उस आदमी का क्या हुक्म है जो क़ुर्बानी करता है जबकि वह नमाज़ नहीं पढ़ता है। क्या यह सही है?
उस आदमी का हुक्म जो क़ुर्बानी करता है जबकि वह नमाज़ का छोड़ने वाला है
प्रश्न: 159645
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
हर प्रकार की प्रशंसाऔर गुणगान केवलअल्लाह के लिएयोग्य है।
प्रश्न संख्या(5208) और (9400) के उत्तरमें यह बीत चुकाहै कि नमाज़ छोड़नाधर्म से निष्कासितकरने वाला कुफ्रहै। इस आधार पर: नमाज़ छोड़ने वालाजो भी काम करताहै वह उसे लाभ नहींदेता है और न हीउससे स्वीकार कियाजाता है।
शैख सालेह अल-फौज़ानहफिज़हुल्लाह फरमातेहैं :
”जहाँ तक नमाज़ छोड़नेके साथ रोज़ा रखनेका मामला है तोवह न लाभ पहुँचाताहै न फायदा देताहै और नमाज़ छोड़नेके साथ वह सही भीनही होता है, भलेही इन्सान कितनाभी दूसरी नेकियाँकर डाले, परन्तुवे उसे लाभ नहींदेंगे जबकि वहनमाज़ छोड़ने वालाहै ; क्योंकि जोआदमी नमाज़ नहींपढ़ता है वह काफिरहै, और काफिरका कोई अमल क़बूलनहीं होता है।अतः नमाज़ छोड़नेके साथ रोज़े काकोई लाभ नहीं है।”अंत
”अल-मुन्तक़ा मिनफतावा अल-फौज़ान”(39/16).
तैथ शैख इब्नेउसैमीन रहिमहुल्लाहने फरमाया :
”जो आदमी रोज़ा रखताहै और नमाज़ नहींपढ़ता है, उसका रोज़ाक़बूल नहीं होगा।क्योंकि वह मुर्तद्दकाफिर (अधर्मी)है। तथा उसकी नज़कात कबूल होगीऔर न सद्क़ा और नही कोई अन्य नेकअमल, क्योंकि अल्लाहतआला का फरमानहै :
وَمَا مَنَعَهُمْ أَنْ تُقْبَلَمِنْهُمْ نَفَقَاتُهُمْ إِلاَّ أَنَّهُمْ كَفَرُوا بِاللَّهِ وَبِرَسُولِهِ وَلايَأْتُونَ الصَّلاةَ إِلاَّ وَهُمْ كُسَالَى وَلا يُنفِقُونَ إِلاَّ وَهُمْكَارِهُونَ[التوبة:54]
उनके ख़र्च केस्वीकार न होनेमें इसके अतिरिक्तऔर कोई चीज़ बाधकनहीं कि उन्होंनेअल्लाह औऱ उसकेरसूल के साथ कुफ़्रकिया। और नमाज़के लिए बड़ेआलस से आते हैं,और अनिच्छापूर्वकही ख़र्च करतेहैं।” (सूरतुत तौबाः54)
जब व्यय (खर्च)करना जो कि दूसरोंके साथ उपकार वभलाई करना है, काफिरसे स्वीकार नहींकिया जायेगा, तोसीमित इबादत जोकि उसके करने वालेसे आगे नहीं बढ़तीहै वह तो और भी नहींक़बूल की जायेगी।इस आधार पर जो व्यक्तिरोज़ा रखता है औरनमाज़ नहीं पढ़ताहै वह काफिर (नास्तिक)है, इससे अल्लाहकी पनाह, और उसकारोज़ा बातिल (व्यर्थ)है, इसी तरह उसकेसभी सत्कर्म उससेस्वीकार नहीं किएजायेंगे।” अंतहुआ
”फतावा नूरून अलद-दर्ब”लि-इब्ने उसैमीन(124/32).
अतः यदि नमाज़ छोड़नेवाला क़ुर्बानीकरना चाहता हैतो उसे चाहिए किसबसे पहले अल्लाहके समक्ष अपनेनमाज़ छोड़ने सेतौबा और पश्चातापकरे। यदि उसनेऐसा नहीं कियाऔर जिस चीज़ पर वहहै उसी पर जमा औरअटल रहा, तो उसेउस क़ुर्बानी परसवाब नहीं मिलेगाऔर वह उससे स्वीकारनहीं की जायेगी।और अगर उसने स्वयं(अपने हाथ) उसे ज़बहकिया है तो वह (जानवर)मुर्दार है, उसमेंसे खाना जायज़ नहींहै, क्योंकि मुर्तद्द(अधर्मी) का ज़बहकिया हुआ जानवरमुर्दार और हरामहोता है।
शैख इब्ने उसैमीनरहिमहुल्लाह नेफरमाया : जो आदमीनमाज़ नहीं पढ़ताहै यदि वह जानवरज़बह करे तो उसकाज़बीहा नहीं खायाजायेगा ;क्योंकि वह हरामहै, और अगर कोई यहूदीया ईसाई ज़बह करेतो उसका ज़बह कियाहुआ जानवर हमारेलिए खाना जायज़है, तो – अल्लाह कीपनाह – उसका ज़बीहायहूदियों और ईसाईयोंके ज़बह किए हुएजानवर से भी अधिकदुष्ट है।”
”मजमूओ फतावा वरसाइल इब्न उसैमीन”(12/45).
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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