0 / 0

उस व्यक्ति के लिए सलाह और निर्देश, जिसका अल्लाह ने शारीरिक विकलांगता के साथ परीक्षण किया है और क्या अगर विकलांग व्यक्ति बैठकर नमाज़ पढ़ता है, तो उसके लिए आधा सवाब लिखा जागाॽ

Question: 166657

मैंने आपकी वेबसाइट से बहुत कुछ सीखा है, अल्लाह आपको अच्छा बदला प्रदान करे। मेरा प्रश्न यह है : मैंने सुना है कि मक्का या मदीना में किसी बुराई के बारे में मात्र मन में विचार लाना ही पाप माना जाता है, जो बंदे के कर्म-पत्र में लिखा जाता है। इसी कारण पूर्वज उन दोनों शहरों में लंबे समय तक न ठहरने के इच्छुक होते थे। तो क्या यह सच हैॽ कृपया मुझे इस विषय पर अधिक से अधिक जानकारी प्रदान करें। क्योंकि मैं वास्तव में एक विकलांग महिला हूँ, और मेरे दिमाग में अक्सर बुरे विचार आते रहते हैं, जैसे कि मैं अपने मन में कहती हूँ कि अल्लाह मुझसे प्यार नहीं करता है, यही कारण है कि उसने मुझे विकलांग बना दिया है। तथा मेरे बैठकर नमाज़ पढ़ने के कारण, मुझे केवल आधा सवाब मिलेगा। तो इस बारे में आपकी क्या राय हैॽ मेरी जैसी स्थिति के बारे में इस्लाम क्या कहता हैॽ हम मुस्लिम पुरुषों को विकलांग महिलाओं के साथ शादी करने के लिए कैसे प्रोत्साहित करेंॽ और अधिकांश मुसलमान विकलांगों को नकारात्मक रूप से क्यों देखते हैंॽ मैं मदीना में रहना चाहती हूँ, लेकिन मुझे डर है कि ये विचार मेरे खिलाफ दर्ज किए जाएँगे।

Answer

Praise be to Allah, and peace and blessings be upon the Messenger of Allah and his family.

सर्व प्रथम :

क़ज़ा और क़द्र (भाग्य) पर ईमान लाना, ईमान (विश्वास) के स्तंभों में से एक है, और मुसलमान का ईमान (विश्वास) तब तक पूरा नहीं होता जब तक कि वह यह नहीं जान लेता कि जो कुछ भी उसे पहुँचा है, उससे चूकने वाला नहीं था, और जो कुछ भी उससे चूक गया, वह उसे पहुँचने वाला नहीं था। मोमिन के पास उन विपत्तियों पर धैर्य रखने के अलावा कोई चारा नहीं है, जो अल्लाह ने उसके ऊपर नियत की हैं। यह उसके ईमान (विश्वास) की पूर्णता का प्रतीक है। और जो कोई भी धैर्य रखेगा, अल्लाह सर्वशक्तिमान क़ियामत के दिन उसे बिना गिंती के पूर्ण अज्र व सवाब प्रदान करेगा।

आपके दिल में यह बात नहीं आनी चाहिए कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने आपके ऊपर जो कुछ नियत किया है वह पूरी तरह से बुरा (बुराई मात्र) है; क्योंकि अल्लाह तआला के कार्यों में ऐसा कुछ भी नहीं है (जो विशुद्ध रूप से बुरा हो), और अल्लाह तआला अपने बंदों पर जो कुछ नियत (मुक़द्दर) करता है, उसमें उसकी व्यापक हिकमत (तत्वदर्शिता) होती है। और अभी आप अपनी जिस स्थिति को नापसंद कर रही हैं, हो सकता है उसमें बहुत कुछ अच्छाई हो और आप उसे न जानती हों। अल्लाह तआला का फरमान है :

فَعَسَى أَنْ تَكْرَهُوا شَيْئًا وَيَجْعَلَ اللَّهُ فِيهِ خَيْرًا كَثِيرًا          ] النساء : 19 [

“हो सकता है तुम किसी चीज़ को नापसंद करो और अल्लाह उसके अंदर बहुत अधिक भलाई पैदा कर दे।” (सूरतुन् निसा : 19).

तथा बुख़ारी (हदीस संख्या : 5645) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “अल्लाह जिसके साथ भलाई का इरादा रखता है, उसे विपत्तियों से ग्रस्त कर देता है।” अर्थात विपत्तियों के द्वारा उसका परीक्षण करता है ताकि उसे उनपर पुण्य प्रदान करे।

अल्लाह का उस विकलांगता के साथ आपका परीक्षण करने का मतलब यह नहीं है कि अल्लाह सर्वशक्तिमान आपसे प्यार नहीं करता है। बल्कि, शायद इसका विपरीत ही सही है। क्योंकि अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “निःसंदेह महान प्रतिफल महान परीक्षण के साथ है। जब अल्लाह किसी क़ौम से प्यार करता है, तो वह उनका परीक्षण करता है। तो जो कोई भी इससे संतुष्ट होता है, तो उसके लिए अल्लाह की प्रसन्नता है, और जो कोई क्रुध होता (क्रोध प्रकट करता) है, तो उसके लिए क्रोध है।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2396) ने रिवायत किया है और हसन कहा है, तथा इब्ने माजह (हदीस संख्या : 4031) ने रिवायत किया है।

