क्या गैर शादीशुदा महिला अपनी ओर से क़ुर्बानी करेगी?
क्या गैर शादीशुदा महिला के लिए अपनी तरफ से क़ुर्बानी करना जायज़ है
प्रश्न: 170160
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
क़ुर्बानी सक्षम व्यक्ति के हक़ में चाहे पुरूष हो या स्त्री सुन्नत मुअक्कदा है। इसका वर्णन प्रश्न संख्या (36432 ) में हो चुका है। और इसमें कोई अंतर नहीं है कि महिला शादीशुदा है या गैर शादीशुदा है।
इब्ने हज़्म रहिमहुल्लाह ने ''अल-मुहल्ला'' (6/37) में फरमाया : ''और क़ुर्बानी मुसाफिर के लिए उसी तरह है जिस तरह मुक़ीम (निवासी) के लिए है, दोनों में कोई फर्क़ नहीं है, इसी तरह महिला भी है। क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है : ''और भलाई करो।'' और क़ुर्बानी करना भलाई का काम है। और जिसका भी हमने उल्लेख किया है वह भलाई करने का ज़रूरतमंद है, उसके करने लिए वह आदिष्ट है, तथा हमने क़ुर्बानी के बारे में अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का जो कथन उल्लेख किया है उसमें आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमने किसी दीहाती को नगर में रहने वाले से अलग (विशिष्ट) नहीं किया है, न किसी यात्री को किसी निवासी से, न किसी पुरूष को किसी महिला से, अतः इसमें कोई चीज़ विशिष्ट करना व्यर्थ (अमान्य) है, जायज़ नहीं है।'' संक्षेप के साथ अंत हुआ।
यदि महिला अपनी ओर से या अपने घर वालों की ओर से क़ुर्बानी करना चाहे तो उसके लिए भी अपने बाल या अपने नाखून या अपनी त्वचा से कोई चीज़ न काटना अनिवार्य है, क्योंकि मुस्लिम (हदीस संख्या : 1977) ने उम्मे सलमा से रिवायत किया है कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''जब तुम ज़ुल-हिज्जा का चाँद देख लो और तुम में से कोई व्यक्ति क़ुर्बानी करना चाहे, तो वह अपने बाल और नाखून (काटने) से रूक जाए।'' और एक रिवायत के शब्द यह हैं कि : ''जब ज़ुल-हिज्जा के दस दिन दाखिल हो जाएं और तुम में से कोई क़ुर्बानी करना चाहे तो वह अपने बाल और त्वचा में से किसी चीज़ को न छुए।''
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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