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उसने मासिक धर्म के कारण मीक़ात पर उम्रा की नीयत नहीं की फिर अपने पिता से शर्म के कारण उम्रा किया

प्रश्न: 157644

मैं अपने घर वालों और अपने पति के साथ रमज़ान के उम्रा के लिए गई थी जबकि मैं मासिक धर्म की अवस्था में थी। जब हम मीक़ात पर पहुंचे तो मैंने उम्रा की नीयत नहीं की (क्योंकि मुझे यक़ीन था कि मैं, हमारी अपने देश के लिए वापसी की तारीख से पहले, पवित्र होकर स्नान नहीं कर सकूँगी, और मैंने इस बारे में किसी को भी नहीं बताया)। और हमारे मक्का छोड़कर रवाना होने से कुछ घंटे पहले, मेरे पिता ने मुझे बताया कि मेरे लिए तवाफ और सई करना ज़रूरी है, भले ही मैंने स्नान न किया हो (और मेरा साथ देने के लिए उन्होंने एहराम पहन रखा था) मुझे उन्हें यह बताने में शर्म महसूस हुई कि मैंने मीक़ात पर उम्रा की नीयत नहीं की थी, तथा यह कि मैंने अपने बाल काटे हैं और अपनी आँखों में सुर्मा लगाया है, तथा मेरे पति ने (बिना संभोग) के मेरे साथ संभोग पूर्व क्रीड़ा किया है…, मेरे अपने पिता को बताने में शर्म महसूस करने की वजह से, मैं ने स्नान किया, वुज़ू की और उनके साथ हो गई (फिर मैंने तवाफ और सई की, और फारिग होने के बाद अपने बाल काटे) और हम अपने देश वापस आ गए। तो जो कुछ मैंने किया है उन सब का क्या हुक्म है? तथा जो कुछ मुझसे हुआ है उसका परायश्चित करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सर्व प्रथम :

आपने बाल काटने, सुर्मा लगाने और संभोग पूर्व क्रीड़ा का जो उल्लेख किया है उसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है; क्योंकि आपने इससे पहले उम्रा का एहराम नहीं बांधा था।

दूसरा :

आप ने जो तवाफ, सई और बाल कटाने का वर्णन किया है, तो इसमें कुछ विस्तार है :

1- यदि आपने इसे बिना नीयत (इरादे) के किया था, अर्थात आपने उस समय न एहराम बांधी थी और न ही उम्रा की नीयत की थी, जब आपके पिता ने आपको तवाफ़ और सई करने के लिए बुलाया था, तो ये व्यर्थ और शुन्य कार्य हैं इनपर कोई चीज़ निष्कर्षित नहीं होती है। और इनकी वजह से आपके लिए उम्रा का सवाब नहीं लिखा जाएगा। आपको चाहिए था कि अपने पिता को स्पष्ट रूप से बता देतीं कि आपने उम्रा की नीयत नहीं की थी। क्योंकि  उपासना के कृत्यों को केवल उपासना और अल्लाह की निकटता प्राप्त करने के तौर पर किया जाता है।

2- यदि आपने इन कार्यों को करने से पहले, एहराम की नीयत अर्थात उम्रा में प्रवेश करने की नीयत की थी, तो यह उन लोगों के निकट एक सही उम्रा है जो तवाफ़ के लिए पवित्रता की शर्त नहीं लगाते हैं। जैसाकि यह हनफिया का मत है, और इमाम अहमद से एक रिवायत है। तथा इसी को शैखुल इस्लाम इब्न तैमिय्या रहिमहुल्लाह और विद्वानों के एक समूह ने पसंद किया है। लेकिन हनफिय्या इसमें एक ऊँट अनिवार्य क़रार देते हैं, और अहमद एक बकरी अनिवार्य करते हैं और शैख़ुल इस्लाम इसमें कोई चीज़ अनिवार्य नहीं करते हैं। यदि आप किसी को प्रतिनिधि बना दें जो मक्का में आपकी ओर से एक बक्री ज़बह करे और उसे गरीबों और मिस्कीनों को वितरित करदे, तो यह आपके लिए बेहतर और आपकी इबादत के लिए अधिक सावधानी का कारण होगा।

जो व्यक्ति भी बिना उम्रा की नीयत के मक्का आता है, फिर उसका मन बनता है कि वह उम्रा करे, तो उसके लिए हिल्ल में (हरम की सीमा से बाहर) जैसे तनईम वग़ैरह की तरफ निकलना ज़रूरी है, ताकि वहाँ से एहराम बांधे। यदि वह अपने स्थान ही से एहराम बांधता है तो उसके ऊपर एक दम (फिद्या) अनिवार्य है, और वह एक बकरी है जिसे हरम के गरीबों में वितरित कर दिया जाएगा।

अतः यदि आपने इन कार्यों को उम्रा की नीयत से किया है, तो आप पर एक दम (बलिदान) अनिवार्य है; क्योंकि आप हिल्ल में (हरम से बाहर) नहीं निकली है।

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

इस्लाम प्रश्न और उत्तर

स्रोत

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