क्या जो कुछ लोग जनाज़ा उठाकर ले जाने के दौरान ''मृतक के लिए क्षमायाचना करो'' कहते हैं, वह धर्मसंगत हैॽ
जनाज़ा के पीछे चिल्लाकर ”अपने भाई के लिए क्षमायाचना करो” कहने का हुक्म
प्रश्न: 159147
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
मृतक के लिए दुआ और इस्तिग़फ़ार (क्षमायाचना) करना एक इबादत है, तथा इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है कि इंसान जनाज़ा उठाने और उसे लेकर चलने के समय गुप्त रूप से अपने भाई के लिए क्षमायाचना करे। लेकिन रही बात उसका लोगों को पुकार कर यह कहना कि ''अपने भाई के लिए क्षमा मांगो, अल्लाह तुम्हें क्षमा प्रदान करे ..'', तो विद्वानों के एक समूह ने इसे नापसंद किया है और इसे अविष्कारित बिदअतों (नवाचारों) में से माना है।
इब्ने अबी शैबा ने अपने 'मुसन्नफ' में एक अध्याय शामिल किया है जिसका शीर्षक यह है : "उस आदमी के बारे में उनका क्या कहना है जो मृतक के (जनाज़ा के) पीछे कहता है : ''उसके लिए क्षमा मांगो, अल्लाह तुम्हें क्षमा प्रदान करे।''
इब्राहीम से वर्णित है कि उन्होंने कहा : ''इस बात को नापसंद किया जाता था कि एक आदमी जनाज़ा के पीछे चलते हुए यह कहे कि ''उसके लिए क्षमा मांगो, अल्लाह तुम्हें क्षमा प्रदान करे।''
बुकेर बिन अतीक़ से वर्णित है कि उन्होंने कहा : मैं एक जनाज़ा में था जिसमें सईद बिन जुबेर उपस्थित थे। तो एक आदमी ने कहा : ''उसके लिए क्षमा मांगो, अल्लाह तुम्हें क्षमा प्रदान करे।'' इस पर सईद बिन जुबेर ने कहा : अल्लाह तुझे क्षमा न करे।''
अता से वर्णित है कि ''उन्होंने यह कहना नापसंद किया है कि : उसके लिए क्षमा मांगो, अल्लाह तुम्हें क्षमा प्रदान करे।''
अल्लामा अल-हैतमी रहिमहुल्लाह की पुस्तक ''तुहफ़तुल-मुहताज'' (3/188) में आया है : ''जनाज़ा के साथ चलने के दौरान कोलाहल करना नापसंद है – अर्थात आवाज़ बुलंद करना, चाहे वह ज़िक्र (दुआ) और क़ुरआन के पाठ के साथ ही क्यों न हो -, क्योंकि सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने उस समय इसे नापसंद किया है। इसे बैहक़ी ने रिवायत किया है। तथा अल-हसन और अन्य लोगों ने "अपने भाई के लिए क्षमायाचना करो" कहना नापसंद किया है। इसी कारण, इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने ऐसा कहने वाले व्यक्ति से कहा : ''अल्लाह तुझे क्षमा प्रदान न करे।'' बल्कि उसे मृत्यु और उससे संबंधित चीज़ों और दुनिया के विनाश के बारे में विचार करते हुए मौन रहना चाहिए, अपनी ज़बान से चुपचाप अल्लाह को याद करना चाहिए, ज़ोर से नहीं। क्योंकि यह एक निंदनीय व घृणित बिदअत (नवाचार) है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।
तथा शैख अलबानी रहिमहुल्लाह की पुस्तक 'अहकामुल जनाइज़’ (1/250) में है कि नवाचारों में से : ''जनाज़ा के पीछे चिल्लाकर ''उसके लिए क्षमा मांगो, अल्लाह तुम्हें क्षमा प्रदान करे।'' कहना इत्यादि शामिल है।
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर