह हीलासाज़ी है [अर्थात: उसके ऊपर ज़कात अनिवार्य है]”
‘‘समरातुद् तद्वीन” से समाप्त हुआ।
औरअल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर