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जिसने हज्ज या उम्रा में किसी दूसरे का प्रतिनिधित्व किया, क्या उसे उसके समान सवाब मिलेगा?

प्रश्न: 174707

महीने में। किन्तु दूसरी बार मैंने उसे अपने मृतक पिता की ओर से किया था। तो क्या मेरे लिए भी उसमें रमज़ान के महीने में उम्रा करने का सवाब लिखा जाएगा?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

विद्वानों ने इस बारे में कि : क्या हज्ज या उम्रा के अंदर प्रतिनिधि व्यक्ति के लिए उस व्यक्ति के समान अज्र व सवाब है जिसका वह प्रतिनिधित्व कर रहा है, दो कथनों पर मतभेद किया है :

प्रथम कथन : प्रतिनिधि के लिए उस व्यक्ति के समान सवाब है जिसका वह प्रतिनिधित्व कर रहा है। चुनाँचे दोनों उस प्रतिष्ठा के अंदर आते हैं जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस कथन में वर्णित है : ''जिसने हज्ज किया और (उसके दौरान) अश्लीलता से उपेक्षा किया और अवज्ञा व पाप नहीं किया तो वह अपने गुनाहों से उस दिन की तरह लौटता है जिस दिन उसकी माँ ने उसे जना था।''

तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''उसमें – अर्थात रमज़ान में – उम्रा करना हज्ज के बराबर है।''

इस कथन के कहने वालों ने पिछली हदीसों के सामान्य अर्थ से दलील पकड़ी है, और इसलिए कि जब वह व्यक्ति ‘‘जो किसी भलाई पर लोगों का मार्गदर्शन करता है तो उसके लिए उसके करने वाले के समान सवाब है।'' जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सहीह हदीस में साबित है : तो जो व्यक्ति वास्तविक तौर पर अपने साथी की ओर से काम करता है तो वह इस बात का और अधिकार रखता है कि वह पूरा अज्र व सवाब पाए।

इब्ने हज़्म रहिमहुल्लाह ने फरमाया : दाऊद से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : मैंने सईद बिन मुसैयिब से कहा : ऐ अबू मुहम्मद, दोनों में से किसके लिए अज्र व सवाब है, हज्ज करनेवाले के लिए या उसके लिए जिसकी ओर से हज्ज किया गया है? तो सईद ने कहा : अल्लाह तआला (की रहमत) उन दोनों को एकसाथ विस्तृत है। इब्ने हज़्म ने कहा : सईद रहिमहुल्लाह ने सच्च कहा।'' अल-मुहल्ला 7/61.

शैख मुहम्मद बिन इब्राहीम आलुश्शैख रहिमहुल्लाह कहते हैं : ''जो व्यक्ति मृतक की ओर से हज्ज करता है, तो उसके लिए हज्ज का अज्र व सवाब है, यदि उसने उसे स्वयंसेवक के तौर पर किया है। अबू दाऊद ने ''मसाइल इमाम अहमद'' में उनसे अपनी रिवायत में फरमाया : मैंने अहमद को सुना कि उनसे एक आदमी ने कहा : मैं अपनी माँ की ओर से हज्ज करना चाहता हूँ। क्या आपको यह आशा है कि मुझे भी हज्ज का सवाब मिलेगा? उन्हों ने कहा : हाँ, तू उनके ऊपर अनिवार्य एक क़र्ज़ को पूरा कर रहा है।'' अंत हुआ, और यही तब्रानी की रिवायत का प्रत्यक्ष अर्थ है जिसे उन्हों ने अवसत में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''जिसने किसी मैयित – मृतक – की ओर से हज्ज किया, तो जिसने उसकी ओर से हज्ज किया है उसके लिए उसके सवाब के समान है, और जिसने किसी रोज़ादार को इफ्तार कराया तो उसके लिए उसके समान सवाब है, और जिसने किसी भलाई की ओर किसी को आमंत्रित किया उसके लिए उसके करनेवाले के समान सवाब है।'' ''फतावा शैख मुहम्मद बिन इब्राहीम आलुश्शैख'' (5/184) – मक्तबा शामिला का क्रमांकन – से अंत हुआ।

शैख अल्बानी रहिमहुल्लाह ने हदीस ‘‘जिसने किसी मैयित – मृतक – की ओर से हज्ज किया, तो जिसने उसकी ओर से हज्ज किया है उसके लिए उसके समान सवाब है . . .'' को ज़ईफ करार दिया है। ''सिलसिला अल-अहादीस अज़्ज़ईफा वल मौज़ूआ''.

