आदर व सम्मान के अंदर शिर्क का मामला मुझे बहुत आश्चर्य में डाले हुए है, हमारे यहाँ हमारे रिश्तेदारों के बीच यह आदत है कि छोटा, बड़ों के सामने थोड़ा झुक जाता है और बड़े लोग उस समय प्यार का प्रदर्शन करते हुए छोटों के सिर पर अपने हाथ रखते हैं, किंतु छोटे उस तरह नहीं झुकते हैं जिस तरह मुसलमान अपने रूकूअ़् में झुकता है।
क्या सलाम करते समय छोटे का बड़े के लिए झुकना जाइज़ है ॽ
प्रश्न: 164865
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
किसी से भेंट (मुलाक़ात) करते समय झुकना और रूकूअ् करना जाइज़ नहीं है चाहे वह कोई विद्वान (आलिम) हो या कोई अन्य।
शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह – अल्लाह उन पर दया करे – ने फरमाया :
“जहाँ तक सलाम करते समय झुकने का मामला है : तो इस से मना किया जायेगा, जैसाकि तिर्मिज़ी में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है कि “लोगों ने आप से उस आदमी के बारे में पूछा जो अपने भाई से मुलाक़ात करता है तो क्या वह उसके लिए झुकेगा ॽ आप ने फरमाया : नहीं।”
और इसलिए कि रूकूअ़ और सज्दे करना केवल अल्लाह सर्वशक्तिमान के लिए ही जाइज़ है, यद्यपि यह सलाम के तौर पर हमारी शरीअत के अलावा में जाइज़ था जैसाकि यूसुफ अलैहिस्सलाम की कहानी में है:
وخروا له سجَّداً وقال يا أبت هذا تأويل رؤياي من قبل
سورة يوسف : 100
“ और वे सब उस के सामने सज्दे में गिर गए और तब कहा (यूसुफ ने) ऐ मेरे पिताजी, यह मेरे पूर्व सपने की ताबीर है।” (सूरत यूसूफः 100)
जबकि हमारी शरीअत में अल्लाह के अलावा किसी अन्य के लिए सज्दा करना जाइज़ नहीं है, बल्कि यह बात गुज़र चुकी है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस तरह (सलाम के वक़्त) खड़े होने से मना किया है जिस तरह कि अजमी (ग़ैर अरब) लोग आपस में एक दूसरे के लिए खड़े होते हैं, तो फिर रूकूअ़ और सज्दा क्योंकर जाइज़ हो सकता है ॽ इसी तरह जो रूकूअ़ से कमतर चीज़ है वह भी निषेद्ध में दाखिल है।” “मजमूउल फतावा” (1/377) से समाप्त हुआ।
तथा उन्हों ने फरमाया:
“जहाँ तक बड़ों जैसे कि शुयूख वगैरह के पास सिर को रखने, या धरती को चूमने आदि का संबंध है: तो अईम्मा के निकट उसके निषिद्ध होने में कोई विवाद नहीं है, बल्कि अल्लाह सर्वशक्तिमान के अलावा के लिए मात्र पीठ के साथ झुकना भी निषिद्ध है, मुसनद वग़ैरह में है कि मुआज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु जब शाम (सीरिया) से लौटे तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए सज्दा किया, तो आप ने फरमाया : ऐ मुआज़, यह क्या है ॽ तो उन्हों ने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर, मैं ने शाम में देखा है कि लोग अपने बिशप और सरदारों को सज्दा करते हैं और इसका उल्लेख वे अपने ईश्दूतों के बारे में करते हैं। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : वे झूठ कहते हैं ऐ मुआज़, यदि मैं किसी को किसी के लिए सज्दा करने का आदेश देता तो मैं औरत को आदेश देता कि वह अपने पति को सज्दा करे क्योंकि उसका उसके ऊपर बहुत बड़ा हक़ है, ऐ मुआज़, क्या अगर तुम मेरी क़ब्र के पास से गुज़रो गे तो तुम सज्दा करोगे ॽ उन्हों ने कहा : नहीं, आप ने फरमाया : “तुम ऐसा मत करना”, या जिस तरह कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया. . .
सारांश यह कि : खड़ा होना, बैठना, रूकूअ़् और सज्दा करना केवल आकाश व धरती के सृष्टा एकमात्र पूज्य अल्लाह का हक़ (अधिकार) है, और जो चीज़ एकमात्र अल्लाह का हक़ है उसमें उसके अलावा का कोई हिस्सा नहीं हो सकता है, जैसे अल्लाह सर्वशक्तिमान के अलावा किसी अन्य की क़सम खाना।” “मजमूउल फतावा” (27/92 , 93) से समाप्त हुआ।
तथा स्थायी समिति के विद्वानों का कहना है :
सलाम करते समय झुकना तथा उसके लिए जूते निकाल देना जाइज़ नहीं है।
तथा उन्हों ने कहा:
“मुसलमान को या काफिर को सलाम करते हुए झुकना जाइज़ नहीं है, न तो शरीर के ऊपरी भाग से और न ही सिर के द्वारा ; क्योंकि झुकना इबादत का सलाम है, और इबादत केवल अल्लाह ही की हो सकती है।
शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़, शैख अब्दुर्रज़्ज़ाक़ अफीफी, शैख अब्दुल्लाह बिन ग़ुदैयान, शैख अब्दुल्लाह बिन क़ऊद
“फतावा स्थायी समिति” (1/233 , 234)
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर