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7,2882/रजब/1441 , 26/फ़रवरी/2020

छोटी नापाकी के साथ क़ुर्आन पढ़ने का हुक्म

Question: 162634

यदि (स्मरण से) क़ुरआन पढ़ना वुज़ू के साथ मुसतहब है, तो क्या उसे बिना वुज़ू के पढ़ना अनेच्छिक (मक्रूह) है ॽ

Answer

Praise be to Allah, and peace and blessings be upon the Messenger of Allah and his family.

ह़दस असग़र (छोटी नापाकी) वाले व्यक्ति के लिए क़ुर्आन पढ़ने में कोई हरज की बात नहीं है, कुछ विद्वानों ने इसके जाइज़ होने पर सर्व सहमति (इजमाअ) का उल्लेख किया है, तथा इस मस्अले के बारे में सहीह हदीसें आई हैं जो इस बात को स्पष्ट रूप से ब्यान करती हैं कि उस आदमी पर वुज़ू अनिवार्य नहीं है जो क़ुर्आन पढ़ने का इरादा करे और उसे छोटी नापाकी हो। बल्कि मतभेद केवल उसके क़ुरआन को छूने और जनाबत (वीर्य पात) वाले के लिए उसकी तिलावत करने में है। जमहूर विद्वानों ने इस से मना किया है।

अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने एक रात नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नी मैमूनह – वह उनकी खाला थीं – के पास रात गुज़ारी, वह कहते हैं : तो मैं तकिया की चौड़ाई में लेटा और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और उनकी पत्नी उसकी लम्बाई में लेटे। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सो गए यहाँ तक कि जब आधी रात हो गई या उस से कुछ पहले या उस के कुछ बाद तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नींद से जागे और बैठकर अपने हाथ के द्वारा अपने चेहरे से नींद को मिटाने लगे, फिर सूरत आल इम्रान की अंतिम दस आयतें पढ़ीं, फिर एक लटके हुए मश्कीज़े की ओर खड़े हुए और उस से वुज़ू किया और अच्छी तरह वुज़ू किया फिर खड़े होकर नमाज़ पढ़ने लगे।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 4295) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 763) ने रिवायत किया है।

और इमाम बुखारी ने इस हदीसे पर यह सुर्खी लगाई है : “हदस (नापाकी) इत्यादि के बाद क़ुर्आन पढ़ने का अध्याय”.

इब्ने अब्दुल बर्र ने फरमाया :

“ इस हदीस के अंदर : बिना वुज़ू के क़ुर्आन पढ़ने का सबूत है, क्योंकि आप ने अधिक मात्रा में नींद लिया जिसके समान चीज़ के बारे में मतभेद नहीं किया जा सकता, फिर आप नींद से जागे और वुज़ू करने से पहले क़ुरआन पढ़ा, फिर इसके बाद आप ने वुज़ू किया और नमाज़ पढ़ी।” “अत्तमहीद लिमा फिल मुवत्ता मिनल मआनी वल असानीद” (13/207) से समाप्त हुआ।

नववी – अल्लाह उन पर दया करे – ने फरमाया :

“ इस हदीस में मोह्दिस (छोटी नापाकी वाले व्यक्ति) के लिए क़ुरआन पढ़ने की वैधता पाई जाती है, और इस पर मुसलमानों की सर्व सहमति है।” मुस्लिम की शर्ह (6/46) से संपन्न हुआ।

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