दूसरा कथन : पिछली हदीसों में वर्णित प्रतिष्ठा उस व्यक्ति के साथ विशिष्ट हैं जिसकी ओर से प्रतिनिधित्व किया जा रहा है। रही बात प्रतिनिधि की, तो उसे अपने भाई के साथ उसकी ओर से हज्ज करके, भलाई करने का प्रतिफल (सवाब) मिलेगा। तथा उन नेक कार्यों का भी (सवाब मिलेगा) जो वह हज्ज के कामों से बाहर करता है, जिन्हें वह हरम के अंदर अदा करता है जैसे कि नमाज़ और ज़िक्र आदि।

''फतावा स्थायी समिति'' (11/77-78) में आया है :

जिसने किसी दूसरे की ओर से हज्ज या उम्रा किया, चाहे मज़दूरी पर हो या बिना पैसे के हो : तो हज्ज और उम्रा का सवाब उस व्यक्ति के लिए है जिसकी ओर से उसने प्रतिनिधित्व किया है, और उसके लिए भी भारी सवाब की आशा की जाती है, उसके इख्लास और उसके भलाई की इच्छा के एतिबार से।'' अंत हुआ।''

तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया : क्या किसी दूसरे की ओर से हज्ज करने के लिए नियुक्त व्यक्ति को वह प्रतिष्ठा हासिल होगी जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बयान किया है कि : ''जिसने हज्ज किया और (उसके दौरान) अश्लीलता से उपेक्षा किया और अवज्ञा व पाप नहीं किया तो वह अपने गुनाहों से उस दिन की तरह लौटता है जिस दिन उसकी माँ ने उसे जना था।''?

तो उन्होंने उत्तर दिया : ''इस प्रश्न का उत्तर इस बात पर निर्भर करता है कि क्या इस व्यक्ति ने अपनी ओर से हज्ज किया है या अपने अलावा किसी अन्य की ओर से किया है? इसका जवाब यह है कि : उसने अपने अलावा की ओर से हज्ज किया है, उसने अपनी ओर से हज्ज नहीं किया है। अतः वह उस अज्र को नहीं पायेगा जिसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बयान किया है, क्योंकि उसने अपने अलावा की ओर से हज्ज किया है। किन्तु यदि उसने अपने भाई को लाभ पहुंचाने और उसकी ज़रूरत को पूरा करने का इरादा किया है, तो इन शा अल्लाह, अल्लाह तआला उसे सवाब प्रदान करेगा।'' मजमूओ फतावा शैख उसैमीन (21/34) से अन्त हुआ।

तथा आप रहिमहुल्लाह ने यह भी फरमाया कि : हज्ज या उम्रा की इबादत से संबंधित सारा सवाब उस आदमी के लिए है जिसने उसे वकील बनाया है। रही बात नमाज़ के कई गुना सवाब, और हज्ज या उम्रा की इबादत से बाहर नफ्ली तवाफ और क़ुरआन की तिलावत के सवाब की, तो वह सब उस आदमी के लिए हैं जिसने हज्ज किया है, मुवक्किल के लिए नहीं हैं।'' ''अजि़्ज़याउल्लामि मिनल खुतबिल जवामिअ़'' (2/478) से अंत हुआ।

सो यह मस्अला विद्वानों के बीच मतभेद का विषय है, और इसके बारे में शरीअत के नुसूस स्पष्ट नहीं हैं, और सबसे एहतियात और सावधानी की बात यह कहना है कि : सवाब और प्रतिफल का मस्अला अल्लाह की ओर लौटता है। और इफ्ता की स्थायी समिति का इसी अर्थ में एक अन्य फत्वा भी है, जिसमें उन्हों ने कहा है किः ''रही बात आदमी के किसी दूसरे की ओर से हज्ज के मूल्यकरण की, कि क्या वह उसके अपनी ओर से हज्ज करने की तरह है या कि उससे कम या उससे अधिक फज़ीलत वाला है : तो यह मामला अल्लाह सर्वशक्तिमान की ओर लौटता है।'' स्थायी समिति के फतावा (11/100) से अंत हुआ।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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