धैर्य रखने वाले और अल्लाह से सवाब की आशा रखने वाले विपत्ति ग्रस्त आदमी को जो सबसे बड़ा लाभ प्राप्त होता है, यह है कि वह अपने पालनहार से बिना किसी पाप के मिल सकता है। चुनाँचे अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “ईमान वाले पुरुष और ईमान वाली महिला अपने प्राण, संतान और धन के बारे में निरंतर विपत्ति से पीड़ित रहते हैं, यहाँ तक कि वे अल्लाह से इस हाल में मिलते हैं कि उनपर कोई पाप नहीं होता।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2399) ने रिवायत किया है।

इसीलिए धैर्य से काम लेने वाले और अल्लाह से अज्र (पुन्य) की उम्मीद रखने वाले विपत्ति ग्रस्त लोगों को क़ियामत के दिन सबसे महान घर प्राप्त होंगे, यहाँ तक कि जो लोग इस दुनिया में स्वास्थ्य एवं सुख का आनंद लेने वाले थे, वे कामना करेंगे कि काश वे भी उनके जैसे होते। जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “क़ियामत के दिन, जब (दुनिया में) विपत्ति से ग्रस्त होने वाले लोगों को बदला दिया जाएगा, तो सुख और स्वास्थ्य का आनंद लेने वाले चाहेंगे कि काश उनकी खालें दुनिया में क़ैंचियों से काट दी गई होतीं।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2402) ने रिवायत किया है और अलबानी ने “सहीह-तिर्मिज़ी” में हसन कहा है।

उम्मीद है कि भरोसेमंद मुसलमानों का एक समूह उठेगा, जो उन बहनों की शादी कराने के लिए प्रयत्न करेगा, जो अपने शरीर में अपंगता (अक्षमता) से पीड़ित हैं। क्योंकि इस तरह के महान कार्य का, अल्लाह की इच्छा से (इन शा अल्लाह), बहुत बड़ा बदला मिलेगा।

जिस मुसलमान को सर्वशक्तिमान अल्लाह ने शारीरिक स्वास्थ्य प्रदान किया किया है, उसे विकलांगता से पीड़ित व्यक्ति को घृणित दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। तथा उसे अल्लाह सर्वशक्तिमान की प्रशंसा करना चाहिए कि अल्लाह ने उसे उस चीज़ से सुरक्षित रखा, जिससे दूसरों को पीड़ित किया है। लेकिन उसके लिए यह उचित नहीं है कि यह दुआ उस (पीड़ित व्यक्ति) को सुनाए, ताकि ऐसा न हो कि उसे इससे तकलीफ पहुँचे। तथा आफ़ियत (सुख और स्वास्थ्य) की नेमत के प्रति आभार में से यह भी है कि वह पीड़ित व्यक्ति को, जितना वह कर सकता है, सेवा और देखभाल प्रदान करे।

आपके लिए प्रश्न संख्या : (71236) का उत्तर देखना महत्वपूर्ण है, जिसमें परीक्षण (आज़माइश) के प्रति ईमान वाले के रवैये का उल्लेख किया गया है।

दूसरी बात :

जहाँ तक आपकी इस सोच का संबंध है कि आपके बैठकर नमाज़ पढ़ने के कारण आपको केवल आधा सवाब मलेगा : तो यह सही नहीं है। बल्कि, इन् शा अल्लाह (अल्लाह की इच्छा से) आपको पूरा सवाब मिलेगा। आधा सवाब तो केवल उस व्यक्ति के लिए है, जो खड़े होने की क्षमता के उपरांत बैठकर नफ़्ल नमाज़ पढ़ता है। लेकिन जो व्यक्ति बीमारी के उज़्र (बहाने) के कारण बैठकर नमाज़ पढ़ता है : तो उसके लिए पूरा सवाब है।

अल्लामा नववी रहिमहुल्लाह ने कहा :

उम्मत की इस बात पर सर्वसहमति है कि जो व्यक्ति अनिवार्य नमाज़ में खड़े होने में असमर्थ है : वह बैठकर नमाज़ पढ़ेगा, और उसे इसे दोहराना नहीं है।

हमारे साथियों ने कहा : और उसका सवाब उसके खड़ा होने की स्थिति में सवाब से कम नहीं होगा, क्योंकि वह माज़ूर है। सहीह बुखारी में यह प्रमाणित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जब कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है या यात्रा करता है, तो उसके लिए वह सब काम लिखा जाता है, जो वह उस समय किया करता था जब वह यात्रा नहीं कर रहा था और स्वस्थ था।”

“अल-मजमू” (4/310)।

तीसरा :

जहाँ तक पाप के बारे में सोचने के मुद्दे का संबंध है, जो आपके प्रश्न में उल्लेख किया गया है, तो उसके बारे में प्रश्न संख्या : (171726) के उत्तर में विस्तार से चर्चा की गई है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

Source

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

at email

डाक सेवा की सदस्यता लें

साइट की नवीन समाचार और आवधिक अपडेट प्राप्त करने के लिए मेलिंग सूची में शामिल हों

phone

इस्लाम प्रश्न और उत्तर एप्लिकेशन

सामग्री का तेज एवं इंटरनेट के बिना ब्राउज़ करने की क्षमता

download iosdownload android