क्या मुसलमान के लिए रोज़े के आरंभ और उसके अंत के बारे में खगोलीय गणना पर भरोसा करना जायज है, या कि चाँद देखना अनिवार्य है ?
चाँद के देखने पर भरोसा किया जायेगा खगोलीय गणना पर नहीं
प्रश्न: 1602
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
इस्लामी शरीअत एक सहिष्णु व उदार शरीअत है। तथा वह एक सर्वसामान्य शरीअत है जिसके प्रावधान लोगों के विभिन्न तबक़ों विद्वान व अनपढ़, दीहाती और शहरी समेत सभी मनुष्यों और जिन्नों को सम्मिलित है। इसीलिए अल्लाह तआला ने उनके ऊपर इबादतों के समय को जानने का रास्ता आसान कर दिया है। चुनाँचे उनके वक़्तों के प्रवेश करने और निकलने के लिए ऐसे चिह्न निर्धारित किए हैं जिनको जानने में वे सब एक जैसे और समान हैं, सूरज के डूबने को मग्रिब के समय के दाखिल होने और अस्र की नमाज़ के समय के निकलने का चिह्न बनाया है, लाल शफक़ (सूरज डूबने के बाद क्षितिज में प्रकट होनेवाली लालमा) के समाप्त होने को इशा के समय के दाखिल होने का लक्षण बनाया है, तथा महीने के अंत में चाँद के उसके छुपे रहने के बाद दिखाई देने को चाँद के नये महीने के आरंभ और पिछले महीने के अंत पर लक्षण और चिह्न बनाया है। तथा हमें चाँद के महीने के आरंभ को जानने के लिए ऐसी चीज़ का मुकल्लफ नहीं बनाया है जिसे मात्र बहुत थोड़े ही लोग जानते हैं, और वह ज्योतिष विज्ञान या खगोलीय गणित विज्ञान है। और यही चीज़ क़ुरआन व हदीस के ग्रंथों (नुसूस) में वर्णित है कि चाँद की दृष्टि और उसके अवलोकन को मुसलमानों के रमज़ान के महीने के रोज़े की शुरूआत करने, और शव्वाल का चाँद देखकर रोज़ा तोड़ने पर लक्षण और चिह्न करार दिया है। यही स्थिति ईदुल अज़्हा और अरफात के दिन के सबूत में भी है। अल्लाह तआला ने फरमाया :
فَمَنْ شَهِدَ مِنْكُمُ الشَّهْرَ فَلْيَصُمْهُ [سورة البقرة : 185]
''तुम में से जो व्यक्ति इस महीना को पाए उसे इसका रोज़ा रखना चाहिए।'' (सूरतुल बक़राः 185)
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :
يسألونك عن الأهلة قل هي مواقيت للناس والحج [سورة البقرة : 189]
''वे लोग आप से चाँदों के बारे में प्रश्न करते हैं, आप कह दीजिए कि यह लोगों के लिए और हज्ज के लिए निर्धारित समय हैं।''(सूरतुल बक़राः 189)
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :
‘‘जब तुम उसे (यानी चाँद को) देख लो तो रोज़ा रखो और जब तुम उसे (चाँद को) देख लो तो रोज़ा रखना बंद करो। यदि तुम्हारे ऊपर बदली हो जाये (और चाँद देखना संभव न हो) तो तीस दिन पूरे करो।’’
तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रोज़े को रमज़ान के महीने के चाँद के दिखाई देने के सबूत, और रोज़े को तोड़ने को शव्वाल के महीने के चाँद के दिखाई देने के सबूत पर निर्धारित किया है, और इसे सितारों की गणना और ग्रहों के चलने से नहीं संबंधित किया है। और इसी पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के काल में खुलफाये राशिदीन, तथा चारों इमामों और उन तीनों शताब्दियों मे अमल होता चला आया है जिनकी प्रतिष्ठा और अच्छाई की साक्ष्य नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने दी है। अतः इबादतों को आरंभ करने और उससे निकलने के बारे में, चाँद के महीनों को सिद्ध करने में चाँद को देखने के बजाय ज्योतिष विज्ञान की तरफ लौटना उन बिद्अतों (नावाचारों) में से है जिनके अंदर कोई भलाई नहीं, और न तो शरीअत में उसका कोई आधार है . . और धार्मिक मामलों में सारी की सारी भलाई पूर्वजों का अनुसरण करने में है, और सारी की सारी बुराई उन बिद्अतों व नवाचारों में है जो धर्म के अंदर पैदा कर लिए गए हैं। अल्लाह तआला हमें और आपको, तथा सभी मुसलमानों को प्रोक्ष व प्रत्यक्ष फित्नों (उपद्रवों) से सुरक्षित रखे।
स्रोत:
फतावा स्थायी समिति 10/106